मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा है कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की सदस्यता भारत को अमेरिका के साथ सैन्य व सुरक्षा संबंधों में कमी लाने तथा चीन एवं पाकिस्तान से टकराववादी रुख की समीक्षा करने का बेहतर मौका प्रदान करता है। माकपा के मुखपत्र 'पीपुल्स डेमोक्रेसी' के संपादकीय में मोदी सरकार के एससीओ के पूर्णकालिक सदस्य बनने के फैसले का स्वागत किया गया है और कहा गया है कि ऐसा करने में पाकिस्तान तथा चीन के साथ संकीर्ण मतभेदों को इसकी राह में न आने दिया जाए।संपादकीय के मुताबिक, "भारत अमेरिका के साथ एक बेकार के सैन्य गठबंधन को बढ़ावा दे रहा है और अब इसे अमेरिका एक अहम रक्षा साझेदार के तौर पर देखता है।" एससीओ एक सुरक्षा गठबंधन है, जिसमें अमेरिका शामिल नहीं है और एशिया के भू-राजनीतिक क्षेत्र में अमेरिकी दखलंदाजी की मंजूरी नहीं देता है।एससीओ की सदस्यता अमेरिका के साथ सैन्य एवं सुरक्षा संबंधों में कमी लाने की शुरुआत करने का यह उपयुक्त समय है।
माकपा ने मोदी सरकार से चीन के बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा बनने का अनुरोध किया।संपादकीय के मुताबिक, "एससीओ के सभी सात सदस्य बीआरआई के साझेदार हैं और उन्होंने इसका समर्थन किया है। भारत इससे बाहर है। बेहतर होगा कि भारत अपने रुख की समीक्षा करे और वन बेल्ट वन रोड परियोजना में सहयोग करने का तरीका तलाश करे।"माकपा ने कहा है, "पाकिस्तान तथा चीन के साथ एससीओ के संयुक्त मंच पर एक साथ होने से मोदी सरकार को इन दोनों पड़ोसी देशों के साथ टकराववादी व नकारात्मक रुख पर दोबारा सोचने के लिए प्रेरित होना चाहिए।"वाम दल ने कहा है कि अफगानिस्तान में अनियंत्रित संघर्ष से निपटने में एससीओ अहम भूमिका निभा सकता है।संपादकीय के मुताबिक, "भारत को इस मंच का इस्तेमाल रचनात्मक तरीके से करने में सक्षम होना चाहिए। इसका एक अहम हिस्सा पाकिस्तान के साथ राजनीतिक वार्ता का तरीका तलाशना होगा।"माकपा ने कहा, "भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष व शत्रुता ने दक्षेस को पंगु बना दिया है। उम्मीद है कि एससीओ में एक साथ होने से इस कड़वाहट तथा संघर्षपूर्ण रिश्तों के उलट होने की शुरुआत होगी।"