मानेमाने पत्रकार अरविन्द मोहन की एक ताजा किताब आई है, 'बिहारी मजदूरों की पीड़ा'। यह किताब पंजाब जानेवाले बिहारी मजदूरों पर किए गए अध्ययन पर आधारित है। लेखक के साल-भर गहन अध्ययन, लंबी यात्राओं और मजदूरों के साथ बिताए समय से जुड़े संस्मरणों के कारण यह पुस्तक आधिकारिक दस्तावेज और किसी रोचक कथा जैसी बन पड़ी है। मजदूरों का विस्थापन न तो अकेले भारत में हो रहा है, न आज पहली बार। सभ्यता के प्रारंभ से ही कामगारों-व्यापारियों का आवागमन चलता रहा है, लेकिन आज भूमंडलीकरण के दौर में भारत में मजदूरों को प्रवासी बनानेवाली स्थितियां और वजहें बिल्कुल अलग किस्म की हैं। उनका स्वरूप इस कदर अलग है कि उनसे एक नए घटनाक्रम का आभास होता है। ज्ञात इतिहास में शायद ही कभी, लाखों नहीं, करोड़ों की संख्या में मजदूर अपना घर-बार छोड़कर कमाने, पेट पालने और अपने आश्रितों के भरण-पोषण के लिए बाहर निकल पड़े हों। देश के सबसे पिछड़े राज्य बिहार और सबसे विकसित राज्य पंजाब के बीच मजदूरों की आवाजाही आज सबसे अधिक ध्यान खींच रही है। यह संख्या लाखों में है। लेखक के मुताबिक, पंजाब की अर्थव्यवस्था, वहां के शहरी-ग्रामीण जीवन में बिहार के 'भैया' मजदूर अनिवार्य अंग बन गए हैं और बिहार के सबसे पिछड़े इलाकों के जीवन और नए विकास की सुगबुगाहट में पंजाब की कमाई एक आधार बनती जा रही है।
पंजाब और बिहार के बीच शटल की तरह डोलते मजदूरों की जीवन-शैली की टोह लेती यह कथा कभी पंजाब का नजारा पेश करती है तो कभी बिहार के धुर पिछड़े गांवों का। शैली इतनी रोचक और मार्मिक है कि लाखों प्रवासी मजदूरों और पंजाब पर उनके असर के तमाम विवरणों का बखान करती यह पुस्तक कब खत्म हो जाती है, पता ही नहीं चलता।अरविन्द मोहन हिंदी पत्रकारिता का एक परिचित नाम हैं। वह जनसत्ता, हिन्दुस्तान और अमर उजाला जैसे अखबारों और पत्रिका इंडिया टुडे (हिंदी) के संपादन विभाग में प्रमुख पदों पर रहते हुए गंभीर लेखन और अध्ययन आधारित ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। आजकल वह एबीपी न्यूज समेत कई चैनलों पर राजनैतिक विश्लेषण करने के साथ अध्यापन और लेखन करते हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया समेत कई स्थानों पर अतिथि अध्यापक के तौर पर जुड़े हैं। उन्होंने पत्रकारिता और अध्यापन के साथ खूब लेखन और अनुवाद भी किए हैं। पिछले काफी समय से वह गांधी के चंपारण सत्याग्रह से जुड़े तथ्यों का अध्ययन कर रहे थे, जिस पर उनकी कई किताबें आई हैं। यह किताब भी उनके अध्ययन और समझ को अच्छी तरह बताती है जो पंजाब गए बिहारी मजदूरों के जीवन-संघर्ष पर आधारित है।