अतीत से शुरूआत करने के पहले ये जान लें कि आज के दौर का फैशन जहां मानव के लिए सजने-संवरने की एक सुविधा बना है वहीं इससे शारीरिक और मानसिक परेशानियां बढ़ी हैं और कई जानलेवा हादसे भी हुए हैं। मानव सभ्यता का जैसे-जैसे विकास होता गया होगा फैशन उसके साथ जुड़ता चला गया होगा, लेकिन उस समय उसे फैशन के विषय में कुछ भी मालूमात नहीं होगा। जैसे-जैसे आदिकाल से विकास शुरू होकर पाषाण, ताम्र, आदि काल से गुजरता हुआ 2017 तक पहुंचा फैशन भी इस विकास के साथ जुड़कर मानव के इर्दगिर्द छा गया। फैशन ही फैशन। फैशन चाहे पहनावे यानी कपड़ों का हो, बालों की हेअर स्टाइल का हो, घरूपयोगी चीजों...अनगिनत कारण हैं फैशन के। फैशन के दौर में कई चीजें या वस्तुएं मानव के साथ ऐसी भी जुड़ गई जो फैशन के अलावा जरूरत भी बन गई मसलन आंखों की ऐनक वगैरह। फैशन का जब पहली बार फिल्मों से जुड़ाव हुआ तो सीमित स्थानों पर सिमटा फैशन क्या गांव-कस्बा,शहर बल्कि देश-परदेश तक फैलने लगा। फिल्मों के साथ ही मॉडलिंग, टीवी आदि भी फैशनपरस्त हो गए। स्थिति ऐसी भी आई है कि जो फैशन आउट डेटेड हो गया था वो फिर से कमबैक होने लगा है। बॉलीवुड के मेगा स्टार अमिताभ बच्चन का कहना है कि 1970 के दशक का फैशन एक बार फिर लोकप्रिय होता दिख रहा है। आपके पास 70 के दशक के कपड़े हैं तो फिर आधुनिक डिजाइन के कपड़ों पर पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं। अमिताभ ने लिखा है कि कपड़ों के साथ साथ चश्मे भी फैशन के चक्र में शामिल होते हैं। ऐसे में अगर उन्होंने अपने 70 के दशक के चश्मे अगर फेंक दिए होते तो आज उनके बच्चे इसके लिए उन्हें परेशान कर देते। चश्मों के शौकीन अमिताभ के मुताबिक उन्होंने 1978 की फिल्म डॉन में जिस तरह के चश्मे पहने थे, उनकी याद उन्हें खूब आती है।
शरीर के साथ खिलवाड़
आज का दौर फैशन का दौर है। चाहे युवक हो या युवती, किशोर-किशोरियाँ यहाँ तक कि बच्चे भी इस फैशन की चकाचौंध से खुद को अलग नहीं कर पाते हैं। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि अपनी काया को छरहरी बनाए रखने के लिए युवतियों को कितनी मशक्कत करनी पड़ती हैं। इस मशक्कत में केट वॉक पर चलने वाली युवतियाँ मौत का शिकार हो रही हैं। इससे यह स्पष्ट है कि जो आँखों को अच्छा लगे, वही सुंदर नहीं है, बल्कि सुंदरता तो बाह्य वस्तु है।ब्यूटीपार्लरों पर हजारों रुपए खर्च करने वाले ये युवा अपने खान-पान पर इतनी कंजूसी करते हैं कि इनका भोजन का खर्च तो विटामिन की गोलियों, जूस, सूप और उबले भोजन में ही समा जाता है। शरीर की प्राकृतिक अवस्था को भौतिक साधनों के माध्यम से परिवर्तन करके शरीर के साथ खिलवाड़ किया जाता है। प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली फैशन प्रतिस्पर्धा में 'केट वॉक' के लिए ही स्टेज पर आने के लिए उन्हें अनेक शर्तो से होकर गुजरना होता है। स्लीम एन्ड ट्रीम होना पहली शर्त होने के बाद क्रमश: आकर्षक व्यक्तित्व एवं बौध्दिक ज्ञान को महत्व दिया जाता है। किंतु यह शरीर की सुडौलता किस तरह जानलेवा साबित हो रही है, इस ओर कम ही ध्यान दिया जाता है। यह एक सच्चाई है कि मॉडल्स के शरीर पर एक ग्राम भी चर्बी बढ़ती है, तो इसे दर्शक या प्रायोजित कंपनियाँ बर्दाश्त नहीं कर पाती।
ब्राजील की मॉडल ऐना केरोलीना उम्र मात्र 21 वर्ष ही थी। 5 फीट 8 इंच लम्बी इस मॉडल का वजन मात्र 40 किलोग्राम था। वह नियमित रूप से डायटिंग करके अपने वजन को बढ़ने नहीं देती थी। नतीजा यह कि उसके शरीर के आंतरिक अंगों को आवश्यक मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल रहे थे, जिसके कारण अंतिम दिनों में उसके अंग सिकुड़ गए थे। इसी प्रकार ऐना केरोलीना ने भी लूसी की राह पर चलना शुरू किया और अपने दुबलेपन को बनाए रखने के लिए उसने भी केवल टमाटर और सेब का जूस का सहारा लिया। ऐना केरोलीना का इलाज करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि उसके शरीर में ऐसा कुछ भी नहीं बचा था कि जिसके कारण दवा का असर हो सके।फैशन की दुनिया में अभी भी पतली और रूई के फाहे जैसी नाजुक युवतियों को ही हरी झंडी दी जाती है। फैशन शो के कर्ताधर्ता बार-बार यही कहते हैं कि हम दुबली-पतली न सही लेकिन तंदुरुस्त मॉडल को स्वीकार भी लें, किंतु तंदुरुस्त का अर्थ 'मोटी' से हो तो भला उसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है।
अंधानुकरण
फैशन को लेकर युवा वर्ग में बड़ा क्रेज है। साथ ही खुद के लुक को स्मार्ट बनाने के लिये गंभीर भी। समय बदलने के साथ फैशन ट्रेड पर नजर रखना और उसे अपनाने की होड़ में यह सबसे आगे रहती है युवा पीढ़ी। टीवी सीरियल या सिनेमा में कोई भी नया फैशन आया नहीं कि युवाओं को इसे अपनाने में देर नहीं लगती। जाहिर सी बात है कि समाज में अपने आप को बनाये रखने के लिये जमाने के साथ चलना है। इस बात का भी डर है कहीं पिछड़ न जायें। युवक हों या युवतियां बाइक, कार, कपड़ों के साथ मैचिंग के जूते, चप्पल, हेयर कट, पर्स, हेयर पिन, ज्वैलरी आदि बहुत सी चीजें हैं। जिसे लेकर युवा दीवानगी की हद तक गुजर जाने को तैयार रहते हैं।
जानलेवा फैशन
हाल ही के दिनों में कई फिल्मों का स्टंट सीन युवा वर्ग में फैशन का कारण बन गया है। व्हीकल स्टंट की नकल में युवा और किशोर अपनी जान से खिलवाड़ करने लगते हैं। सन 2010-2017 के दौर में बाइक स्टंट करने के चक्कर में देशभर में तकरीबन 35 से ज्यादा युवा और 22 से ज्यादा किशोर अपनी जान गवा बैठे हैं।
फैशन और नारी संसार
न केवल पुरुष वर्ग बल्कि नारी वर्ग का फैशन से जुड़ाव चोली-दामन जैसा है। टीवी चैनलों पर आने वाले सीरियल में फैशन पहले ढूंढा जाता है, विशेषकर ज्वेलरी और कपड़े वगैरह कि दीया और बाती की दीपिका सिंह ने कानों में झूमके कैसे पहने, चन्द्रकांता की हीरोइन ने किस रंग की साड़ी पहनी, दया (तारक मेहता का उल्टा चश्मा) ने नाक में कौन सी नथ पहनी आदि इत्यादि। यह एक परिवर्तनवादी नशा है जो सिर पर चढ़ कर बोलता है । यदि किसी महिला ने पुराने स्टाइल या डिजाइन की साड़ी या लंहगा पहना हो तो संभव है कि उसे किटी पार्टी पर उसे आमंत्रित ही न किया जाए । आज के दौर में जो भी व्यक्ति आउट आॅफ फैशन हो जाता है, उसकी मार्केट वैल्यू गिर जाती है । अत: उसे स्वयं को भौतिकवाद की दौड़ में अपना स्थान सुनिश्चित करने हेतु कपड़ों, खानपान, घर, बच्चों, जीवनसाथी, दफ्तर, कारोबार इत्यादि के संदर्भ में नवीनतम फैशन की वस्तुओं, सुविधाओं और विचारों को अपनाना पड़ता है । फैशन एक भेड़चाल की तरह है ।
फैशनेबल होना बुरा नहीं है । परन्तु दकियानूसी कपड़ों को फैशनेबल कहना या कम-से-कम वस्त्र पहनने का नाम भी तो फैशन नहीं है । फैशन शो तो नंगेपन की पराकाष्ठा तक पहुंच जाते हैं । ऐसा लगता ही नहीं कि फैशन मॉडल किसी नये डिजाइन के कपड़ों का प्रदर्शन कर रही है । रैम्प पर चलती हुई सुन्दरियां व युवक अपने मांसल अंगों का प्रदर्शन करते नजर आते है । दर्शक गण और टी.वी. दर्शक उनके अंग प्रदर्शन से लुत्फ उठाते हैं । कपड़ों पर ध्यान तो शायद ही किसी दर्शक का हो ।