फिक्की द्वारा आज यहां दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसकी थीम है ‘भारत की भावी नौसेना का निर्माण करनाः प्रौद्योगिकी की अनिवार्यताएं।’ आज शुरू हुए इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में भारतीय नौसेना, भारतीय तटरक्षक, रक्षा मंत्रालय के एकीकृत रक्षा स्टाफ एवं डीआरडीओ के शीर्ष अधिकारियों, देश-विदेश की औद्योगिक हस्तियों, शिक्षाविद् और चिंतकों ने शिरकत की। ये सभी हस्तियां एक साझा प्लेटफॉर्म पर एकत्रित हुईं और उन्होंने ऐसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के लिए स्वदेशी विकास चक्र को पूरा करने हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जो ‘मेक इन इंडिया’ के सरकारी सपने को साकार करने की दिशा में भारत की भावी नौसेना का निर्माण करने के लिहाज से अत्यंत आवश्यक हैं।इस सेमिनार के उद्घाटन के अवसर पर नौसेना प्रमुख और चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष एडमिरल सुनील लांबा ने कहा कि भारतीय नौसेना ने स्वदेशी जहाज की डिजाइनिंग एवं निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इसके साथ ही ‘क्रेता की नौसेना’ से ‘बिल्डर की नौसेना’ की ओर उन्मुख होने की दिशा में भी भारतीय नौसेना ने अच्छी प्रगति दर्शाई है। स्वदेश में जहाज निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के बावजूद नौसेना अब भी उत्कृष्ट प्रौद्योगिकियों के लिए बाह्य सहायता पर निर्भर है।
अतः जहाज की डिजाइनिंग एवं निर्माण के क्षेत्र में शत-प्रतिशत आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि स्वदेश में उत्कृष्ट प्रौद्योगिकियों का विकास किया जाए। वैसे तो रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता सामरिक स्वायत्तता हासिल करने की दिशा में पहली आवश्यकता है, लेकिन यह आसान काम नहीं है। इसके लिए अनुसंधानकर्ताओं, डिजाइनरों और निर्माताओं की ओर से समर्पित प्रयास किए जाने की जरूरत है।एडमिरल लांबा ने ऐसी तीन प्राथमिक अनिवार्यताओं पर रोशनी डाली जिन्हें किसी प्रौद्योगिकी अथवा उत्पाद को शामिल करते समय पूरा करना जरूरी है। इनमें किफायती होना, समय पर डिलीवरी देना और उत्कृष्ट प्रदर्शन शामिल हैं। इन अनिवार्यताओं का उल्लेख करते हुए नौसेना प्रमुख ने एक चौथा आयाम भी इसमें जोड़ दिया। यह चौथा आयाम निर्बाध तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ-साथ संबंधित प्रौद्योगिकी को टिकाऊ बनाते हुए इसके जीवन चक्र को सतत बनाए रखना है। उन्होंने कहा कि भविष्य की नौसेना का निर्माण करने के लिए यह पहलू अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसके मद्देनजर उद्योग जगत की सहायता केवल आवश्यक आपूर्ति करने तक ही सीमित नहीं है क्योंकि उसे जीवन चक्र संबंधी सहायता भी प्रदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए।