सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को एचआईवी से पीड़ित गर्भवती महिला की स्वास्थ्य स्थिति की जांच के लिए एक बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया। शारीरिक शोषण का शिकार हुई एचआईवी से पीड़ित महिला गर्भवती हो गई और अब उसने गर्भपात कराने की गुहार लगाई है।न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायामूर्ति ए.एम. खानविल्कर और न्यायमूर्ति मोहन एम. शतनगोदर की पीठ ने कहा, "हम एक ऐसी असहाय के जीवन को बचाने को लेकर चिंतित है जो गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं और यौन उत्पीड़न का शिकार हो चुकी हैं। हम नहीं चाहते कि वह अब और तकलीफ सहें।"एम्स के मेडिकल बोर्ड को न्यायालय ने महिला की जांच के लिए छह मई तक का समय दिया है। पीठ ने कहा कि 'जीवन के सम्मान को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएं।
'पटना के शांति कुटीर में रहने वाली एचआईवी पीड़ित महिला, जब इस संस्थान से बाहर गई थीं तो उनका शारीरिक शोषण किया गया था। गैर-सरकारी संगठन 'कोशिश-टीआईएस' द्वारा उसकी देख-रेख की जा रही है।महिला के स्वास्थ्य जांच के दौरान उनके गर्भवती होने की जानकारी मिली और उन्होंने गर्भपात कराने के लिए जोर दिया।सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने महिला की मेडिकल रिपोर्ट को आठ मई तक पेश करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही न्यायालय ने अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल पी.एस. नरसिम्हा और तुषार मेहता के बयान को दर्ज किया कि महिला और एनजोओ प्रतिनिधियों को दिल्ली लाने और ठहराने से संबंधित सभी इंतजाम किए जाएंगे।इस साल मार्च की शुरुआत में पटना उच्च न्यायालय के आदेशों के तहत महिला की मेडिकल जांच की गई थी और इस रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि महिला का बड़ा ऑपरेशन कराने की जरूरत पड़ सकती है।वकील वृंदा ग्रोवर ने हालांकि, न्यायालय को बताया कि उच्च न्यायालय ने यह निर्णय लिया है कि ऑपरेशन महिला के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है और राज्य की कोशिश महिला के बच्चे को जिंदा रखने की है।