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कैबिनेट में उठाया जायेगा वनाधिकार कानून का मामला: ठा. कौल सिंह

लागू किया जायेगा वनाधिकार कानून

5 Dariya News ( धर्मचंद यादव )

कुल्लू 20-May-2016

हिमाचल प्रदेश के स्वास्थय एवं राजस्व मंत्री ठा. कौल सिंह ले कहा कि वह हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार कानून को लागू करने का मामला कैबिनेट में रखेंगे और कैबिनेट में इस पर चर्चा करके इसे प्रदेश में लागू करवाने की प्रक्रिया को जल्द ही शुरू करवाया जायेगा। बंजार दौरे के दौरान कौल सिंह ने हिमालय नीति अभियान के प्रतिनिधि मंडल के साथ बैठक करते हुये कहा कि हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार कानून-२००६ को लागू करने के लिये राज्य सरकार वचनबद्ध है। उन्होंने कहा कि वन अधिकार कानून-२००६ के तहत लोगों को मिलने वाले अधिकारों की प्रक्रिया को बाधित नहीं किया जाना चाहिये और वन अधिकार कानून लागू हो जाने से विकास प्रक्रिया में काफी सहुलियतें होंगी। कौल सिंह ने कहा कि वह राजस्व विभाग को इसके लिये नोडल एजंसी बनाने केे लिये अधिकारियों से चर्चा करके उन्हें उचित आदेश देंगे।  

स्वास्थ्य मंत्री ठा. कौल सिंह से बातचीत करते हुये हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह, वनाधिकार कानून के विशेषज्ञ संदीप मिन्हास, मीडिया प्रभारी धर्मचंद यादव ने उन्हें बताया कि वनाधिकार कानून-२००६ की धारा 4(5) प्रतिबंधित करती है कि आदिवासी तथा अन्य परंपरागत वननिवासियों को वन भूमि पर कब्जे से तब तक नहीं हटाया जा सकता, जब तक इस कानून के तहत उन के परंपरागत वन अधिकारों की मान्यता व सत्यापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती। वनाधिकार  कानून-2006 की धारा-2 व 3(1) आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों को अधिकार देती है कि चाहे वह वन के अंदर या बाहर रहते हों परंतु अपनी आजीविका की मूल जरूरतों के लिए वन व वन भूमि पर निर्भर हों, ऐसे में वे वन भूमि पर स्वयं की खेती तथा आवास करने का अधिकार रखते हैं। परंतु यह दख़ल 13 दिसम्बर 2005 से पहले का होना चाहिए। हिमाचल के तकरीबन सभी किसान आदिवासी तथा अन्य परंपरागत वननिवासियों की श्रेणी में आते हैं। 

गुमान सिंह ने बताया कि  उच्चतम न्यायालय ने 2013 में नियमगिरी के फैसले में इसी तर्क को दोहराते हुए आदेश पारित किया है कि आदिवासी तथा अन्य परंपरागत वन निवासी को वन भूमि पर कब्जे से तब तक नहीं हटाया जा सकता व जब तक वन भूमि हस्तांतरण प्रक्रिया अमल में नहीं लाई जा सकेगी, जब तक इस कानून के तहत वन अधिकारों की मान्यता व सत्यापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती। ठा. कौल सिंह से वनाधिकार पर चर्चा करते हुये हिमालय नीति अभियान के संयोजक ने बताया कि प्रदेश सरकार के ही वन विभाग द्वारा हिमाचल उच्च न्यायालय के 6 अप्रैल 2015, 6 अगस्त 2015 व इस से पहले के आदेशों की आड़ में लोगों द्वारा अपनी आजीविका के लिये वन भुमि पर किये दखल को हटाने के नाम पर लोगों के बगीचे उजाड़ रहा है जो पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की  उल्लंधना है। 

उन्होंने यह भी बताया कि इस में भी सरकार व वन विभाग द्वारा छोटे व गरीब किसानों पर ही गाज गिराई, जबकि बड़े तथा प्रभावशाली लोगों पर यह कार्यवाही नहीं की गई। गुमान ने बताया कि यह केस उच्च न्यायालय में वर्ष 2008 से चल रहा है जबकि प्रदेश सरकार ने आज तक इस पर वन अधिकार कानून की बाध्यता का पक्ष कोर्ट में नहीं रखा। कौल सिंह को यह भी बताया कि सरकार के संज्ञान में यह बात होनी चाहिए थी कि उच्च न्यायालय का यह फैसला कानूनसंगत नहीं है, क्योंकि वनाधिकार कानून-2006 इस के आड़े आता है। उक्त कानून के प्रावधानों के मुताबिक, जब तक वन अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक आदिवासी व अन्य परंपरागत वन निवासी किसी भी तरह से उन के परंपरागत वन संसाधनों से बेदखल नहीं किए जा सकते। 

प्रदेश के स्वास्थ्य व राजस्व मंत्री ठा. कौल सिंह ने हिमालय नीति अभियान के प्रतिनिधि मंडल को इस संदर्भ में आश्वास्त करते हुये कहा कि सरकार इस मसले को हल करने में साकारात्मक कार्यवाही करेगी और वह खुद वनाधिकार कानून-२००६ को लागू करवाने के लिये इसे कैबिनेट की बैठक में उठायेंगे और इसे लागू करवाने के लिये सार्थक कदम उठायेगी ताकि लोगों को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े और विकास कार्यों में भी किसी प्रकार का व्यावधान न आये। इस मौके पर हिमालय नीति अभियान के दलीप सिंह ठाकुर, मिया राम सिंह व देंवेंद्र सिंह ठाकुर आदि अनके सदस्य मौजुद थे।