मार्क्सवादी कमयुनिस्ट पार्टी (माकपा) की अगले महीने होने वाले राज्य सम्मेलन की तैयारियां जोरो पर हैं, और मुख्यमंत्री पिनरई विजयन पूरी तरह तैयार है कि उन्हें राज्य में कोई दूसरा टक्कर नहीं दे पाए और पार्टी पर उनकी पकड़ पूरी तरह बरकरार रहे। माकपा की 22 से 25 फरवरी तक त्रिशूर में होने वाले राज्य सम्मेलन से पहले उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि सभी 14 जिलों में जो वह कहें, वही हो।पहले पार्टी दो खेमों में बंटी हुई थी। पहला खेमा विजयन का और दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन का था। हालांकि अच्युतानंदन ने 2016 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के अभियान का नेतृत्व किया था, लेकिन विजयन ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा करने से रोक दिया। तब से सभी जगह विजयन छाए रहे और अच्युतानंदन पार्टी के छोटे धड़े के साथ रह गए। अन्य पार्टियों के विपरीत अगर बीतें वर्षो की स्थिति पर नजर दौड़ाई जाए तो, माकपा में अंतिम निर्णय पार्टी के राज्य सचिव का होता रहा है, जिसके बाद मुख्यमंत्री आता रहा है। विजयन की पार्टी पर मजबूत पकड़ का एक कारण 1998 से 2015 के बीच राज्य सचिव के रूप में 17 साल तक निर्बाध शासनकाल है, जिसके कारण ही उन्होंने व्यापक तौर पर लोकप्रिय अच्युतानंदन को पार्टी के किनारे पर लाकर खड़ा कर दिया है। अपने लंबे कार्यकाल के बलबूते वह किसी को भी अपनी मदद के लिए चुनने में सक्षम हैं। अगर अच्युतानंदन के साथ 2015 के राज्य सम्मेलन के दौरान एक धड़ा मौजूद था तो इस दफा विजयन के पास खुला मैदान है। जहां उन्हें टक्कर देने के लिए कोई नहीं है।
अगले महीने के अंत में होने वाली 14 जिलों के नेताओं की बैठक में इस दफा केवल 72 वर्षीय विजयन का एक छत्र राज रहेगा।विजयन ऐसा करने में इसलिए कामयाब रहे, क्योंकि उन्होंने देख लिया कि अच्युतानंदन को जिला बैठकों से बाहर रखा गया। राज्य के अन्य पोलित ब्यूरो सदस्य एम.ए. बेबी को भी इस दफा किनारे कर दिया गया है। वर्तमान राज्य सचिव और विजयन के करीबी व पोलित ब्यूरो सदस्य कोडियेरी बालाकृष्णन को राज्य सम्मेलन में दूसरा कार्यकाल मिल सकता है। अप्रैल माह में हैदराबाद में होने वाली माकपा के 22वें अधिवेशन में शामिल होने के लिए 175 सदस्यों के चुनाव से इतर अब सभी की निगाहें राज्य समिति और राज्य सचिवालय के गठन पर टिकी हुई है। पश्चिम बंगाल में पार्टी इकाई की घटती धाक मुख्यमंत्री के लिए फायदे का सौदा साबित हुई है। हालांकि माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के साथ विजयन के संबंध अब अच्छा नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व महासचिव प्रकाश करात की तरह विजयन भी चुनाव में कांग्रेस से किसी भी तरह के गठबंधन के सख्त खिलाफ हैं। करात भी केरल से हैं। वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी और दक्षिणपंथी ताकतों के उदय से चिंतित येचुरी कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं। अब सवाल यह है कि क्या विजयन अपनी स्थिति को मजबूत करने में सक्षम होकर हैदराबाद में किंगमेकर की भूमिका निभा पाएंगे?