5 Dariya News

पटना के लोगों के लिए शॉपिंग का नया ठिकाना बना 'सरस मेला'

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पटना (बिहार) 19-Feb-2017

आमतौर पर अगर आपको कपड़ों, रसोई घर के लिए कोई सामान की खरीदारी करनी हो, स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेना हो या बच्चों के लिए मनोरंजन के साधन उपलध कराना हो तो आप किसी मॉल या मार्केटिंग कांप्लेक्स ही जाना चाहते हैं। परंतु बिहार की राजधानी पटना के लोगों के लिए इन सभी सुविधाओं के लिए गांधी मैदान में लगा सरस मेला नया ठिकाना बना हुआ है। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में दोपहर बाद लोग न केवल सुनहरी धूप का मजा लेने पहुंच रहे हैं, बल्कि सरस मेला भी दोपहर बाद लोगों से गुलजार हो रहा है। लोगों के लिए यह मेला जहां शॉपिंग का नया ठिकाना बन गया है, वहीं कई लोग यहां कलात्मक वस्तुओं से लेकर गृहस्थी चलाने के लिए नए-नए सामानों को देखकर जानकारी ले रहे हैं और खरीद भी रहे हैं। यही नहीं ग्रामीण विकास द्वारा लगाए गए इस मेला में कलाकारों के हुनर की पहचान भी मिल रही है। 

गांधी मैदान में लगे इस मेले के 350 स्टॉलों में से करीब 150 स्टॉल पर बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना यानी जीविका की महिलाओं के हुनर और आत्मविश्वास की बानगी पेश कर रही हैं। इन स्टॉलों में महिला समूहों द्वारा बनाए गए सिक्की कला की वस्तु, आचार, सत्तू, शहद को लोग खूब पसंद कर रहे हैं। आने वाले लोग कलात्मक वस्तुओं तथा हस्तनिर्मित सामानों को देखने और खरीदने के लिए व्यग्र दिख रहे हैं। सीतामढ़ी से आई जीविका स्वयं सहायत समूह की सदस्य सुनैना देवी कहती हैं कि सिक्की कला की बनी वस्तुएं लोग खूब पसंद कर रहे हैं। इस वर्ष पहली बार सरस मेला में स्टॉल लगाने आई सुनैना कहती हैं कि ऐसे मेलों में आने से न केवल अन्य लोगों के हुनरों को देखने और उससे सीखने का मौका मिलता है, बल्कि उत्पादों की बिक्री हो जाती है। 'ग्रामीण कला' पर आधारित इस मेले में केले के पौधे के रेशे से बने उत्पाद के लिए दो स्टॉल लगाए गए हैं। केले के रेशे को जूट से मजबूत माना जाता है। केले के रेशे से बने बैग, पर्स, मैट और साज-सज्जा के सामान लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं। 

त्रिपुरा से आई गीता भौमिक कहती हैं, "बिहार में सरस का हमें बराबर इंतजार रहता है। यहां के लोग ग्रामीण शिल्प और उत्पाद को काफी पसंद करते हैं।" 21 फरवरी तक चलने वाले इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण है 'पालना घर'। यहां आने वाली महिलाएं अपने छोटे- छोटे बच्चे-बच्चियों को खेल-खेल में जीवन के रंग सीखने के लिए छोड़कर मेला का आनंद ले रही हैं। मुख्य द्वार के पास ही नालंदा सत्तू के द्वारा जांता से जीविका समूह की महिलाओं के द्वारा सत्तू का निर्माण भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। मेला घूमने के दौरान अगर आपको भूख लग जाए तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। मेला परिसर में ही फूड जोन में मशरूम का पकौड़ा, मक्के की रोटी, चने की साग, खाजा, राजस्थानी कचौड़ी, बारा मिठाई, मराठी भोजन सहित कई तरह के व्यंजनों का स्वाद चख सकते हैं। मेले में खरीदारी करने पहुंची एक निजी विद्यालय की शिक्षिका शोभा भारद्वाज कहती हैं, "मेले में सभी प्रकार की दुकानें होती हैं, परंतु यहां की खरीदारी की बात ही कुछ और है। यहां सब कुछ अनोखा होता है। यहां की वस्तुओं में फैशन के इस दौर में भी गारंटी की इच्छा कर सकते हैं।" इस मेले में लोगों के मनोरंजन के लिए कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है। इसके अलावे खरीदारों को सुविधा देने तथा मेले में 'कैशलेस इकोनमी' को बढ़ावा देने के लिए मेले में स्टॉल धारक 'डिजिटल पेमेंट' की सुविधा भी दे रहे हैं। नौ फरवरी से चल रहे इस मेले का समापन 21 फरवरी को होगा।