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'भारतीय जीपीएस' के संचालन में अभी लगेगा थोड़ा वक्त : इसरो

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चेन्नई 29-Apr-2016

भारत ने इतिहास रचते हुए गुरुवार को आईआरएनएसएस-1जी का सफल प्रक्षेपण कर दिया है और इसी के साथ भारत का नाम दिशा सूचक प्रणाली क्षमता वाले देशों के साथ दर्ज हो गया है। हालांकि आम आदमी को भारतीय नेविगेशन प्रणाली के रूप में जीपीएस का उपयोग करने के लिए कुछ समय तक इंतजार करना पड़ेगा। औद्योगिक अधिकारियों ने बताया कि भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) के उपयोग से उपग्रह संकेत रिसीवर के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा। इसे मेक इन इंडिया योजना के एक हिस्से के रूप में देखा जा सकता है। भारत ने गुरुवार को देश के सातवें और अंतिम नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-1जी का सफल परीक्षण किया है, जिससे यह स्वयं की नौवहन प्रणाली से अंतरिक्ष प्रक्षेपण करने वाले देशों की सूची में शामिल हो गया है। 

सीधे शब्दों में कहा जाए तो अब भारत अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) रूस के गैलीलियो, यूरोप के ग्लोनास और चीन के बेइदू के समान वाली प्रणाली से सक्षम हो गया है।आईआरएनएसएस की मदद से न केवल भारत के दूरदराज इलाकों की स्थिति की जानकारी मिलेगी, बल्कि जमीनी, हवाई और समुद्री यातायात भी आसान हो जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मुताबिक, आईआरएनएसएस का इस्तेमाल स्थलीय हवाई और समुद्री नौवहन, वाहन ट्रैकिंग, बेड़े प्रबंधन, यात्रियों के नौवहन, आपदा प्रबंधन तथा मोबाइन फोन, मानचित्रण और भूगणितीय डेटा के साथ ड्राइवरों की ²श्यता और ध्वनि का पता लगाने के लिए किया जाएगा। 

इसरो के उपग्रह नौवहन कार्यक्रम के सेवानिवृत्त निदेशक ए.एस. गणेशन ने आईएएनएस को बताया, "भारतीय प्रणाली 10 मीटर तक की स्थिति की सटीक जानकारी प्रदान करती है। आम आदमी के लिए इसका विस्तार और लागत में कटौती अधिक घरेलू निमार्ताओं को नौवहन संकेत रिसीवर बनाने के लिए प्रेरित करेगी।"उन्होंने कहा कि इस उपग्रह नौवहन प्रणाली में तीन खंड शामिल हैं- अंतरिक्ष (उपग्रह), जमीन (ग्राउंड सिस्टम्स) और उपयोगकर्ता (रिसीवर)।गणेशन ने कहा कि एक बार आईआरएनएसएस के तैयार होते ही यह कई तरह के सॉफ्टवेयर में इस्तेमाल की जा सकेगी। जो विभिन्न क्षेत्रों के लिए उपयोगी होगा। 

गणेशन की बात पर सहमित जताते हुए एकॉर्ड सॉफ्टवेयर एंड सिस्टम्स कंपनी के निदेशक एस पुरुषोत्तम ने आईएएनएस से कहा, "अगर इसके व्यवसायीकरण के लिए एक बार सरकार से मंजूरी मिल जाती है, तो यह उपयोगकर्ता निर्माताओं के लिए बड़ा प्रोत्साहन होगा।"आम आदमी के लिए इसकी लागत के बारे में पुरुषोत्तम ने कहा कि यह उपकरण की मात्रा पर निर्भर करेगा। वहीं गणेशन ने इस भारतीय प्रणाली की अमेरिकी जीपीएस से तुलना को गलत बताया है।उन्होंने कहा, "तुलना करने से पहले भारतीय प्रणाली को कुछ समय दिया जाना चाहिए।"