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बिहार चुनाव में चला नीतीश कुमार का सिक्का

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5 Dariya News

पटना , 08 Nov 2015

बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी महागठबंधन की महाजीत से यह साबित हो गया कि राज्य में नीतीश कुमार के सुशासन और विकास का सिक्का चला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल को जनता ने नकार दिया। नीतीश कुमार 10 साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं। बिहार में राजद के शासन काल के बाद बिहार की सत्ता संभालने वाले नीतीश को सुशासन और विकास करने का श्रेय जाता है। लालू से दुश्मनी, फिर भाजपा से दोस्ती। इसके बाद भाजपा से दुश्मनी और लालू से दोस्ती, यानी नीतीश की रणनीति में हर बदलाव को बिहार के मतदाताओं ने अपनी स्वीकृति दी। 

पटना के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राज्य में स्वच्छ छवि है। ऐसा कोई भी मुद्दा नहीं जो उनके खिलाफ जाता हो, साथ ही जनता उनके मुख्यमंत्रित्व के कार्यकाल से भी संतुष्ट है। हालांकि वह यह भी मानते हैं कि लालू प्रसाद की छवि नीतीश के ठीक विपरीत है, फिर भी जनता ने नीतीश पर भरोसा रखते हुए उनकी पार्टी के लिए वोटिंग की। संतोष का यह भी मानना है कि लालू का जाति-कार्ड भी इस चुनाव परिणाम को महागठबंधन के पक्ष में करने में काफी उपयोगी साबित हुआ। 

इधर, राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर मानते हैं कि नीतीश की स्वच्छ छवि और उनकी चुनावी रणनीति बहुत स्पष्ट रही। वह कहते हैं कि बिहार में नीतीश को मतदाता विकास के रूप में पहचानते रहे हैं। इसका उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि चुनाव के पूर्व जितने भी सर्वेक्षण आए थे, उनमें मुख्यमंत्री के तौर पर पहली पसंद नीतीश ही बने रहे। चुनावी सभाओं में भी नीतीश ने राजग पर प्रहार करने के लिए विकास को ही हथकंडा बनाए रखा था। किशोर कहते हैं कि इस चुनाव में नीतीश के सुशासन और विकास का सिक्का चला है, इसमें कोई दो मत नहीं।

वहीं, झारखंड के विनोबा भावे विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर वी़ झा को लगता है कि महागठबंधन को नीतीश की छवि का फायदा तो हुआ ही, यह भी स्पष्ट है कि भाजपा के विरोधी मतों का बिखराव नहीं हुआ। वह यह भी कहते हैं कि नीतीश की विकास की शैली बिहार के लोगों के लिए सकारात्मक रही है। बहरहाल, जदयू-राजद-कांग्रेस महागठबंधन की विजय में नीतीश कुमार की लोकप्रियता एक प्रमुख कारक है। हालांकि कुछ का कहना है कि मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग-अलग मुद्दों को लेकर मतदान करते हैं। 

लोकसभा चुनाव में जद (यू) की हार के बाद 17 मई 2014 को नीतीश कुमार ने नैतिक दायित्व अपने ऊपर लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपने एक मंत्री महादलित नेता जीतन राम मांझी को सरकार की कमान सौंप दी। मांझी छह माह के दौरान अपने अटपटे बयानों से सुर्खियों में आते रहे। किसी को अनुमान न था कि भोले-भाले चेहरे वाले मांझी के मन में क्या चल रहा है। उनके धीरे-धीरे उनके सुर बदलने लगे। बाद में पता चला कि उनके पीठ पर भाजपा का हाथ है। 

उसी दौरान लालू प्रसाद ने नीतीश को इशारा किया कि मांझी की छवि कमजोर मुख्यमंत्री की बन रही है। ऐसे में विधानसभा चुनाव जीतना मुश्किल हैं, इसलिए कमान वह अपने हाथ में लें। हालात की नजाकत समझते हुए मांझी से इस्तीफा मांगा गया, लेकिन भाजपा के समर्थन के भरोसे मांझी ने अपनी अकड़ दिखाई। उन्होंने बगावती तेवर दिखाए और काफी नौटंकी के बाद इस्तीफा दिया। राजद और कांग्रेस के समर्थन से नीतीश फिर सत्तासीन हो गए। भाजपा के झांसे में आए मांझी अब न घर के रहे न घाट के।

 

Tags: Election Special

 

 

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