5 Dariya News

जल देवता की नाराजगी बन सकती है विनाश का कारण

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जीन्द 12-Jun-2016

सफीदों रोड आर्य समाज में साप्ताहिक सत्संग व यज्ञ के दौरान मुख्य वक्ता के रुप में बोलते हुए कर्मवीर आर्य ने श्रद्धालुओं को बताया कि भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं की पूजा करने की परंपरा रही है। लेकिन जैसे -जैसे हम अपनी वैदिक संस्कृति व सनातन से दूर होते जा रहे हैं वैसे-वैसे हम अपने देवी देवताओं की पूजा पद्धति को भी भुलाते जा रहे हैं। कर्मवीर आर्य ने बताया कि जल देवता की पूजा के अभाव में अर्थार्त जल देवता को नाराज करके हम अनेक तरह की त्रासदियों को न्योता दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनि व सामान्य जन जल की पूजा किस तरह से करते थे। उन्होंने बताया कि किसी भी पदार्थ का सदुपयोग करना, उसको सजों के रखना, उसको सुरक्षित रखना ही उसकी सही पूजा होती है, अर्थार्त ब्रमांड में कुछ जड़ देवता हैं और कुछ चेतन देवता हैं। जल जड़ देवता की श्रेणी में आता है। जिस प्रकार हमारे पूर्वज जल की रक्षा व सुरक्षा करके उसको प्रदूषित होने से बचाते थे, वही जल हमारे लिए वरदान सिद्ध होता था, लेकिन वर्तमान में हमने अपनी प्राचीन पद्धतियों व प्राचीन सिद्धांतों से दूरी बना ली है जिसके चलते यही जल हमारे लिए संकट बन गया है। हमारे लिए त्रासदी का रूप धारण कर रहा है। जिसकी वजह से हमारा वायुमंडल प्रभवित हो रहा है। 

ग्लोबल वार्मिंग जैसी घटनाओं के पीछे भी यही कारण है।  उन्होंने बताया कि यदि हम हमारी प्रकृति में मौजूद जड़ देवताओं का सदुपयोग नहीं लेंगे तो वही हमारे लिए प्राण घातक सिद्ध हो सकते हैं। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को जल बचाने के लिए उपाय करने चाहिए। भारतीय समाज में एक तरफ जहां गंगा, यमुना और कावेरी आदि नदियों की पूजा की जाती है वहीं जल को व्यर्थ बहाया जा रहा है जो कि आपस में विरोधाभासी हैं। इसलिए व्यक्ति को सही मायने में जल की पूजा अर्थार्त जलदेवता को रूष्ठ होने से बचाने का एकमात्र उपाय यही है कि उस को संरक्षित किया जाए, उस को प्रदूषित होने से बचाया जाए, उसका सदुपयोग लिया जाए, तभी हम जल देवता के प्रकोप से बच सकते हैं व प्रकृति का आनंद ले सकते हैं। इस अवसर पर संजय जागलान, मास्टर अनिल, दीपक बिड़ान, अनिल बडगुज्जर, दीपक सतरोल , राकेश बैनिवाल, धर्मवीर पोलिस्त, सत्यवान देशवाल, तेजस आर्य, सुनिल चहल, आर्य हरिकेश नैन, सुनिल आर्य , सावित्री देवी, मनिषा आर्य, सोमकिरण आर्या, श्रुति आर्या व अनेक गणमान्य व्यक्ति व श्रद्धालु मौजूद थे जिन्होने यज्ञ के समापन पर जल बचाने व उसको प्रदुषित न करने का संकल्प लिया।