5 Dariya News

देशद्रोयों का सवाल, किससे डरें और कैसे लड़ें?

5 Dariya News (राजीव रंजन तिवारी)

14-Feb-2016

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) दिल्ली परिसर की कथित देशद्रोही गतिविधियों में संलिप्तता और छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी ने कई सवालों को जन्म दिया है। कार्रवाई के बाद सरकारी शैली पर गुस्से का इजहार करने वाले कहते हैं कि इस मुद्दे पर हमेशा की तरह भारत के भगवा फासीवादियों ने झूठ, फरेब और षड्यन्त्र का सहारा लिया है। हैदराबाद के रोहित वेमुला के उत्पीड़न के लिए भी भगवा छात्र संगठन ने उस पर झूठे आरोप लगाये थे। ये वही तौर-तरीके हैं जो हिटलर और मुसोलिनी ने लागू किये थे। यह गंभीर आरोप है कि भड़काऊ नारे लगाने का काम भगवा छात्र संगठन के लोगों ने किया था ताकि बाद में जेएनयू की पूरी जनवादी संस्कृति, मूल्यों व मान्यताओं पर हमला किया जा सके। पूरे देश के आम छात्र-युवा बड़े पैमाने पर इस हमले की मुख़ालफ़त कर रहे हैं। दिल्ली और अम्बेडकर विवि के छात्र भी इस संघर्ष में उनका साथ दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को रिहा कराने और तमाम अन्य छात्रों पर भी डाले गये फर्जी मुकदमों की वापसी तक संघर्ष जारी रखने का एलान कर दिया गया है। दरअसल ९ फरवरी की शाम जेएनयू परिसर के अंदर कुछ छात्रों द्वारा एक सांस्कृकतिक कार्यक्रम च्द कंट्री ऑफ अ विदाउट पोस्ट ऑफिसज् का आयोजन किया गया, जिसमें वामंपंथी विचारधारा के छात्र सम्मिलित थे। इनका उद्देश्य भारत की न्यायिक व्यवस्था पर चर्चा करना था।

 खास बात यह है कि जब आयोजकों को प्रशासन से उक्त सभा की अनुमति मिली थी और बिना किसी द्वेश, छल के वह कार्यक्रम चलना था, तब एबीवीपी के पदाधिकारी किस खूफिया सूचना के आधार पर कार्यक्रम को आरंभ होने से पहले बंद करने की मांग करने लगे थे। उन लोगों ऐसा क्या पता चला जो कार्यक्रम को अनुमति देने वाले को नही पता था। सरकार और सरकारी तंत्र द्वारा च्देशद्रोहीज् करार दिए गए जेनयू के कुछ छात्र यह जानना चाहते हैं कि जब वे निर्दोष हैं तो किसी से क्यों डरें?भारत विरोधी व पाक सर्मथक या कश्मीर की 'आजादी' के लिए जेएनयू के कुछ छात्रों द्वारा कथित रूप से लगाए गए नारे देश की संप्रभुता के लिए खतरनाक हैं। पांचजन्य ने पिछले दिनों अपने लेख में आरोप लगाया था कि जेएनयू नक्सली, माओवादी या आतंकियों के समर्थकों का केंद्र है। यह बात पूरी तरह से झूठ प्रतीत होती है। संघ और भाजपा से भी जुड़े कई लोग वहां से पढ़कर निकले हैं। निर्मला सीतारमण जैसी भाजपा की वरिष्ठ नेता जेएनयू से ही हैं। भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी वहां है। 

कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रत्याशी वहां के छात्रसंघ में रह चुके हैं। इस बार भी एबीवीपी का एक प्रत्याशी ज्वाइंट सेक्रेटरी पद पर केंद्रीय पैनल में है। जेएनयू में संघ की शाखा लगती है। जेएनयू देश भर के सभी विचारों का केंद्र है। वैचारिक खुलापन उस परिसर की संस्कृति है जहां हर धारा के मानने वाले लोग हैं। कभी इस विवि ने किसी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि को प्रोत्साहित नहीं किया। कैंपस में पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों हैं। ६०-७० प्रतिशत छात्रों को राजनीति से कोई वास्ता नहीं। जेएनयू के शिक्षक संघ में भी सभी दलों व विचारों का प्रतिनिधित्व रहा है। वामपंथ, दक्षिणपंथ व समाजवाद को मानने वाले शिक्षक रहे हैं। यहां गांधी, लोहिया व जेपी के समर्थक भी हैं। सबको अपनी क्षमतानुसार विजय-पराजय मिली। बीते वर्षों में भारत सरकार के प्रशासन में सचिव, विदेश सचिव जैसे पदों पर जेएनयू से निकले छात्रों ने सेवाएं दीं। केंद्र से लेकर राज्यों के प्रशासन व राजनीति में जेएनयू के छात्र सबसे ज्यादा हैं। कई विश्वविद्यालयों के कुलपति जेएनयू से निकले अध्यापक रहे। राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में प्रशासन, शिक्षा, मीडिया, स्वयंसेवी संगठनों और राजनीति में जेएनयू से निकले लोगों ने भागीदारी की और उल्लेखनीय योगदान दिया है।

बौद्धिक परिसर के रूप में देखे जाने वाले जेएनयू में अगर अराजकता का माहौल उत्पन्न होना शर्मनाक है। इस पूरे मामले में वायरल हुई वीडियो से जो अफ़वाह फैली कि वहां पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगे थे, समझ के परे है। ये वही जेएनयू है, जहां पर देश के एक से बढ़कर एक बड़े-बड़े नेताओं का विरोध हुआ है, वो चाहे सिक्ख दंगा रहा हो या गोधरा कांड रहा हो। इतिहास गवाह है कि हर उस शक्ति का विरोध हुआ है, जेएनयू में जिसका आधार लोकतंत्र से परे था। हालांकि उनके इस अतिउत्साह का दिल्ली की जनता ने जवाब भी दिया है, जनादेश के रूप में। लेकिन उनका क्या हुआ जो इन उत्साहियों के शिकार हो गये। प्रो.कलबुर्गी, जो कभी देशविरोधी नही रहे फ़िर भी कथित हिंदूवादी संगठनो ने मार डाला। जहां तक जेएनयू की बात है, खबर है कि वामपंथी वहां अफजल की फांसी के विरोध में थे जो कि पूरी तरह झूठ लगती है, जबकि सूचनाएं इस तरह की भी हैं कि उस सभा में भारतीय न्याय व्यवस्था के उस फ़ैसले पर चर्चा हुई, जिसमे अफजल गुरू की फांसी के बाद उसके परिजनो को उक्त घटना की जानकारी चार दिन बाद दी गई। अगर यह परिचर्चा राष्ट्रविरोधी गतिविधि है, तो वो क्या है जो हर साल पूना में गोड़से के फ़ोटो पर माला डालकर शुरू की जाती है। विश्व के कोने-कोने से गांधी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजली छपी होती हैं तब हमारे ही देश के कथित राष्ट्रप्रेमी गांधी को गरियाते हैं, तब देश की निजता किस कोने में जाती है? यकीनन यहीं से तय होता है कि राष्ट्र के सम्मान हेतू कितना फर्क है कथनी और करनी में। इस प्रकार जेएनयू प्रकरण में किसी जांच के बगैर छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी ने व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। सरकार और पुलिस को जांच के बाद ही एक्न्री  लेना चाहिए था।

जेएनयू के पूर्व छात्रों का संगठन भी प्रदर्शनकारी छात्रों के समर्थन में आ गया है। उन्होंने कहा कि अपनी लोकतांत्रिक संस्कृति के लिए मशहूर विवि की छवि पर हुए हमले से उन्हें दुख है। जहां तक जेएनयू के नक्सली समर्थक होने का सवाल है, आज तक वहां के किसी भी अध्यापक को न तो गिरफ्तार किया गया, न ही कोई ऐसे गंभीर आरोप वाले मुकदमे चले। पिछले ४५ साल में एकमात्र घटना हुई जब हवाला कांड में एक छात्र पकड़ा गया था और उसे सजा भी हुई। बताते हैं कि जेएनयू की जो सामाजिक बनावट है, वह संविधान तक में नहीं है। जातीय रूप से पिछड़े छात्रों के अलावा हर तरह के पिछड़े युवाओं को वहां लाभ मिलता है। जेएनयू जैसी व्यवस्था देश के अन्य विश्वविद्यालयों में नहीं है। जेएनयू ऐसा क्यों बन पाया, इसके कई कारण हैं। शिक्षा के क्षेत्र में तीन बड़ी बीमारियां हैं- भ्रष्टाचार, नकलबाजी और नियुक्तियों में लेनदेन व राजनीतिक हस्तक्षेप। 

जेएनयू की प्रवेश परीक्षा में पारदर्शिता है। यहां की संरचना ऐसी है कि नकल जैसी व्यवस्था सफल नहीं हो सकती। नियुक्तियों में पारदर्शिता होने के कारण शिक्षकों से लेकर कुलपतियों तक को निर्मल प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह कैंपस पूरी तरह जाति और संप्रदाय से मुक्त है। यहां पर कश्मीरी, तमिल, पूर्वोत्तर सभी जगह के लोग आते हैं और अपनी बात कहते हैं। जेएनयू के दामन पर दाग लगाने पर तुले कुछ राजनीतिक दलों खासकर भाजपा से यह पूछना पड़ेगा कि दुनिया के अच्छे विश्वविद्यालयों में जेएनयू की ही गणना क्यों होती है। यह एशिया में सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक है, बाकी राज्यों के विवि क्यों नहीं हैं? ऐसे विवि की परंपरा की निंदा करना खुद पर सवाल खड़े करना है। जेएनयू कैंपस आरएसएस के लिए कभी बंद नहीं रहा। आरएसएस और भाजपा को चाहिए कि वे जेएनयू की निंदा करने की जगह अपने आप को टटोलें कि दलितों, महिलाओं, आदिवासियों के बारे में उनके क्या दृष्टिकोण हैं? समाज की बड़ी आबादी के बारे में उनकी सोच दोयम दर्जे की क्यों है?

बुद्धिजीवियों का गढ़ कहे जाने वाली जेएनयू के इन छात्रों का ९ फरवरी २०१३ को अफजल गुरु की फांसी की बरसी के कार्यक्रम का वीडियो खूब शेयर हुआ। इसमें कई भारत विरोधी नारे सुनाई देते हैं लेकिन इस वीडियो की सत्यता को प्रामाणित नहीं किया जा सका है। बिहार के बेगुसराय में रहने वाले कन्हैया कुमार के पिता जयशंकर सिंह कहते हैं कि उनका बेटा निर्दोष है। वह वामपंथी विचारधारा से जुड़ा है, इसलिए थोड़ा बागी स्वभाव का है। उन्होंने कहा कि उनका बेटा कभी देश विरोधी नारे नहीं लगा सकता। उसे साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। बहरहाल, देखना यह है कि जेएनयू विवाद कहां जाकर थमता है?

संपर्कः राजीव रंजन तिवारी, द्वारा- श्री आरपी मिश्र, ८१-एम, कृष्णा भवन, सहयोग विहार, धरमपुर, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), पिन- २७३००६. फोन- ०८९२२००२००३.