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मैथिली को 'मौखिक भाषा' बताने पर केंद्र सरकार का विरोध

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5 Dariya News

नई दिल्ली , 07 Mar 2018

संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल मैथिली भाषा को केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर मौखिक भाषा (बोली) माना जाना मिथिला क्षेत्र के सांसद समेत बुद्धिजीवियों व साहित्यसेवियों को मंजूर नहीं है। उनका कहना है कि मोदी सरकार समृद्ध साहित्य वाली देश की प्राचीन व वैज्ञानिक भाषा की उपेक्षा कर रही है, जबकि भाजपा की ही अटल सरकार ने इस भाषा को संविधान में जगह दिलाई थी। संविधान के पैमाने पर खरी उतने पर ही किसी भाषा को अष्टम अनुसूची में जगह मिल पाती है। भोजपुरी भाषा संविधान में जगह पाने के लिए इस समय संघर्ष की राह पर है। दरभंगा से सांसद कीर्ति झा आजाद का कहना है कि मैथिली देश की पुरानी भाषाओं में एक है, इसलिए इसे 'बोली' बताना उचित नहीं है। सांसद ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "यह आठ करोड़ मिथिलावासियों की उपेक्षा है। मैथिली भारत की प्राचीन भाषा है, इसकी अपनी लिपि है और व्याकरण है। मैथिली की साहित्य संपदा को देखकर ही प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सन् 1965 में मैथिली अकादमी में की मैथिली को जगह दिलाई थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने मैथिली को संविधान की अष्ठम अनुसूची में शामिल किया था। मैथिली भाषा और इसकी लिपि की उपेक्षा करना पंडित नेहरू और वाजपेयी के कार्यो का तिरस्कार है।"कीर्ति आजाद ने 5 मार्च को लोकसभा में मानव संसाधन विकास मंत्रालय से पूछा था कि संविधान की अष्ठम अनुसूची में शामिल भाषा मैथिली में प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में उपलब्ध कराने के लिए बिहार सरकार व संबंधित विभाग को कोई सुझाव व निर्देश दिया गया है? उन्होंने इसका ब्योरा समेत मैथिली भाषा की लिपि के लिए सरकार की कार्ययोजना की भी जानकारी मांगी थी।

मैथिली भाषा की पढ़ाई बिहार, बंगाल, नेपाल सहित कई राज्यों में स्नातकोत्तर व पीएचडी स्तर तक है, लेकिन बिहार में मैथिली माध्यमिक स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर तक तो पाठ्यक्रम में शामिल है, लेकिन प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम में नहीं है। पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा रहने से बच्चों को समझने में आसानी रहती है, यह सभी लोग जानते हैं, लेकिन लोगों के सजग न रहने का फायदा हर सरकार उठाती रही है। मंत्रालय की ओर से कहा गया कि मैथिली शुरुआती अवधि में मुख्य रूप से मौखिक भाषा रही है और कुछ समय के लिए मैथिली को कैथी लिपि में लिखा गया। मंत्रालय ने बताया कि मैथिली के लिए आधिकारिक सूचना व पाठ्यपुस्तकें देवनागरी लिपि में लिखी गई हैं और मैथिली भाषा की लिपि के प्रचार-प्रसार के लिए कोई पृथक योजना नहीं है। कीर्ति आजाद ने कहा कि जगत जननी सीता मिथिला के धराधाम में पैदा हुई थीं। मिथिला की भाषा का अनादर माता सीता का अनादर है। मैथिली को 'मौखिक भाषा' बताए जाने पर समाजसेवी व मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने कहा, "मैथिली भाषा को मात्र मौखिक भाषा का दर्जा देना केंद्र सरकार की भूल है, जिसे तुरंत सुधारा जाना चाहिए।"डॉ. झा ने मांग की है कि सरकार तत्काल प्रभाव से अपने वक्तव्य को वापस ले एवं जनभावना को पूर्ण आदर देते हुए, भारत की इस प्रचीनतम भाषा को अपेक्षित सम्मान दे।'साहित्य अकादमी' पुरस्कार से सम्मानित मैथिली साहित्यकार पंडित गोविंद झा ने कहा कि सरकार को मैथिली माध्यम से प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य करना चाहिए, क्योंकि मातृभाषा के विकास से देश का विकास होगा। उन्होंने कहा कि मैथिली भाषा के प्रति केंद्र व राज्य सरकार की ओर से उपेक्षा का भाव रखे जाने से मैथिली भाषा-भाषी आहत हुए हैं। 

बिहार के सहरसा निवासी साहित्यकार व सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. महेंद्र ने भाषा विज्ञान की दृष्टि से प्रकाश डालते हुए बताया कि प्राचीन भारतीय भाषाओं के तीन समूह हैं- द्रविड़, सौरसैनी और मागधी। इनमें मागधी मूल की चार भाषाओं- मैथिली, बांग्ला, ओड़िया और असमिया में मैथिली सबसे प्राचीन भाषा है। सन् 1260 में ज्योतिरीश्वर ठाकुर प्रणीत प्रथम गद्य कृति 'वर्णरत्नाकर' मैथिली में लिखित है, जिसका बाद में बंगाल एशियाटिक सोसायटी द्वारा प्रकाशन किया गया था। उन्होंने कहा, "मैथिली भाषा-साहित्य को जाने बिना किसी का इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है।" उन्होंेने बताया कि मैथिली की लिपि- तिरहुता या मिथिलाक्षर-में न सिर्फ मैथिली की रचनाएं हैं, बल्कि प्राचीन संस्कृत भाषा के साहित्य भी इसी लिपि में भरे पड़े हैं। बिहार में पूर्णिया कॉलेज के प्रोफेसर गौरीकांत झा ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सरकार ने ही मिथिला भाषा-भाषियों की पीड़ा समझी थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने 2003 में मैथिली को संविधान की अष्ठम अनुसूची में शामिल किया था, लेकिन आज की भाजपा सरकार में मैथिली की उपेक्षा हो रही है, जो अत्यंत खेदजनक है।'साहित्य अकादमी' पुरस्कार से सम्मानित मैथिली साहित्यकार शेफालिका वर्मा ने कहा, "कहां तो मिथिला को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की जा रही है, लेकिन मौजूदा सरकार में महाकवि विद्यापति की भाषा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, जो घोर आपत्तिजनक है।

 

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