5 Dariya News

बच्चे कब बनेंगे राजनीतिक प्राथमिकता : कैलाश सत्यार्थी

5 Dariya News

नई दिल्ली 20-Nov-2016

बाल श्रम के खिलाफ मुहिम चलाने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने नोटबंदी का समर्थन किया है क्योंकि उनका मानना है कि इससे मानव तस्करी रुकेगी। बच्चों के अधिकारों के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले सत्यार्थी ने जोर देकर कहा कि जब तक बच्चे राजनीतिक प्राथमिकता नहीं बन जाते, भारत बाल श्रम और बच्चों की तस्करी जैसी जबरदस्त बुराइयों को झेलता रहेगा। इसके लिए एक सामाजिक आंदोलन को तेज करने के लिए उन्होंने दो पहल की हैं। पहला है 'लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन' और '100 मिलियन फॉर 100 मिलियन।'लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन सम्मेलन यहां दिसंबर में राष्ट्रपति भवन में होने वाला है। इसने एक दर्जन से अधिक नोबेल पुरस्कार विजेता और दुनिया भर के कई नेता शामिल होंगे। इनमें दलाई लामा, लाइबेरिया की शांति कार्यकर्ता लेमाह गबोई, आस्ट्रेलिया की प्रथम महिला प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड और मोनाको की राजकुमारी चार्लिन शामिल हैं। ये सभी बाल हिंसा और बच्चों के साथ भेदभाव के खिलाफ अपनी सामूहिक आवाज उठाएंगे। 

वे सभी विचार मंथन करेंगे और प्रतिबद्धता के साथ अपने-अपने क्षेत्र में बच्चों के लाभ का काम करने के लिए एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करेंगे।यह सम्मेलन '100 मिलियन फॉर 100 मिलियन' अभियान शुरू किए जाने का भी गवाह बनेगा। इसका मकसद आने वाले पांच वर्षो में गरीब व वंचित समाज के बच्चों को बाल श्रम, बाल दासता और इनके खिलाफ हिंसा को समाप्त करने और हर बच्चे की सुरक्षा, आजादी और शिक्षित होने के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए 10 करोड़ युवाओं और बच्चों को तैयार करना है। बाल दासता समाप्त करने के चार दशक से चलाए जा रहे वैश्विक आंदोलन के अग्रणी सत्यार्थी सरकार द्वारा बच्चों पर बेहद कम पैसा खर्च किए जाने से परेशान हैं। भारत की आबादी में 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे हैं। 

सत्यार्थी ने आईएएनएस से एक साक्षात्कार में कहा, "बाल श्रम पर हमारे कानून प्रगतिशील नहीं हैं। हमारी सरकार अपने बजट में बच्चों पर मात्र चार प्रतिशत ही खर्च करती है और हमारे यहां बाल तस्करी बहुत होती है। ये सब तब तक नहीं बदलेंगे जब तक बच्चे हमारी राजनीतिक प्राथमिकता नहीं बन जाते।" उन्होंने कहा कि बाल तस्करी ऐसा कारोबार है जो कई लाख करोड़ का है। इस पैसे का अधिकांश काला धन है। उन्होंने कहा कि यह सही है कि नोटबंदी अभियान से लोगों को तकलीफ हो रही है, लेकिन इसके साथ ही इसने तस्करों को बुरी तरह चोट भी पहुंचाई है। सत्यार्थी ने कहा, "लेकिन, यह अब भी सच है कि बच्चे हमारे राजनीतिक या कहें तो सामाजिक प्राथमिकता भी नहीं हैं। इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हमारे यहां कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या सर्वाधिक है। सबसे अधिक बाल श्रमिक हैं और बच्चों की तस्करी भी सबसे अधिक भारत में होती है।" 

उन्होंने बताया कि बाल श्रमिक को जितना किसी बालिग को पारिश्रमिक मिलता है, उसका करीब पांचवां हिस्सा दिया जाता है। इस तरह बच्चे को नौकरी देने वाला प्रति बच्चा करीब 200 रुपये बचता है और कागजों में वे दिखाते हैं कि बालिग मजदूर को रखा है। इस तरह से बहुत अधिक काला धन पैदा होता है।उन्होंने बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) संशोधन विधेयक 2016 पर सवाल उठाते हुए कहा कि आप ऐसा कानून नहीं बना सकते जो बाल श्रम की इजाजत देता हो। बच्चों को 83 क्षेत्रों में काम करने की मनाही थी। इस संशोधन के तहत इनमें से कई में बच्चों को काम करने की इजाजत दी गई। केवल खदान, विस्फोटक और फैक्ट्री एक्ट में उल्लिखित क्षेत्रों में बच्चे काम नहीं कर सकते। सत्यार्थी ने कहा कि हम इस कानून के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि हमें एक बड़े सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। तभी हमलोग बच्चों के जीवन में बेहतरी लाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति पैदा कर सकेंगे।