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50 करोड़ रुपये के बजाय 50 लाख रुपये वाली फिल्म करना चाहूंगा : नवाजुद्दीन सिद्दीकी

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5 Dariya News

नई दिल्ली , 21 Jun 2017

चाहे वह दिग्गज लेखक सआदत हसन के किरदार को फिल्म 'मंटो' में जीवंत करना हो या फिल्म 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' में अब तक का सबसे 'बेशर्म' किरदार हो, अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी उन फिल्मों का हिस्सा बन रहे हैं, जो अब तक राज रहे पहलुओं को उजागर करने का काम कर रही हैं। जहां मौजूदा दौर में बड़े बजट में बनी फिल्म 'बाहुबली' ने भारतीय फिल्म उद्योग के लिए एक नई मिसाल पेश की है, वहीं बहुमुखी प्रतिभा के धनी अभिनेता का कहना है कि किसी फिल्म को करने का फैसला वह उसके बजट, उससे जुड़े निर्देशक या कलाकारों को देख कर नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि फिल्म चाहे कितनी ही बड़ी हो या इससे चाहे कितने ही मशहूर निर्देशक जुड़े हों, लेकिन जब तक उन्हें फिल्म समझ में नहीं आती, वह नहीं करते हैं। नवाजुद्दीन के मुताबिक, "अगर कोई कहता है कि यह 50 करोड़ रुपये के बजट वाली या 70 करोड़ रुपये बजट वाली फिल्म है, तो मैं उसे छोड़ दूंगा और 50 लाख रुपये बजट वाली फिल्म करूंगा, क्योंकि संतुष्टि मेरे लिए बहुत मायने रखती है। शायद 50 करोड़ रुपये की फिल्म मुझे अपनी अभिनय क्षमता के उस नए पहलू को दिखाने का मौका न दे, जो एक छोटे बजट की फिल्म दे सकती है।"अभिनेता ने कहा, "अगर कहानी सुनकर मुझे अंदर से कुछ अलग महसूस नहीं होता है, तो मैं इसे नहीं करूंगा..बजट चाहे जो भी हो।

"फिल्म 'सरफरोश' (1999) से आगाज करने वाले नवाजुद्दीन ने फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में अपनी बेहतरीन अभिनय क्षमता से दर्शकों का दिल जीत लिया।जहां नंदिता दास निर्देशित फिल्म 'मंटो' पहले ही कान्स फिल्म महोत्सव में तारीफें बटोर चुकी है, वहीं फिल्म 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' का ट्रेलर देखने पर आपको पता चलेगा कि नवाजुद्दीन इस फिल्म में कितने बोल्ड अवतार में हैं। उत्तर प्रदेश के रहने वाले नवाजुद्दीन ने कहा, "'बाबूमोशाय..' बहुत अजीब और टेढ़ी-मेढ़ी फिल्म है। मैं नहीं जानता कि कितने लोग इसे पसंद करेंगे, क्योंकि हमें हल्की-फुल्की, सौम्य या देशभक्ति की फिल्में देखने की आदत है, लेकिन यह फिल्म सारी सीमाओं को तोड़ती है।"अभिनेता के अनुसार, "यह फिल्म वास्तविकता को दर्शाती है और इसमें सारी 'बेशर्मी' है, जिससे बचने की कोशिश की जाती है। समाज में चारों ओर आडंबर करने वाले भरे पड़े हैं, जो कहते हैं कि उन्हें ये सब चीजें नहीं देखनी, लेकिन मौका पाकर एकांत में वे ये सब देखते हैं और जब समाज में बाहर निकलते हैं तो 'शरीफ' बन जाते हैं।" अभिनेता ने कहा, "यह फिल्म सारी वर्जनाएं तोड़ देती है और मैं कहूंगा कि 'बहुत ही बेशरम फिल्म है ये'।

"वहीं फिल्म 'मंटो' में वह लेखक की सादगी और नफासत को पर्दे पर उतारते नजर आएंगे, जो (सआदत हसन मंटो) अभिव्यक्ति की आजादी के जबरदस्त पैरोकार थे। अभिनेता के अनुसार, "मैं उस तरह की भूमिकाएं कर रहा हूं, जो मैं वास्तव में करना चाहता हूं। फिल्म उद्योग मुझे ऐसी भूमिकाएं दे रहा है। मैं कभी भी ज्यादा नायक या खलनायक परक वाली फिल्में नहीं करना चाहता, हमारी हिंदी फिल्मों के नायक को ऐसी भूकिाएं मिलने में बिल्कुल असुविधा नहीं होती है..इसलिए मुझे ऐसे किरदारों में कोई दिलचस्पी नहीं है।"नवाजुद्दीन ने कहा, "मैं ऐसे किरदार भी नहीं करना चाहता, जहां एक खलनायक में सारी बुराइयां होती हैं। मुझे ऐसे किरदार में कोई दिलचस्पी नहीं है, मुझे वास्तविक जीवन के करीब के चरित्रों को निभाना पसंद है, जिनमें नायक और खलनायक दोनों समाहित है..मुझे ऐसे किरदार पसंद हैं।"अभिनेता राजधानी में पीएंडजी की सीएसआर(कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) पहल शिक्षा का समर्थन करने आए थे, और यहीं उन्होंने आईएएनएस से बात की। 

 

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