बिहार के पूर्णिया, अररिया, कटिहार, सुपौल सहित 14 जिलों में आई बाढ़ ने कई लेागों की गृहस्थी उजाड़ दी। लोग अपने गाम-घर छोड़कर ऊंचे स्थानों या शिविरों में जाना तो नहीं चाहते, लेकिन अपनी जिंदगी बचाने के लिए उन्हें अपने आशियाना छोड़कर अन्य स्थानों पर पनाह लेना पड़ रहा है। पूर्णिया जिले के बायसी, अमौर, डगरूआ प्रखंड के गांवों में ध्वस्त आशियाने और बिखरे मलबे ने बाढ़ की कहानी बयां कर रही है। गांव में तबाही के मंजर ने लोगों को न केवल अपनों से दूर कर दिया, बल्कि उन्हें अब अपनी गृहस्थी बसाने की चिंता सताने लगी है। सुपौल के बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी और उनकी सहायक नदियों के रौद्र रूप ने सबकुछ लूाट लिया है। मरौना प्रखंड के अमीनटोला, सुखनाहा, लक्षमिनिया सहित तटबंध के अंदर बसे कई गांवों में कटाव के कारण उनके अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है। सुपौल के 181 गांवों में बाढ़ का पानी फैला हुआ है। कई क्षेत्रों में आई बाढ़ से गांव के लोग पलायन कर गए हैं। अपने घर को छोड़ने का दर्द और अपनों से बिछुड़ने का गम इन लोगों के चेहरे पर साफ झलकता है, मगर अपनी जिंदगी बचाने के लिए करीब-करीब हर साल इन्हें यह कुर्बानी देनी पड़ती है।
सुपौल के छातापुर प्रखंड की अधिकांश सड़के बाढ़ के पानी में टूट गई। कई गांव के लोगों ने खुद की व्यवस्था कर गांव से पलायन कर गए परंतु अब आगे की जिंदगी बसर करने की चिंता है। छातापुर के रहने वाले कामेश्वर अपने पूरे परिवार के साथ पास के ही एक सड़क पर आसरा लिए हुए हैं। उनका कहना है, "आंखों के सामने उनका आशियाना बाढ़ ने उजाड़ दिया और मैं बेवश था। बाढ़ आशियाने पर हथौड़ा चला रही थी और मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि शायद कुछ बच जाए जो भविष्य की नींव रखने के काम आए परंतु शायद तिनका भी नहीं छोड़ा।"पूर्णिया के बायसी प्रखंड के मल्हेरिया गांव पानी में अब भी घिरा है, लेकिन अब पानी कुछ कम हुआ है। ऐसे में सड़क पर अपना आशियाना बनाए कुछ लोग प्रशासन के रोक के बावजूद अपने घर की ओर लौट रहे हैं। उनके मन में अपने स्थायी आशियाने को देखने की ललक है। उन्हें आस है कि भगवान ने उनके तिनका-तिनका जोड़कर बनाए गए गृहस्थी को पूरा नहीं उजाड़ा होगा।
पूर्णिया के अमौर के 70 वर्षीय महबूब आलम ऐसे खुशनसीब नहीं निकले। बाढ़ ने उनके घर को ही नहीं उजाड़ा उनकी जमापूंजी भी छीन ली। आलम कहते हैं कि उन्होंने बडे परिश्रम से एक-एक पाई जोड़कर, अपने और अपने परिवार के सभी शौकों को तिलांजलि देकर बेटी की शादी के लिए 80 हजार रुपये जुटाए थे, लेकिन अचानक आई बाढ़ में रुपये गुम हो गए। वे कहते हैं कि वे अपना गांव-घर नहीं छोड़ना चाहते थे, लेकिन प्रशसन ने उन्हें बाहर लाया। इधर, पूर्णिया के अमौर के रहटिया के गांव में भी बाढ़ का कहर अपने साथ कई परिवारों की जिंदगी को तबाह कर दिया। गांव की रहने वाली नाजरीना के लिए बाढ़ ने तो ऐसा दर्द दिया है कि वह इस दर्द की कभी भूल ही नहीं सकेगी। बाढ़ का पानी भले ही इस गांव में उतर रहा हो, मगर नाजरीना के लिऐ बाढ़ ने तो जिंदगी का सबसे बड़ा जख्म दे दिया है। इस बाढ़ ने नाजरीना के छह माह के बच्चे को बहा लिया। बाढ़ के नाम से ही अब यह मां सिहर जा रही है। उल्लेखनीय है कि बिहार के 14 जिलों के 110 प्रखंड के 1151 ग्राम पंचायतों की 73 लाख से ज्यादा की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। बाढ़ से अब तक 75 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है।