बिहार की राजनीति में मकर संक्रांति के मौके पर 'दही-चूड़ा भोज' की अपनी महत्ता रही है। इस भोज के जरिए दल के बड़े नेता एक आम कार्यकर्ता से मिलते रहे हैं, बल्कि महागठबंधन बनने के बाद राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद द्वारा नीतीश कुमार को दही का टीका (तिलक) लगाकर आर्शीवाद भी देते रहे हैं। यह दीगर बात है कि लालू के जेल में रहने और उनकी बहन की मौत के बाद उनके आवास 10 सर्कुलर रोड पर चर्चित 'दही-चूड़ा भोज' का आयोजन इस साल नहीं होगा। इस आयोजन के नहीं होने के कारण न केवल इसकी कमी राजद कार्यकर्ताओं को खलेगी, बल्कि बिहार के नए सियासी समीकरण में टीका का रंग भी फीका रहेगा। दूसरी तरफ जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह दही-चूड़ा भोज का आयोजन कर रहे हैं। इस भोज के बहाने ही सही, बिहार की राजनीति में सामूहिकता में दिखती है। मकर संक्रांति के अवसर पर बिहार की सियासत में सामूहिक भोज का एक दौर चलता है। प्रत्येक वर्ष राजद, जद (यू), भाजपा के अलावा कई अन्य नेताओं द्वारा व्यक्तिगत तार पर 'चूड़ा-दही भोज' का आयोजन किया जाता है। जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की ओर से इस साल दिए जाने वाला भोज पटना के 36, हार्डिग रोड स्थित आवास में होगा। इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत पार्टी के सभी वरीय नेता, सांसद, मंत्री, विधायक, विधान पार्षद, पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता शामिल होंगे। सिंह कहते हैं कि इस भोज में भाजपा के प्रदेश के नेताओं समेत मंत्रियों के अलावा केंद्रीय मंत्रियों को भी आमंत्रित किया जाएगा। भाजपा के नेता पांच साल बाद जद (यू) के दही चूड़ा भोज में शामिल होंगे। इससे पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक सरकार (राजग) की सरकार में 2013 के भोज में सभी शामिल हुए थे।
जद (यू) के एक नेता ने बताया कि भोज में भागलपुर का कतरनी चूड़ा, पश्चिमी चंपारण के मर्चा धान का चूड़ा समेत गया का तिलकुट परोसा जाएगा। इसके साथ-साथ भूरा-चीनी के अलावा आलू, गोभी, मटर, टमाटर की मिक्स सब्जी का भी नेता व कार्यकर्ता लुत्फ उठा पाएंगे। इसमें दियारा समेत ग्रामीण क्षेत्रों से दही आएगी, साथ ही सुधा डेयरी से भी दही मंगाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस भोज में सभी लोगों को बुलाया जाएगा। इस वर्ष लालू आवास पर चूड़ा दही भोज के आयोजन नहीं होने के कारण राजद के कार्यकर्ता मायूस हैं। राजद के एक नेता ने नाम प्रकाशित नहीं होने की शर्त पर कहा कि लालू के जेल में रहने के कारण भोज का आयोजन नहीं होना एक सही निर्णय है, परंतु इसका अफसोस है। इस आयोजन में बड़े नेताओं से मिलने का मौका मिलता था। इधर, राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी हालांकि कहते हैं, "आने वाले लोगों को उस दिन तो चूड़ा दही ही परोसा जाएगा। हां, बड़ा आयोजन नहीं किया जा रहा।"उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षो से मकर संक्रांति के अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के पटना स्थित आवास पर दो दिन यानी 14 और 15 जनवरी को 'चूड़ा-दही भोज' का आयोजन किया जाता रहा है, जिसमें कई राजनीतिक दल के नेताओं ने भोज का आनंद लिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लालू-राबड़ी आवास पहुंचते रहे हैं।
पिछले वर्ष लालू यादव ने खुद नीतीश का स्वागत किया था और दही का तिलक लगाया था, जिसकी चर्चा लालू आज भी सार्वजनिक रूप से करते रहे हैं। वैसे, ऐसा नहीं है कि लालू ने कोई बार नीतीश को दही का तिलक लगाया था। लालू ने तब कहा था कि यह टीका आर्शीवाद है। सब ग्रह-गोचर कट जाएगा। उस समय बिहार में राजद, कांग्रेस और जद (यू) महागठबंधन की सरकार थी। लालू के लिए चूड़ा-दही भोज का आयोजन कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चारा घोटाले के एक मामले में सुनवाई के दौरान लालू ने बुधवार को अदालत में न्यायाधीश से भी इसका जिक्र किया था। वैसे, इस साल जद (यू) के नेता भाजपा के नेताओं के साथ चूड़ा-दही का लुत्फ उठाएंगे, ऐसे में देखने वाली बात होगी कि इस साल नीतीश को दही का टीका कौन लगाते हैं, या नीतीश ही किसी को दही का टीका देंगे। वशिष्ठ नारायण सिंह चूड़ा-दही भोज के इतिहास के बारे में बताते हैं कि साल 1999 में दिल्ली के बीपी हाउस और नॉर्थ एवेन्यू से शुरू हुई सामूहिक भोज की यह परंपरा आज पाटलिपुत्र की धरती पर पहुंच गई है और लोगों को एक सूत्र में पिरोने का काम कर रही है। समाजवादी नेता सिंह कहते हैं कि इस भोज में किसी तरह की राजनीति नहीं देखी जानी चाहिए। इस भोज को सामाजिक सरोकार और मानवीय संवेदना से उपजी सामूहिक परंपरा की पवित्रता के नजरिये से देखना चाहिए। बहरहाल, जब कई दलों के नेता जब एक साथ एक पंगत में जुटेंगे, तब आम आदमी इसके सियासी मायने तो निकालेंगे ही।