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बैंक घोटाला : सरकारी चूक का भी खुलासा करे सरकार

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5 Dariya News

नई दिल्ली , 23 Feb 2018

जिस देश में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहराई तक जा चुकी हैं, वहां किसी बैंक में महाघोटाला होना कोई हैरत की बात नहीं है। जबसे पीएनबी घोटाला सामने आया है, इस पर हो-हल्ला ज्यादा हो रहा है और आरोपियों तक पहुंचने का काम कम।पीएनबी घोटाले ने लोगों का विश्वास बैंकों पर से भी कम कर दिया है। मोदी सरकार ने बेशक आर्थिक भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला लेने का तर्क दिया, लेकिन पीएनबी घोटाले ने मोदी सरकार को आर्थिक भ्रष्टाचार रोकने में नाकामयाब कर दिया। मोदी सरकार अगर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नोटबंदी के फैसले से पहले इसके आधार में व्याप्त भ्रष्टाचार पर वार करती, उसके बाद नोटबंदी का फैसला लेती, तब शायद कामयाब हो सकती थी। इससे आर्थिक भ्रष्टाचार पर भी लगाम लग जाती और बैंकिंग व्यवस्था में भी सुधार आता।बैंक घोटाले के लगभग एक सप्ताह बाद भारी आलोचना झेलने के बाद केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जुबान खोली और पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के संदर्भ में बैंक प्रबंधन और आंतरिक तथा बाहरी ऑडिटरों की लापरवाही के साथ ही बिना नाम लिए रिजर्व बैंक की कमजोर नजर पर भी कटाक्ष किए। वित्तमंत्री का यह प्रश्न गलत नहीं है कि काम करने की स्वायत्तता के बावजूद बैंक प्रबंधन ने अपनी भूमिका का निर्वहन सही तरीके से क्यों नहीं किया? ऑडिट करने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट को आत्मावलोकन की सलाह देते हुए जेटली ने बैंक के आंतरिक और बाहरी ऑडिटरों पर भी आक्षेप लगाया, जो इतने वर्षो से चले आ रहे इतने बड़े घोटाले को सूंघ नहीं सके। रिजर्व बैंक नियमित रूप से विभिन्न बैंकों की शाखाओं का ऑडिट करवाता है। उस दौरान भी पंजाब नेशनल बैंक में चल रहे घोटाले पर नजर नहीं जाने पर भी वित्तमंत्री ने जो तंज कसा, वह बेमानी नहीं है। जेटली ने नीरव मोदी कांड उजागर होने के इतने दिनों बाद मुंह खोला तो उसमें दोषियों को पकड़कर लाने और डूबंत रकम की वसूली जैसा आश्वासन देने के बजाय बैंक प्रबंधन, ऑडिटरों और रिजर्व बैंक पर ही पूरी जिम्मेदारी थोप दी।वित्तमंत्री शायद ऐसा न कहते, यदि प्रधानमंत्री और उन पर चौतरफा हमले न हुए होते। विजय माल्या मामला तो सीधे-सीधे कर्ज वसूली नहीं हो पाने का था, लेकिन नीरव मोदी कांड में बैंक और ऑडिट करने वाले बैंक अधिकारी और चार्टर्ड अकाउंटेंट सहित रिजर्व बैंक की अनदेखी की ही भूमिका रही। 

पीएनबी का कहना है कि उसके दो कर्मियों ने धोखाधड़ी कर एलओयू स्विफ्ट के जरिए विदेश में स्थित बैंकों को दिए। स्विफ्ट यानी सोसायटी फार वल्र्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंनशियल टेलिकम्युनिकेशन के जरिए एलओयू एक बैंक से दूसरे बैंक भेजे जाते हैं। इस प्रक्रिया की जांच तीन स्तरों पर की जाती है। स्विफ्ट इंस्ट्रक्शन का मतलब होता है कि बैंक की सहमति से यह किया जा रहा है। यानी बैंक इसे बनाता है, फिर इसकी जांच होती है और उसके बाद एक और बार सारी जानकारियां पुख्ता करके ही अगले बैंक तक इसे भेजा जाता है।तीन स्तरों पर की गई इस जांच प्रक्रिया के कारण इसे सुरक्षित माना जाता है और अब तक दुनिया में इसके कारण कोई धोखे की खबर नहीं आई है। लेकिन पीएनबी के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से आरोपी नीरव मोदी और उनके सहयोगियों ने यह धोखा भी कर दिखाया।जिन एलओयू (लेटर ऑफ अंडरटेकिंग) के जरिये 11300 करोड़ का घोटाला होता रहा, उन्हें यदि बैंक के सम्बन्धित अधिकारियों ने रिकॉर्ड पर नहीं लिया तो ये सीधे-सीधे अपराधिक षड्यंत्र की परिधि में आता है। लेकिन इस घोटाले में चूंकि अन्य बैंक भी शामिल थे, इसलिए ये बात बेहद रहस्यमय लगती है कि किसी ने भी समूचे लेनदेन पर न निगाह रखी और न ही संदेह व्यक्त किया।रिजर्व बैंक भी अपने तरीके से विभिन्न बैंकों के अलावा बड़े कारोबारियों की गतिविधियों पर निगाह रखता है। शेयर बाजार की उठापटक पर भी उसका ध्यान रहता है। इस लिहाज से जेटली द्वारा उठाए सवाल न तो अप्रासंगिक हैं और न ही अनावश्यक, क्योंकि उनके जरिये उन्होंने देशभर में फैली ऑडिट व्यवस्था को जिस तरह कठघरे में खड़ा कर दिया, वह महत्वपूर्ण है।कुछ समय पूर्व चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के अखिल भारतीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सीए के हस्ताक्षर प्रधानमंत्री के दस्तखत से भी अधिक शक्तिशाली होते हैं। ऐसा कहकर उन्होंने पूरी सीए बिरादरी को उसके कर्तव्यबोध से अवगत कराया था। इसमें दो मत नहीं है कि जितने भी बड़े आर्थिक घोटाले होते हैं, उनके पीछे कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं परोक्ष रूप से चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की भूमिका रहती है। इसलिए कि किसी भी व्यवसायिक प्रतिष्ठान की पूरी कुंडली वही बनाते हैं। आयकर महकमा भी उनके द्वारा प्रमाणित हिसाब-किताब को मान्य करता है। बैंक अथवा ऋण देने वाला कोई भी अन्य वित्तीय संस्थान सीए द्वारा बनाई प्रोजेक्ट रिपोर्ट के आधार पर ही निर्णय करता है।बैंकों की अपनी ऑडिट व्यवस्था के साथ बाहरी ऑडिट भी सीए द्वारा करवाया जाता है और इनके अतिरिक्त रिजर्व बैंक भी समय-समय पर अपने ऑडिटर भेजता है। इतनी सघन जांच के बाद भी अगर घोटाले होते हैं तो व्यवस्था में कमी अथवा खुल्लमखुल्ला भ्रष्टाचार ही इसकी वजह है। 

नीरव मोदी के पहले भी इस जैसे जितने कांड हुए, उनमें बैंक और सीए दोनों की संगामित्ति सामने आई थी। पंजाब नेशनल बैंक के कई अधिकारी अब तक पकड़े जा चुके हैं। लेकिन बड़ी मछलियां अब भी जाल से बाहर हैं। हो सकता है जांच एजेंसियां फूंक-फूंककर कदम रख रही हों, लेकिन वित्तमंत्री ने जिन-जिन पर निशाना साधा है, उन सभी की भूमिका की जांच के साथ ही इस बात पर राष्ट्रव्यापी मंथन होना चाहिए कि जिन पर गलती पकड़ने का दायित्व और अधिकार दोनों हैं, वे ही यदि लापरवाह हो गए या उसी गलती के हिस्से बन गए, तो फिर व्यवस्था को चरमराने से कौन और कैसे रोक सकेगा?यद्यपि पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार ऐसे प्रकरणों में खुद को बेदाग बताकर पूरा ठीकरा दूसरों पर फोड़कर स्वयं को बाइज्जत बरी कर लें, यह भी न्यायोचित नहीं होगा, लेकिन वित्तमंत्री जेटली ने जो मुद्दा छेड़ा, वह नीरव मोदी कांड के अलावा भी विचारणीय है, क्योंकि वित्तीय घोटाले कोई डकैती तो हैं नहीं कि पिस्तौल के दम पर लूटपाट हो जाए।वर्षों पूर्व जब पहला घोटाला हुआ, तभी यदि जांच और दंड प्रक्रिया में गंभीरता बरती गई होती, तब शायद घोटालेबाजों का हौसला इतना बुलंद न हुआ होता। स्थितियों को इतना खराब करने के लिए राजनीतिक बिरादरी की भूमिका भी कम जिम्मेदार नहीं है। बेहतर होता, जेटली उस पर भी उंगली उठाते।विपक्ष उनकी सरकार पर जबर्दस्त हमले कर रहा है। माल्या, नीरव और कोठारी जैसे घोटालेबाजों के कारनामे बिना सियासी संरक्षण के होते रहे, ये कोई नहीं मान रहा। वित्तमंत्री ने जिन-जिन पर तोहमत लगाई वे तो वाकई कसूरवार हैं ही, लेकिन सरकार में बैठे पूर्व और वर्तमान महानुभाव भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते, क्योंकि भ्रष्टाचार का असली स्रोत तो राजनीति ही है।अरुण जेटली में यदि साहस है तो वे ऐसे प्रकरणों में सरकारी स्तर पर होने वाली चूक का खुलासा भी करें। जिस दिन वे ऐसा कर देंगे, उस दिन से विश्वास का संकट भी कम होने लगेगा।दरअसल, आत्मावलोकन की सबसे ज्यादा जरूरत तो इस देश के राजनीतिक नेताओं को है, फिर चाहे वे सत्ता में हों या विपक्ष में। अब मोदी सरकार को यह राग अलापना बंद करना चाहिए कि उसका नोटबंदी का फैसला देश में आर्थिक भ्रष्टाचार रोकने में कामयाब रहा।पीएनबी घोटाले ने मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल उठता है कि क्या मोदी ने केवल गरीब लोगों के बैंक खाते को ही आधार कार्ड से लिंक करवाने के निर्देश दिए हैं? अब वित्तमंत्री ने इस घोटाले के लिए बैंकिंग व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन जेटली साहब बताएं कि व्यवस्था में पसरे इस भ्रष्टाचार को खत्म कौन करेगा?सार्वजनिक बैंकों में अचानक इतने बड़े घोटाले हो जाते हैं और अंतिम क्षणों तक मालूम भी नहीं होता। यह तभी मुमकिन है, जब बैंक के कुछ उच्च अधिकारी भी उसमें शामिल हों। आम जनता को ऋण देते वक्त जो गारंटियां व शर्तें रखी जाती हैं, वो अगर बड़े उद्यमियों के ऊपर लागू हों तो कम से कम आम जनता को तो खमियाजा नहीं भुगतना पड़ेगा।घोटाले के उपरांत दूसरे देश में जाकर बसने वालों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विचार-विमर्श के बाद कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए। संपत्ति के आधार पर ऋण व्यवस्था तो सही मापदंड है ही, इसके अलावा इन भ्रष्ट उद्यमियों के लिए और कठोर कायदे-कानून होने चाहिए। बैंक अधिकारियों की भी सतर्कता के साथ छानबीन होती रहनी चाहिए। (आईएएनएस/आईपीएन)

 

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