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नाट्य विधा में निखरे भगत सिंह के कई रूप

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5 Dariya News

नई दिल्ली , 09 Jul 2017

जानेमाने रंगकर्मी पीयूष मिश्रा ने एक नाटक लिखा है 'गगन दमामा बाज्यो'। इसे राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। फिल्म 'द लिजेंड ऑफ भगत सिंह' के लेखन में इस संगीतमय नाटक का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी नाट्य-लेखन और रंग-परंपरा में इस नाटक को मील का पत्थर माना जा रहा है। इस नाटक के लिए दिल्ली के प्रसिद्ध 'एक्ट-वन नाट्य समूह' और खुद पीयूष मिश्रा ने इतना शोध और परिश्रम किया था कि भगत सिंह पर इतिहास की कोई पुस्तक बन जाती, लेकिन उन्हें नाटक लिखना था, जिसकी अपनी अलग संरचना होती है, सो उन्होंने नाटक विधा में भगत सिंह की एक अलग छवि पेश की है।इस नाटक में क्रांतिकारी भगत सिंह के कई रूप देखने को मिलते हैं। सुखदेव से एक न समझ में आनेवाली मित्रता में बंधे भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद के प्रति एक लाड़-भरे सम्मान से ओत-प्रोत भगत सिंह, महात्मा गांधी के प्रति खास नजरिया रखनेवाले भगत सिंह, नास्तिक होते हुए भी गीता और विवेकानंद में आस्था रखनेवाले भगत सिंह, मां-बाप और परिवार से अपने असीम मोह को एक स्थितप्रज्ञ फासले से देखनेवाले भगत सिंह, पढ़ाकू, जुझारू, खूबसूरत, शांत, हंसोड़, युगद्रष्टा, दुस्साहसी और.. प्रेमी भगत सिंह। 

यह नाटक हमारे उस नायक को एक जीवित-स्पंदित रूप में हमारे सामने वापस लाता है, जिसे हमने इतना रूढ़ कर दिया कि उनके विचारों के धुर दुश्मन तक आज उनकी छवि का राजनीतिक इस्तेमाल करने में कोई असुविधा महसूस नहीं करते।यह नाटक पढ़ें, और जब मंचन हो तो देखने जाएं और पढ़ने के दौरान हुए अपने अनुभव का मिलान मंचन से जरूर करें। नाटक के साथ इस किताब के जिल्द में निर्देशक एन.के. शर्मा की टिप्पणी भी है, और पीयूष मिश्रा का लिखा एक खूबसूरत आलेख के साथ भगत सिंह की लिखी पठनीय सामग्री भी। लेखक पीयूष मिश्रा का परिचय देना यहां मुमकिन नहीं, क्योंकि उन्हें यह पसंद नहीं है। दोस्तों के बीच 'पीयूष भाई' और छात्रों के बीच वह 'सर' हैं। उन्होंने वर्ष 1983-2003 तक दिल्ली में थिएटर किया। आजकल सिनेमा नगरी मुंबई में अलग तरह के पटकथा लेखन में व्यस्त हैं, इस उम्मीद के साथ कि एक दिन वहां भी बदलाव आएगा। 

 

Tags: BOOK

 

 

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