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ईश्वर समलैंगिक हो सकता है तो मनुष्य क्यों नहीं : विटी इहिमाएरा

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थिम्पू 06-Sep-2016

प्रकृति से विद्रोही और पेशे से साहित्यकार न्यूजीलैंड की आदिम माओरी जनजाति से आने वाले विटी इहिमाएरा अपने देश में माओरी लोगों की सबसे सशक्त आवाज हैं। 72 वर्षीय इहिमाएरा के उपन्यास और लघु कहानियां माओरी लोगों में आए और आ रहे बदलावों की कहानियां हैं, जिसमें उन्होंने पितृसत्ता, नस्लवाद और उपनिवेशवाद पर कड़े प्रहार किए हैं।इहिमाएरा की रचना 'नाइट्स इन द गरडस ऑफ स्पेन' पर फिल्म भी बन चुकी है, जिसमें दो बेटियों वाले एक पिता की कहानी है। यह फिल्म कुछ-कुछ इहिमाएरा के जीवन से भी जुड़ी है।न्यूजीलैंड के विदेश मंत्रालय में राजनयिक के तौर पर सेवारत इहिमाएरा भूटान की राजधानी में एक साहित्योत्सव 'माउंटेन इकोज लिटरेरी फेस्टिवल' में हिस्सा लेने आए हुए थे, जहां आईएएनएस ने उनसे बातचीत की।इहिमाएरा ने साहित्योत्सव से इतर दिए अपने इस साक्षात्कार में काफी खुलकर अपने विचार रखे हैं।

प्रश्न : आप माओरी भाषा में प्रकाशित होने वाले पहले उपन्यासकार हैं। हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों की कहानी कहना कितना जरूरी लगा?

इहिमाएरा : दुनिया में जब हर कोई बोल रहा हो और हर चीज राजनीति की जद में आती हो ऐसे में माओरी लोगों की बात करना बेहद अहम था। हम अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं और दुनिया की कुछ मूल नस्लों में से एक हैं। हमारी कहानी दुनिया के अन्य अल्पसंख्य लोगों की भी आवाज बनकर उभरेगी, चाहे वे भारत या अमेरिका या दक्षिण पूर्व एशिया कहीं के भी वासी हों। हम सब उपनिवेश के शिकार लोग हैं।

प्रश्न : क्या आपको पश्चिम से विरोध का सामना करना पड़ा?

इहिमाएरा : मेरा पूरा जीवन ही विरोधों के बीच बीता है। हमें शैक्षिक अवसर नहीं मिलते और हमें सांस्थानिक नस्लवाद भी झेलना पड़ता है। हमारी जमीनें छीन ली गईं और मैंने अपनी दादी-नानी को खेती की जमीन के लिए संघर्ष करते देखा है। साहित्य और अन्य माध्यमों से हमारी लंबी लड़ाई का ही नतीजा है कि 30 साल बाद हमारी जमीनें हमें लौटा दी गईं। अब सरकार माओरी लोगों को शिक्षा और आवास की अच्छी सुविधाएं मुहैया करा रही है। माओरी लोगों की संस्कृति के बारे में भी लोगों में समझ बढ़ी है और मेरी रचनाओं को न्यूजीलैंड में पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है।

प्रश्न : आप 1984 के दौरान अपनी रचनाओं में कामुकता को लेकर चर्चा में आए। इसे कैसे लिया गया?

इहिमाएरा : दुष्कर्म और समलैंगिकता जैसे विषयों पर लिखते समय आपको साहस जुटाना पड़ता है। मिथक गाथाओं में लैंगिक पहचान को मान्यता दी गई है, लेकिन पश्चिमी देश इससे इनकार करते रहे हैं। यूरोपीय ग्रीक मिथकों में देख सकते हैं कि वहां ईश्वर अपना रूप बदल-बदल कर महिलाओं, पुरुषों और पशुओं के साथ प्रेम करते हैं और ठीक इसी तरह के वर्णन हिंदू मिथकों में भी हैं। हमारी मिथकीय गाथाओं में समलैंगिकता का जिस तरह वर्णन किया गया है, हम उसे उसी रूप में स्वीकार क्यों नहीं कर सकते?

प्रश्न : अपने संस्मरण में आपने बताया है कि बचपन में आपको यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। इस पर लिखना कितना कठिन रहा और कैसी प्रतिक्रिया मिली?

इहिमाएरा : मैं हमेशा चीजों को जैविक दृष्टिकोण से देखता हूं और उसके सांस्कृतिक एवं सामाजिक पहलुओं पर विचार करता हूं। मैं बाल यौन शोषण पर कुछ कहना चाहता था। लगभग पूरा माओरी समाज अब ईसाई धर्म अपना चुका है और उनके लिए यह समझ पाना अब मुश्किल है। मुझे इस जगत में मामूली ही सही बदलाव लाने का अभ्यस्त बनाया गया है। मेरा परिवर्तन को लेकर यह दृष्टिकोण है। हममें से हर एक के पास व्यवस्था को बदलने की ताकत है।

प्रश्न : आपका पंसदीदा भारतीय साहित्यकार कौन है?

इहिमाएरा : वह अरुं धती राय ही हो सकती हैं। वह एक बुद्धिजिवी हैं और एक विदुषी महिला हैं।