पानी की समस्या को देखते हुए छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर तिलहन और दलहन की खेती इस बार की गई है। लेकिन प्रदेश में लगातार ठंड बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में जैसे ही ठंड घटेगी कुहरे के साथ हिमालय से आए माहो के कीट सरसों की फसलों पर छा जाएंगे। इसके बाद उसको पूरी तरह चौपट कर देंगे। इसी तरह उड़द की फसलों पर भभूति रोग की भी आशंका बनी हुई है। यह जानकारी इंदिरागांधी कृषि विश्व विद्यालय के अनुसंधान विभाग के निदेशक डॉ. एसएस राव ने सोमवार को दी। उन्होंने कहा कि ठंड कम होते ही अगर आसमान पर बदली छाई तो समझ लीजिए कि सरसों और उड़द की फसलों पर मुसीबत आई। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे अपनी फसलों की लगातार निगरानी करें। इसके अलावा कीटनाशक दवाओं का स्प्रे कर इससे अपनी फसलों को बचा सकते हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय के कीट पतंग विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टर युगल किशोर यदु ने कहा कि जब हिमालय से बफीर्ली तेज हवाएं चलती हैं तो माहो के कीट इन्हीं के साथ उड़ते हुए आगे बढ़ते हैं। अब जहां हवा का वेग कम हो जाता है, वहीं ये कीट खेतों में गिर पड़ते हैं। इसके बाद ये तेजी से बढ़ते हैं। ऐसे में इनका प्रकोप सरसों के खेतों में ज्यादा देखा जाता है। ये पूरे तने को चारों ओर से घेर लेते हैं। इसके बाद उसको धीरे-धीरे खाना शुरू कर देते हैं। उड़द की पत्तियों पर भी भभूत जैसा रंग दिखाई देता है, जिसे भभूति रोग कहा जाता है। ये भी कीटों का ही किया धरा होता है। दोनों ही दशा में फसलों को काफी नुकसान होता है। कीट-पतंग विशेषज्ञ डॉ. युगल किशोर यदु ने कहा कि अगर ऐसी कोई भी स्थिति दिखाई पड़े तो सबसे पहले कीट नाशक दवाओं में से किसी एक दवा का छिड़काव करें। इसके 15 दिन बाद दूसरी दवा का छिड़काव करें। यदि इनसे भी फायदा नहीं हुआ तो तीसरी दवा का छिड़काव करें। वैसे भी एक दवा का छिड़काव किसान दोबारा उस फसल पर न करें, क्योंकि दवा के छिड़काव के बाद कीट उससे लड़ने की क्षमता अपने अंदर विकसित कर लेते हैं। ऐसे में वो दवा फिर बेकार साबित होती है। इसके लिए प्रभावी दवाएं मेटासिस्टिक, डायमेथोएट और क्लोरोपायरीन प्रमुख हैं।