नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि भारत में बाल श्रमिकों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है, लेकिन बच्चों के साथ यौन हिंसा के मामले बढ़े हैं। सत्यार्थी ने बाल मजदूरी और बाल यौन उत्पीड़न के खिलाफ न केवल देश बल्कि दुनियाभर में अभियान चलाया है। साल 2014 में उन्हें मिले नोबेल के शांति पुरस्कार से उन्हें अपने इस अभियान में काफी मदद मिली।63 वर्षीय सत्यार्थी ने आईएएनएस को संवाददाताओं से मुलाकात में कहा कि समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती। युवाओं को भी सोशल मीडिया के माध्यम से बंधुआ बाल श्रमिकों की तकलीफों के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।सत्यार्थी ने कहा कि भारत में बाल मजदूरों की संख्या 2001 में 1.25 करोड़ के मुकाबले 2011 में घटकर एक करोड़ हो गई और अब 42 लाख हो गई है।उन्होंने कहा, "मैं इस आंकड़े के सही होने की पुष्टि नहीं कर सकता, लेकिन मैं कह सकता हूं कि स्थिति सुधरी है।"सत्यार्थी स्वयंसेवी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) का नेतृत्व करते हैं। उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि भारत और विदेशों में बच्चों के साथ दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामलें बहुत तेजी से बढ़े हैं।सत्यार्थी कहा, "बच्चों के खिलाफ हिंसा के मामले भी बढ़ रहे हैं, जो बहुत खतरनाक है।
"उन्होंने इसके लिए पोर्नोग्राफी (अश्लील वीडियो व साहित्य) को जिम्मेदार ठहराया।सत्यार्थी का कहना है कि दुनियाभर में कुल पूर्णकालिक बाल श्रमिकों की संख्या 16 करोड़ के आसपास होगी।सत्यार्थी के अनुसार, "इनमें से लगभग आधे बाल मजदूरी के सबसे खराब स्वरूप का शिकार हैं, वे बहुत खतरनाक स्थिति में हैं। इनमें से लगभग 50 लाख बंधुआ हैं, जिनहें किसी किस्म की आजादी नहीं मिली हुई है। उनका व्यापार किया जाता है।"सत्यार्थी ने आईएएनएस से इस बातचीत से कुछ घंटे पहले अपने सहकर्मियों के साथ पुरानी दिल्ली की एक संकरी गली में स्थित एक वर्कशाप पर छापा मारकर नौ बच्चों को मुक्त कराया, जो अगले क्रिसमस सीजन के लिए निर्यात किए जाने वाले सजावटी सामान बना रहे थे। इस अवैध कारखाने का मालिक वहां से फरार हो गया, लेकिन पुलिस ने इसके परिसर को सील कर दिया।सत्यार्थी ने दुनियाभर में फैली बाल मजदूरी और वयस्कों में बेरोजगारी के बीच के सीधे संबंध को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि जहां एक ओर करीब 16 करोड़ बच्चे काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर 21 करोड़ वयस्क बेरोजगार हैं। इनमें से अधिकतर बेरोजगार बाल मजदूरों के माता-पिता हैं, जो अजीब विडंबना है।उन्होंने कहा कि बच्चों के खिलाफ हिंसा परंपरागत ढंग से नहीं रोकी जा सकती क्योंकि स्थिति अब बदल गई है।सत्यार्थी ने पूछा, "भारत करुणा व दया के वैश्वीकरण का नेतृत्वकर्ता क्यों नहीं बन सकता? परंपरागत तरीकों से बच्चों की सुरक्षा नहीं हो सकती।"उन्होंने कहा कि पहले यह धारणा थी कि सरकारी मदद के बिना मानवीय और विकास संबंधी मुद्दों को हल नहीं किया जा सकता..लेकिन, इसमें बदलाव आया है, स्थिति अब बदल गई है। सत्यार्थी ने कहा, कारपोरेट की भूमिका अब कई गुना बढ़ गई है और ऐसा ही मामला नागरिक समाज के साथ है। सत्यार्थी के अनुसार, "अब वे विकास और मानवाधिकार दोनों मामलों में रचनात्मक और महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में उभरे हैं।"