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नर्मदा तो औषधीय पौधों से होगी पवित्र

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5 Dariya News

भोपाल , 30 Jun 2017

मध्यप्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी को अविरल और प्रदूषण मुक्त करने के लिए जनजागृति लाने को 'नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा' निकाली, अब नर्मदा के तटों पर दो जुलाई को बड़े पैमाने पर पौधरोपण होने जा रहा है, मगर सरकार अभी तक उस दिशा में नहीं सोच पाई है, जिससे नर्मदा नदी पवित्र होकर पुराने रूप में लौट सकती है और वह है नदी का राइपेरियम जोन (नदी तट का 20 मीटर का हिस्सा), जहां घास, झाउ से लेकर औषधीय पौधों का होना जरूरी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग सात माह से नर्मदा नदी के तट पर बसे गांव के लोगों के दिल और दिमाग में एक ही बात स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं कि यह नदी किसी ग्लेशियर से नहीं निकलती, बल्कि यह तो पेड़ की जड़ों से रिसने वाले पानी के चलते प्रवाहमान होती है। पेड़ों के कट जाने से नर्मदा में पानी कम हुआ है, इसलिए दो जुलाई को नर्मदा नदी के बेसिन में छह करोड़ से ज्यादा पौधे रोपे जाएंगे।

मुख्यमंत्री ने 11 दिसंबर से 15 मई तक नर्मदा सेवा यात्रा भी निकाली थी, जिसमें तिब्बती आधात्मिक गुरु दलाई लामा भी शामिल हुए थे। इस यात्रा के समापन पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे।नर्मदा किनारे के गांवों में जाकर आज से लगभग 60 से 70 वर्ष पूर्व की नर्मदा की स्थिति के बारे में जाना जा सकता है। वहां के लोग बताते हैं कि नर्मदा के तट पर तरह-तरह की घास, झाउ, औषधीय वनस्पतियां और जीव-जंतु हुआ करते थे। पहले बड़े-बड़े पेड़ हुआ करते थे। धीरे-धीरे वे पेड़ भी कट गए। एक कमी यह है कि नदी में जाने वाले पानी को पवित्र करने वाली औषधीय पेड़-पौधे नहीं हैं, दूसरी बात यह कि गंदे नालों का पानी उसमें मिल रहा है। वास्तव में नर्मदा नदी का किनारा छह से सात दशक पहले कैसा था, यह जानने का प्रयास होशंगाबाद जिले में किया गया। वहां नदी के तट पर बसे गांव-गांव में जाकर बुजुर्गो से पुराने हालात का ब्यौरा जुटाने पर जो बातें सामने आईं, उस बारे में कम ही लोगों को पता है।

नर्मदापुरम् संभाग के संभागायुक्त उमाकांत उरांव ने आईएएनएस को बताया कि उन्हें गांव वालों के बीच पहुंचने पर पता चला कि नदी के तट पर 400 से ज्यादा वनस्पति प्रजातियां थीं और 130 से ज्यादा प्रजातियों के जीव-जंतु थे, जो अब नजर नहीं आते। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि वनस्पति प्रजातियां और औषधीय पौधे नदी में जाने वाले पानी के लिए इंसान के गुर्दे, हृदय, फेफड़े की तरह काम करते थे, जिससे नदी में जाने वाला पानी शुद्ध नहीं, बल्कि पवित्र होता था। उरांव बताते हैं, "नदी के तटीय हिस्से को राइपेरियम जोन कहा जाता है, जिसमें चार हिस्से होते हैं- रेत (आर-1), मिट्टी (आर-2), ढाल (आर-3) और समतल हिस्सा (आर-4)। इन हिस्सों का उपयोग किए जाने से ही नदी की पवित्रता बनी रहती है। इसके लिए हमने जन अभियान परिषद और अन्य संगठनों के साथ मिलकर समुदाय आधारित वनस्पति रोपण योजना बनाई है।" वे बताते हैं कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती उन वनस्पतियों को खोजना या उनके बीज पाना था, जो छह से सात दशक पहले हुआ करते थे। इसके लिए जन सहयोग मांगा, तो लोग बढ़कर आगे आए। इसके चलते उन्हें 200 प्रजातियों के बीज मिल गए। बीज कई क्विंटल थे। 

अब सवाल था कि समुदाय को इससे कैसे जोड़ा जाए, तो इसके लिए नदी के नजदीकी गांव में नर्मदा परिवार बनाए गए, इन परिवारों में तीन से पांच परिवारों का समूह शामिल किया गया। आर-1 और आर-2 में झाड़, झाड़ी, झंखाड़ व झाउ का रोपण किया गया। वैज्ञानिक रिपोर्ट से पता चलता है कि नर्मदा नदी की पीएच वैल्यू चार से नीचे चली गई है, जबकि पूर्व में पीएच वैल्यू सात से आठ हुआ करती थी। नदी की पीएच वैल्यू बढ़ाने में राइपेरियम जोन की अहम भूमिका होती है, पीएच वैल्यू बढ़ने से पानी में जीव-जंतु जन्म लेते हैं, ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है और यही पानी को पवित्र करती है। उरांव आगे बताते हैं कि होशंगाबाद जिले के लगभग 120 किलोमीटर से होकर नर्मदा नदी गुजरती है। यह किसी एक आदमी और सरकारी कर्मचारियों के जरिए संभव नहीं था। नर्मदा नदी के किनारे के गांव के लोगों की और हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 50 मीटर चौड़े दो हजार नर्मदा खंड बनाए गए। इससे 100 किलो मीटर का हिस्सा आ गया। नर्मदा परिवार को एक एक नर्मदा खंड की जिम्मेदारी दी गई। वे बताते हैं कि नर्मदा खंड में डाले गए बीज के साथ पौधे की सुरक्षा हो इसके लिए लोगों की हिस्सेदारी आवश्यक थी, वह बनी रहे, इसके लिए जनसहयोग से सबसे अच्छे नर्मदा परिवार खंड को एक लाख से लेकर 11 हजार तक के पुरस्कार तय किए गए हैं। इन खंडों में करोड़ों की संख्या में बीजों का रोपण किया जा चुका है। 

राइपेरियम जोन के महत्व का जिक्र करते हुए उरांव कहते हैं कि पहाड़ या अन्य स्थान से आने वाला पानी जब इस हिस्से में लगी झाड़, झंखाड़, बेला, बांस, औषधीय पौधों से होकर गुजरता है, तो उसके हानिकारक तत्व खत्म हो जाते हैं और वह प्रदूषण मुक्त होने के साथ पवित्र भी हो जाता है, क्योंकि उसमें उन वनस्पतियों के अंश आ जाते हैं, जिनसे वह निकलता है। वहीं होशंगाबाद में दो जुलाई को 32 लाख से ज्यादा पौधों के रोपण किया जाना है, यह नर्मदा बेसिन में होगा। बेसिन का अर्थ है नर्मदा से मिलने वाली नदियां, नाले व अन्य जलस्रोत। प्रदेश में छह करोड़ से ज्यादा पौधे रोपे जाने हैं। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश का अमरकंटक है। यह नदी 16 जिलों से होकर गुजरती है और कुल 1077 किलोमीटर का रास्ता तय करती है, अब सवाल उठ रहा है कि क्या उन सभी जिलों के नदी तटों पर राइपेरियम जोन में काम हुआ है या सिर्फ छह करोड़ पेड़ लगाने की तैयारी ही चल रही है? अगर सिर्फ साधारण पौधे लगे और राइपेरियम जोन में औषाधीय वस्पतियां नहीं रोपी गईं तो नर्मदा नदी के पवित्र और पुराने रूप में लौटने का संशय बना रहेगा। 

 

Tags: KHAS KHABAR

 

 

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