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मैक्स सुपर स्पैशिएलिटी हॉस्पिटल ने क्षेत्र का पहला सफल एबीओ-इनकम्पेटिबल किडनी प्रत्यारोपण किया

5 दरिया न्यूज

जम्मू 11-Nov-2013

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत मैक्स सुपर स्पैशिएलिटी हॉस्पिटल (एमएसएसएच), मोहाली के डॉक्टर्स की टीम ने स्पेशल इम्यून-मॉड्यूलेशन और डीसेंसटाइजेशन प्रोटोकॉल के साथ ब्लड ग्रुप मिलान की बाधा को तोड़ते हुए क्षेत्र का पहला सफल एबीओ-कम्पैटेबल अंग प्रत्यारोपण किया है जिसमें एक अगल ब्लड ग्रुप की किडनी की एक दूसरे मरीज को लगाया गया।दिलचस्प है कि अभी तक किडनी प्रत्यारोपण के लिए दानी और प्राप्तकर्ता के बीच रक्त ग्रुप का मिलान होना जरूरी था। इस बाधा के चलते क्रोनिक किडनी फेलुएर (सीआरएफ) के कई सारे मरीजों को ट्रांसप्लांट (इलाज का बेहतर उपाय) से वंचित होना पड़ता है, फिर चाहे परिवार में एक उपयुक्त और इच्छा से किडनी देना वाला भी हो। ऐसे में कई मरीजों को जिंदगी भर डायलसिस करवाना पड़ता है या फिर किसी अंजान या ब्रेड डेड दानी से किडनी लेनी पड़ती है, जो कि कई बार मरीज या उनके परिवार के सदस्यों के लिए काफी हताशापूर्ण भी रहता है। एबीओ इनकम्पैटेबल के तहत ए और बी ग्रुप के दानी अब ओ ग्रुप प्राप्तकर्ता को भी आसानी से किडनी दान कर सकते हैं। 

अस्पताल के इस कदम से, जिसमें प्रथम रक्त समूह ना मिलने पर भी अंग प्रत्यारोपण को सफलतापूर्वक पूरा किया है, उत्तर भारत में एक नई शुरुआत है और इससे उन हजारों किडनी मरीजों को एक नई उम्मीद बंधी है जो कि इस क्षेत्र में रक्त ग्रुप के मैच ना होने के कारण किडनी दानकर्ता के ना मिलने के चलते ट्रांसप्लांट के लिए इंतजार कर रहे हैं।मरीज श्री विजय किशोर सिंह, जो कि स्वयं भी एक डॉक्टर है और पटना निवासी हैं, का अगस्त, 2011 में किडनी प्रत्यारोपण हुआ था और उन्हें उनके पिता ने अपनी एक किडनी दी थी। उनका रक्त ग्रुप ओ-पॉजिटिव है और परिवार के किसी भी अन्य सदस्य का ये रक्त ग्रुप नहीं था और सिर्फ उनके 65 वर्षीय पिता का ही समान रक्त ग्रुप था। दानकर्ता के अधिक उम्र का होने के कारण किडनी प्रत्यारोपण के दो साल बाद असफल हो गया (ग्राफ्ट लॉस)। विजय को फिर से डायलसिस पर निर्भर होना पड़ा और उसे काफी मुश्किलों से गुजरना पड़ा। अपने पति की इन मुश्किलों को देखते हुए विजय की पत्नी जिसका ए-पॉजिटिव ब्लड ग्रुप था, अपनी एक किडनी उन्हें देने के लिए आगे आई। उन्होंने इस संबंध में पूरे भारत में पूछताछ की लेकिन रक्त समूह ना मिलने के कारण हर जगह पर उन्हें अंग प्रत्यारोपण से इंकार कर दिया गया। वहीं इस नई तकनीक के साथ डॉ.सानंदा बाग, यूरोलिजिस्ट एंड ट्रांसप्लांट सर्जन के नेतृत्व में डॉक्टर्स की एक टीम ने बिना रक्त ग्रुप मिलने के एक पत्नी की किडनी को उसके पति में प्रत्यारोपित कर दिया। इस टीम में उनके साथ डॉ.मुनीष चौहान, कंसल्टेंट, नैफ्रोलॉजिस्ट, एमएसएसएच, मोहाली भी उनके साथ था। अब श्री सिंह की किडनी अच्छी तरह से काम कर रही है और सामान्य संचालन के बाद उन्हें हॉस्पिटल से भी घर भेज दिया गया है। 

आज यहां एक होटल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए डॉ.बाग ने बताया कि किडनी फेल होने के मामलों में पहला विकल्प परिवारिक दानी के माध्यम से किडनी प्रत्यारोपण ही होता है। अगर किसी मामले में परिवार में समान रक्त का दानी नहीं मिलता है तो दूसरा विकल्प दो परिवारों के बीच किडनी का आदान प्रदान होता है। पर, अगर ऐसा भी नहीं हो पाता है और तीसरा विकल्प भी नहीं मिलता तो मरीज की जिंदगी पर जोखिम काफी अधिक बढ़ जाता है।डॉ.चौहान ने कहा कि शुरुआत तौर पर ऐसे हालात होते हैं कि किडनी फेल होने के मरीजों को परिवार में ही किडनी दानी मिल जाता है और पर अगर रक्त समूह नहीं मिलते हैं तो किडनी प्रत्यारोपण संभव नहीं हो पाता है। पर, अब हम नई तकनीकों और आधुनिक दवाओं की मदद से रक्त-समूह का मिलान ना होने पर भी किडनी प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक करने में सफल हो गए हैं। भारत में किडनी असफल होने के 60 से 70 फीसदी मामलों में अज्ञात मधुमेह और ब्लड प्रेशर की भूमिका होती है। इसलिए, जिन लोगों को अधिक हायपरटेंशन, मधुमेह, मोटापा, धूम्रपान और उम्र 50 वर्ष से अधिक होती है तो उन्हें नियमित तौर पर जांच करवानी चाहिए। 

सर्जरी में मिली सफलता से प्रसन्न मरीज श्री सिंह ने कहा कि मेरी भूख पूरी तरह से मर गई थी और मैं कुछ तरल भी नहीं पी पाता था जबकि मुझे बेहद प्यास लगी होती थी। मैं इतना कमजोर हो गया था कि चल भी नहीं पाता था और मेरे शरीर में खून का स्तर काफी कम हो गया था। नियमित डायलसिस के बावजूद मेरी हालत लगातार खराब होती गई और मुझे अपने शरीर में रक्त निर्माण की प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए निरंतर दवाएं लेनी पड़ती हैं। मैं अपनी मुश्किलों के चलते बेहद अधिक तनाव का शिकार हो गया था और कई बार तो मैं जीने की आशा ही खो बैठता था और जीना भी नहीं चाहता था। मैंने कई बार कोलकाता, हैदराबाद, चैन्नई और दिल्ली के प्रमुख सेंटर्स पर इस बारे में पूछा है और हर बार रक्त का मिलान ना होने के कारण किडनी प्रत्यारोपण से मना कर दिया जाता। इस प्रकार के प्रत्यारोपण के लिए दिल्ली के एक प्रमुख अस्पताल ने 15-16 लाख रुपए का खर्च बताया जिसे मैं अदा नहीं कर सकता था। डॉ.सिंह ने बताया कि ऐसे में एमएसएसएच ने इस चुनौती को स्वीकार किया और इसमें सफलता प्राप्त की, जिसके लिए मैं इन का बेहद आभारी हूं, जिन्होंने मेरी किडनी को बदलने के काम को एक चुनौती की तरह लिया और सफलता प्राप्त की। सर्जरी के बाद, अब मैं काफी अच्छा महसूस कर रहा हूं और अब में एक सामान्य व्यक्ति की तरह खा-पी भी सकता हूं और पहले के मुकाबले काफी अधिक मजबूती भी महसूस कर रहा हूं। 

डॉ.चौहान ने बताया कि हमने एबीओ इनकम्पैटेबल ट्रांसप्लांट को एक चुनौती की तरह लिया और ये माना कि कि विजय के लिए कोई उपयुक्त दानी उपलब्ध नहीं है। हमने सफलतापूर्वक अंतरराष्ट्रीय दिशा-निर्देशों का पालन किया और सफलता सुनिश्चित करने के लिए ईलाज प्रक्रियाओं को अपनाया। इस सफलता में कई ट्रांसफ्यूजन दवाओं और विशेषज्ञों से भी सहायता मिली। एबीओ इनकम्पैटेबल ट्रांसप्लांट के लंबी अवधि में परिणाम एक सामान्य सक्षम प्रत्यारोपण की तरह ही प्राप्त होंगे। वहीं रक्त मिलान वाले किडनी ट्रांसप्लांट के मामलों को हमेशा ही प्राथमिकता दी जाती है और ऐसे में एक ऐसा मामला हाथ में लेना काफी बड़ी चुनौती था, जिसमें परिवार के किसी ऐसे सदस्य की किडनी को लगाया गया, जिसका रक्त गु्रप अलग था। 

डॉ.बाग ने कहा कि इस क्षेत्र में ये एक नई शुरुआत और बड़ी सफलता है जो कि इस तरह की किडनी का प्रत्यारोपण किया गया है और विशेषकर उन मरीजों को एक नई उम्मीद जगी है जो कि परिवार में समान रक्त समूह की किडनी ना मिलने के चलते सालों से किडनी प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं। अधिकांश लोगों में ओ-ब्लड ग्रुप मिलता है और ओ समूह वाले सीआरएफ वाले मरीजों की संख्या भी काफी अधिक है। परिवार में उपयुक्त ओ-ग्रुप दानियों की गैर-उपलब्धता के चलते ऐसे मरीजों को अक्सर लंबे समय तक ब्रेन डेड दानी या गैर संबंधी दानी से किडनी प्राप्त करने के लिए इंतजार करना पड़ता है और डायलसिस (कई बार जीवनभर)के लिए काफी कुछ सहन करना पड़ता है। गैर पारिवारिक दानियों से किडनी प्राप्त करने की कानूनी प्रक्रिया भी काफी सख्त और लंबी है, जिसमें कई सारे दस्तावेजों को प्राप्त करना पड़ता है। ऐसे में कई बार किडनी के लिए इंतजार करते करते ही मरीज की मौत भी हो जाती है। अब इस प्रकार के मरीजों को भी बाधा रहित किडनी लगवाने की सुविधा प्राप्त होगी और रक्त ग्रुप का मिलान ना होने के बावजूद भी बाधारहित किडनी प्रत्यारोपण हो सकता है। 

अंग दान करने संबंधी विषय पर डॉ.बाग ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमारे देश में हर साल एक लाख नए मरीजों में किडनी असफल होने के मामले सामने आते हैं और 5 लाख से अधिक मरीज पहले से ही डायलसिस पर हैं जो कि प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं, पर दानियों की कमी के चलते हर साल करीब 5000 मामलों में ही किडनी बदल पाती है। इस विशाल अंतर को पूरा करने के लिए हमें अधिक से अधिक अंग दानियों को प्रेरित करना होगा, विशेषकर ब्रेन डेड (सड़क हादसों या ब्रेन स्ट्रोक) होने वाले लोगों से किडनी दान करने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना होगा। वहीं आदान-प्रदान और एबीओ-कम्पैटेबल प्रत्यारोपण को भी प्रोत्साहित करना होगा। एक किडनी दान करना पूरी तरह से सुरक्षित है और इससे किसी को भी अपनी जिंदगी में किसी भी गतिविधि करने में कोई मुश्किल या कोई नुक्सान नहीं होता है। इन दिनों में दानी का आपे्रशन लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया से पूरा किया जाता है, जिसमें काफी कम दर्द होता है और रिकवरी भी तेजी से होती है और मरीज काम पर जल्दी लौट आता है और वह काफी बेहतर भी महसूस करता है। देश में अंगों की कमी के बारे में बात करते हुए डॉ.चौहान ने बताया कि बिन रक्त समूह मिलान के अंग प्रत्यारोपण को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया गया है और एमएसएसएच बहुत जल्द ही ब्रेन डेड डोनर किडनी ट्रांसप्लांट कार्यक्रम भी शुरू करने जा रहा है।