राष्ट्रीय सामाजिक कार्यकर्ता संगठन के संयोजक मुहम्मद आफाक के नेतृत्व में विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक संगठनों ने विधानसभा मार्ग ओसीआर बिल्डिंग के सामने आरएसएस के सर संघ चालक मोहन भागवत का पुतला फूंका। पुतला फूंकने वालों में मुख्य रूप से जनहित संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष हाजी मुहम्मद फहीम सिद्दीकी, भागीदारी आंदोलन के संयोजक पी.सी. कुरील, मुस्लिम फोरम के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. आफताब, मौलाना कमर सीतापुरी सहित कई अन्य उपस्थित थे।जनहित संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष हाजी मुहम्मद फहीम सिद्दीकी ने मोहन भागवत से सवाल किया, "यदि भारतीय नागरिकों को वह हिंदू समझते हैं तो 1925 से अब तक आरएसएस का प्रमुख केवल ब्राह्मण ही क्यों होता है। दलित, मुस्लिम, ईसाई, सिख आदि क्यों नहीं? ब्राह्मण समाज में समानता है ही नहीं, वहां तो केवल ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। धर्म पुरोहित को ही ऊपर बैठने का अधिकार है, शूद्रों पर तो केवल अत्याचार ही सदियों से होता रहा है, उनसे गुलामी ही कराई जाती रही है।"उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान दलितों का वोट लेने के लिए उनको हिंदू सूची में जोड़ लिया जाता है।
मुहम्मद आफाक ने कहा, "आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत कुछ-कुछ समय पर अराजकता फैलाने वाले सांप्रदायिक भाषण देते रहते हैं। इधर फिर भारत में रहने वाले सभी लोगों को हिंदू बताकर तमाम धर्मो का अपमान किया है। मोहन भागवत बताएं कि वह हिंदू कब से हैं? क्योंकि रामायण, गीता आदि ग्रंथों में तो हिंदू का वर्णन कहीं मिलता नहीं है।"आफाक ने कहा, "वहां तो केवल ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया और शूद्र की पहचान रही है। चुनाव के अवसर पर कभी दलितों का आरक्षण समाप्त करने की बात करते हैं तो कभी सारे देशवासियों को हिंदू बताते हैं। यदि वह दलितों को हिंदू मानते हैं तो उन मंदिरों में जहां आज भी दलितों का प्रवेश वर्जित है, वहां दलित को पुजारी बनाएं।"उन्होंने कहा, "आरएसएस सर संघ चालक किसी दलित को बनाओ। अंग्रेजों की गुलामी करने वाले मनुस्मृति का कानून लागू करना चाहते हैं, लेकिन भगवा चोला याद रखे कि यह भारत है, यहां विभिन्न धर्म के मानने वाले रहते हैं, सब स्वतंत्र हैं, अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। यहां मनुस्मृति वाला कानून नहीं चल सकता। यहां अगर राम की पूजा होती है, तो रहमान की भी इबादत होगी। सारे भारतवासी एकता और अखंडता बनाए रखने का प्रयास करें। एकता में ही शक्ति है और शक्ति में सम्मान है।"