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भयावह समय में साहित्य पर चर्चा

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5 Dariya News

नई दिल्ली , 13 Aug 2017

प्रसिद्ध कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने जब कहा कि इस 'भयावह समय में साहित्य पर चर्चा अत्यंत सुखद है और ऐसे समय में साहित्य की उपयोगिता और बढ़ जाती है', तब एक बारगी लगा कि अरे, कवि यह क्या कह गए! ठीक उसी तरह, जैसे उपराष्ट्रपति पद से विदाई के समय हामिद अंसारी के कहे शब्दों पर हाय-तौबा मचा और सत्तापक्ष से जुड़े बड़े नेताओं को कहते सुना गया, 'अरे, जाते-जाते यह क्या बोल गए अंसारी!' कवि वाजपेयी ने राष्ट्रीय राजधानी में शनिवार की शाम साहित्य की तीन उत्कृष्ट कृतियों के रचनाकारों को कुसुमांजलि साहित्य सम्मान से अलंकृत किए जाने के मौके पर 'भयावह समय' का जिक्र करते हुए सिर्फ इतना कहा, "आजकल टीवी के सामने पांच मिनट बैठ जाइए, यह समय कितना भयावह होता जा रहा है, यह पता चल जाएगा।"उन्होंने सम्मानित उपन्यास 'मिठो पानी खारो पानी' की लेखिका जया जादवानी के सम्मान में प्रशस्तिपत्र पढ़ते हुए कहा कि जया का यह उपन्यास कथाशिल्प का नया प्रतिमान है। इसे पढ़ते हुए लगता है, जैसे सिंधु नदी के किनारे खड़े हों और इतिहास के पांच हजार साल पुराने पन्ने आंखों के सामने फड़फड़ा रहे हों।

वहीं जया जादवानी ने कहा, "लेखन अपने भीतर चुभी हुई कीलें निकालने जैसा है। इस उपन्यास में खो रही संस्कृति और खो रही मनुष्यता की दास्तान है।..खुद को ढूंढ़ना बहुत कठिन है, मैंने इसके जरिए खुद को ढूंढ़ने का प्रयास किया है।"दूसरी सम्मानित कृति 'काल कथा' (पंजाबी) के शिल्पी मनमोहन सिंह बावा के लिए प्रशस्तिपत्र पढ़ते हुए साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता सुरजीत पातर ने कहा कि प्रसिद्ध चित्रकार मनजीत बावा के बड़े भाई मनमोहन ने अपनी कहानियों में खामोशियों को गाया है।मनमोहन ने कहा, "मैं दुनिया खूब घूमा, चित्रकारी भी करता रहा और बीच-बीच में कुछ लिख लिया करता था। जिंदगी में कामयाबी मेरा मकसद कभी नहीं रहा। इत्तेफाक से मेरी आवारागर्दी को ही कामयाबी मान ली गई है।"तीसरी सम्मानित कृति 'अंतहीन' (पंजाबी कथा-संग्रह) के लेखक किरपाल कजाक ने कहा, "आज सम्मानित होकर लगा, आसमान की सैर करने वालों ने जमीन से जुड़े एक शख्स के सिर पर हाथ फेर दिया हो। ऐसा होने से जिंदगी में विश्वास लौट आता है। मेरे लिए यह ज्ञानपीठ पुरस्कार से बड़ा है, क्योंकि इसमें चयन में पारदर्शिता और निष्पक्षता झलकती है। हमें अपना काम करते रहना चहिए, कहीं बैठे ईमानदार लोग मेहनतकशों को जरूर देख रहे होते हैं।.. आप सबका ही तो नूर है, वरना इस अंधेरे में मुझे कौन पहचानता?" 

तीनों साहित्यकार कर्नाटक एवं केरल के पूर्व राज्यपाल टी.एन. चतुर्वेदी के हाथों सम्मानित हुए। सम्मान स्वरूप उन्हें प्रशस्तिपत्र, नकद 2,50,000 रुपये और स्मृति-चिह्न प्रदान किए गए।इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कुसुमांजलि फाउंडेशन की ओर से आयोजित समारोह में टी.एन. चतुर्वेदी का परिचय देते हुए साहित्य अकादेमी के पूर्व सचिव इंद्रनाथ चौधुरी ने कहा कि बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने जीवन का लंबा समय प्रशासक के रूप में गुजारने वाले चतुर्वेदी का किताबों से इतना प्रेम है कि उनके घर में एक समृद्ध पुस्तकालय है और वह आज भी कोई अच्छी किताब देखते हैं, तो खरीद लेते हैं।कुसुमांजलि फाउंडेशन की संस्थापक व प्रसिद्ध लेखिका कुसुम अंसल ने कहा कि पंजाबी में दो कृतियों को सम्मान इसलिए दिया गया, क्योंकि निर्णायक असमंजस में पड़ गए। दोनों श्रेष्ठ कृतियां हैं, दोनों में कोई उन्नीस-बीस नहीं है।उन्होंने कहा, "कुसुमांजलि फाउंडेशन हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की दो सर्वश्रेष्ठ कृतियों को हर साल सम्मानित करता है। आज यह परंपरा छठे साल निभाई गई है।" यह पूछे जान पर कि क्या मैथिली भाषा की श्रेष्ठ कृतियां भी यह सम्मान पाने की हकदार हैं? उन्होंने कहा, "हां, क्यों नहीं। प्रविष्टियां भेजी जाएं।" 

 

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