छत्तीसगढ़ में संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की ओर से राजधानी रायपुर में एक रेस्तरां की व्यवस्था की गई है, जिसमें छत्तीसगढ़ के पारपंरिक व्यंजनों का आस्वादन किया जा सकता है। इसे 'गढ़ कलेवा' नाम दिया गया है। शुरुआती दौर में प्रदेश के प्रमुख पारंपरिक व्यंजन न्यूनतम दर पर ग्राहकों को उपलब्ध कराया जाएगा। वहीं छग की संस्कृति में रचे-बसे ठेठरी, खुरमी, चीला, मुठिया, अंगाकर रोटी, बफौरी, चउसेला जैसे तीन दर्जन से भी अधिक पारंपरिक व्यंजनों को शामिल किया गया है। छत्तीसगढ़ी परिवेश उपलब्ध कराने के लिए परिसर में लकड़ियों की आकर्षक कलाकृतियां भी बनाई गई हैं और दीवारों की भित्तिचित्र के माध्यम से सजावट की गई है।संस्कृति विभाग के संचालक राकेश चतुर्वेदी ने बताया कि 'गढ़ कलेवा' एक प्रयास है उस संकल्प का, जिसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ राज्य की समेकित सांस्कृतिक विरासत के विविध पक्षों का संरक्षण, संवर्धन और उन्नयन शामिल हैं।
उन्होंने कहा, "राज्य की परंपराओं में अज्ञात समय से विद्यमान और प्रवाहमान विविध आयाम, हमारी धरोहर के वे सुनहरे पन्ने हैं, जिन्होंने हमें गौरव के साथ, उल्लास, उत्साहमय जीवन जीने के लिए उत्प्रेरित किया है और हमारे लिए प्रकाशमान पथ का सृजन किया है।"चतुर्वेदी ने कहा कि देश के कई राज्यों में पारंपरिक व्यंजनों के आस्वादन को प्रोत्साहित करने के लिए निजी व्यवसायियों द्वारा उद्यम के रूप में कार्य किया जा रहा है। लेकिन छत्तीसगढ़ में इसका अभाव सा रहा है। इसे ध्यान में रखकर संस्कृति संचालनालय द्वारा गढ़ कलेवा के माध्यम से पारपंरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का आस्वादन अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि अभी गढ़ कलेवा में लगभग तीन दर्जन छत्तीसगढ़ी व्यंजन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। कालांतर में आइटम बढ़ाने के साथ मध्याह्न् तथा रात्रि में भोजन की उपलब्धता के प्रयास भी किए जाएंगे।
चतुर्वेदी ने बताया कि गढ़ कलेवा में जलपान में शामिल चाउर पिसान के चीला, बेसन के चीला, फरा, मुठिया, धुसका रोटी, वेज मिक्स धुसका, अंगाकर रोटी, पातर रोटी, बफौरी सादा और मिक्स, चउंसेला आदि परोसा जाएगा। इसके अलावा मिठाइयों में बबरा, देहरउरी, मालपुआ, दूधफरा, अईरसा, ठेठरी, खुरमी, बिड़िया, पिड़िया, पपची, पूरन लाडू, करी लाडू, बूंदी लाडू, पर्रा लाडू, खाजा, कोचई पपची आदि परोसा जाएगा।चतुर्वेदी ने कहा कि गढ़ कलेवा का एक अति महत्वपूर्ण पक्ष है इसका परिसर, जिसे ठेठ छत्तीसगढ़ी ग्रामीण परिवेश के रूप में तैयार किया गया है। इसकी साज-सज्जा और जनसुविधाएं सभी कुछ छत्तीसगढ़ ग्रामीण जीवन का आनंद उपलब्ध कराने की क्षमता रखते हैं।