5 Dariya News

मिसाइल अग्नि-5 का सफल परीक्षण, चीन तक पहुंच संभव

5 Dariya News

भुवनेश्वर 26-Dec-2016

भारत ने सोमवार को स्वदेशी तकनीक से विकसित अंतरमहाद्वीपीय सतह से सतह पर मार करने वाली परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इसका परीक्षण ओडिशा के बलासोर जिले में अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। इस तरह भारत न्यूक्लियर-कैपेबल इंटर-कांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) के विशिष्ट देशों के समूहों के और करीब आ गया है। एक बार अग्नि-5 के भारतीय सेना में शामिल हो जाने के बाद भारत आईसीबीएम समूह के विशिष्ट देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। इस श्रेणी में अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल हैं।राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अग्नि-5 के निर्माणकर्ता रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के सफलतापूर्वक परीक्षण को लेकर बधाई दी। यह मिसाइल परमाणु हथियारों सहित 5000 किलोमीटर की रेंज तक निशाना बना सकती है। इसकी पहुंच उत्तरी चीन तक संभव है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, "अग्नि-5 के सफल परीक्षण से हर भारतीय को गर्व है। इससे हमारी सामरिक रक्षा की मजबूती में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी।"मुखर्जी ने एक ट्वीट में कहा, "अग्नि-5 के सफलतापूर्वक परीक्षण के लिए बधाई। इससे हमारी सामरिक और प्रतिरोधक क्षमताओं में वृद्धि होगी।"

यह मिसाइल का चौथा और अंतिम परीक्षण था। इस मिसाइल का विकास और सफलतापूर्वक परीक्षण रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा एकीकृत निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम के तहत किया है।रक्षा मंत्रालय के एक बयान में कहा गया कि इसे पूर्वाह्न् करीब 11.05 बजे ओडिशा तट के बालासोर जिले के अब्दुल कलाम द्वीप से मोबाइल लांचर के जरिए एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) के कॉम्प्लेक्स-4 से छोड़ा गया।बयान में कहा गया, "मिसाइल के चार-सीमा परीक्षण से स्वदेशी मिसाइल क्षमता में बढ़ोतरी की गई और देश के प्रतिरोधक क्षमता के स्तर को बढ़ाया गया। सभी मिशन के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया गया।"इस मिसाइल के कनस्तर संस्करण का परीक्षण 31 जनवरी को सफलतापूर्वक किया गया।अग्नि-5 मिसाइल के बारे में बात करते हुए डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख और नीति आयोग के सदस्य वी.के. सारस्वत ने कहा, "शुरुआत से ही मिसाइल को कनस्तर संस्करण के लिए डिजायन किया जा रहा था।"उन्होंने कहा, "अग्नि-5 मिसाइल में भारत की सभी तरह के खतरों से मुकाबला करने और सभी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है। अब हमें फोर्स मल्टीप्लायर्स जैसे एमआईआरवी (मल्टीपल इंडीपेंडेंटली टारगेटेबल रि-इंट्री वेहिकल) के तरफ देखना शुरू करना चाहिए।"

अग्नि-5 मिसाइल को संग्राहक के तौर पर और कनस्तर से परिचालन के लिए तैयार किया गया है। इसकी संग्राहक क्षमता, परिचालन तत्परता, परिवहन क्षमता और प्रतिक्रिया समय को बढ़ाया गया है।एमआईआरवी एक मिसाइल है जिसमें पेलोड में कई तरह की विस्फोटक सामग्री अलग-अलग लक्ष्यों के लिए ले जाने में सक्षम है। यह विरोधी एंटी बैलिस्टिक मिसाइल की क्षमता को कम करने में मदद करती है।मिसाइल में रिंग लेसर गाइरो-बेस्ड इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (आरआईएनएस) और माइक्रो नेविगेशन सिस्टम (एमआईएस) का इस्तेमाल किया गया है। इससे मिसाइल को लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाने में मदद मिलेगी।अंतिम विकास परीक्षण की सफलता के साथ अग्नि-5 अब भारत के सामरिक शस्त्रागार में जगह लेने के लिए तैयार है।सारस्वत अग्नि-5 के पहले परीक्षण के दौरान अप्रैल 2012 में डीआरडीओ के प्रमुख थे। उन्होंने कहा, "हम सिद्ध प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसके लिए ज्यादा परीक्षण की जरूरत नहीं है। डीआरडीओ का आज का उपकरण उच्च स्तरीय और उच्च प्रौद्योगिकी क्षमता पर आधारित है।" डीआरडीओ व्यवस्थित तरीके से लंबी दूरी के मिसाइलों को फिर से डिजाइन कर मिसाइलों की सीमा बढ़ा रहा है।

उपग्रह प्रक्षेपण के लिए अग्नि-5 मिसाइल की क्षमता के बारे में बात करते हुए सारस्वत ने कहा, "यह एक निर्माण खंड है। इसे 100 किलो कम भार वाले उपग्रहों को छोड़ने में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा (लियो) में स्थापित किया जा सकेगा। इसके लिए मिसाइल में एक छोटा स्टेज जोड़ना होगा।"इंटर-कांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) अग्नि-5 में पूरे एशिया और यूरोप व अफ्रीका के कुछ हिस्सों को निशाना बनाने की क्षमता है।अग्नि-5 एक उन्नत मिसाइल है। यह 17 मीटर लंबी और 2 मीटर चौड़ी है, जबकि इसका वजन 50 टन है।मिसाइल एक टन से ज्यादा परमाणु सामग्री ले जाने में सक्षम है।अग्नि-5 का पहला परीक्षण 19 अप्रैल, 2012 को हुआ था। इसके बाद दूसरा परीक्षण 15 सितंबर, 2013 व तीसरा 31 जनवरी, 2015 को किया गया था।डीआरडीओ के प्रमुख एस. क्रिस्टोफर ने आईएएनएस से कहा कि चौथा परीक्षण साल 2016 के पहले तिमाही में किए जाने की उम्मीद थी, लेकिन बैटरी में तकनीकी गड़बड़ी की वजह से परीक्षण में देरी हुई।