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हमने युद्ध जीता, पर शांति खो दी : अफगान राजनयिक मसूद खलीली

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5 Dariya News

नई दिल्ली , 12 Apr 2017

अफगानिस्तान, जो एक लंबे अरसे से सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध और फिर आतंकवाद की चपेट में रहा है, की कहानी कई मायनों में राजनयिक मसूद खलीली की कहानी है, जिन्होंने लोगों को 'लाल सेना' (रेड आर्मी) से लड़ने के लिए लामबंद किया और उनका नेतृत्व किया। स्पेन के लिए अफगानिस्तान के राजदूत, जिन्होंने नई दिल्ली में भी सेवा दी है, इस पर दुख जताते हैं कि सोवियत संघ को हराने के बावजूद अफगानिस्तान ने अपनी शांति खो दी।खलीली ने आईएएनएस को ईमेल से दिए एक साक्षात्कार में कहा, "क्या आप भरोसा कर सकते हैं? युद्ध जीता, पर शांति खो दी? यह मेरे और मेरे मित्रों के लिए बहुत मुश्किल है, पर हमने इसे खो दिया। हमारे अपने कारनामों और हमारे पड़ोसी मुल्कों की गतिविधियों ने देश में आज तक युद्ध बरकरार रखा है। सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध के दौरान पूरा देश इसमें शामिल था, लेकिन तालिबान के खिलाफ युद्ध में हर कोई शामिल नहीं है।"

अफगानिस्तान में स्थिरता सुनिश्चित करने को लेकर सोवियत संघ के खिलाफ जीत अपेक्षित थी। फिर चीजें गलत कैसे हो गईं?खलीली ने अपने हालिया रिलीज संस्मरण 'व्हिसपर्स ऑफ वार : एन अफगान फ्रीडम फाइटर्स अकाउंट ऑफ द वार' में इसकी वजह अनुभव की कमी, दृष्टिकोण के अभाव और 'पड़ोसियों, खासकर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) की गतिविधयों' को ठहराया है।वह कहते हैं, "सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध के दौरान एक भी अफगानी ने कुछ पाने की इच्छा में खुद को विस्फोट से नहीं उड़ाया, लेकिन अब हमारा दक्षिणी पड़ोसी (पाकिस्तान) तथा पश्चिमी पड़ोसी (ईरान) हमारे आंतरिक मामलों में नकारात्मक रूप से दखल दे रहे हैं और काबुल में हमारी सरकार के खिलाफ हमारे शत्रुओं को प्रशिक्षण, वित्त पोषण और हथियार प्रदान कर रहे हैं।"संस्मरण अफगानिस्तान में कभी न लौटी शांति की तलाश करती है। खलीली के बेटे महमूद खलीली द्वारा अनूदित यह पुस्तक राजनयिक द्वारा संघर्ष के उन दिनों में अपनी पत्नी को भेजे उनके पत्रों का भी जिक्र करती है, जब उन्होंने हिमालय क्षेत्र से होते हुए यात्रा की।

खलीली 1980 से 1990 के बीच सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध के दौरान अफगानिस्तान की जमायत-ए-इस्लामी पार्टी के राजनीतिक प्रमुख और 'लायन ऑफ पंजशीर' के नाम से मशहूर सोवियत आक्रमण के खिलाफ दिग्गज सैन्य कमांडर अहमद शाह मसूद के सलाहकार भी रहे।उन्होंने कहा, "यदि आप लोगों को लामबंद नहीं करेंगे तो शत्रु उन्हें लामबंद कर लेंगे। यही वजह है कि मैंने घोड़े, डॉन्की के साथ-साथ पैदल भी 13 से अधिक बार पूरे अफगानिस्तान की यात्रा की। यह आसान नहीं था, लेकिन उस भयावह युद्ध को समाप्त करने के लिए मुझे यह करना ही था, जिसकी वजह से हमारे हजारों लोग हर माह मारे जा रहे थे।"साल 1986 की गर्मियों में अफगानिस्तान में लोगों को लामबंद करने के उद्देश्य से अपनी यात्रा शुरू करने के लिए खलीली को मजबूरन अपनी पत्नी सोहेल्ला और दो बेटों महमूद तथा मजदूद को पाकिस्तान में छोड़ना पड़ा। इस दौरान उन्होंने नियमित डायरी लेखन किया, जिसका जिक्र भी उनके संस्करण में है।

खलीली कहते हैं, "मैं बेहद भयावह परिस्थितियों में भी अपने तथा अपने दुखी व युद्धग्रस्त देश के लोगों के बारे में लिखता रहा। 

इससे मुझे आगे बढ़ने का हौसला मिलता रहा।"हाई-प्रोफाइल अफगानी राजनयिक ने 21वीं सदी में अफगानिस्तान की भूमिका और लक्ष्य हासिल करने की राह में विभिन्न बाधाओं का भी जिक्र किया है।वह कहते हैं, "यदि आप उम्मीद खो देते हैं तो सबकुछ खो देते हैं। इसी उम्मीद के बलबूते हम लाल सेना को हराने में कामयाब हुए, जो दुनिया की महाशक्तियों में से एक थी। कल्पना कीजिये, एक महाशक्ति को सबसे कमजोर ने हरा दिया। कैसे? लोगों को लामबंद कर और उम्मीद को जिंदा रख। गलत कभी लंबे समय तक नहीं रह सकता। ब्रिटिश और सोवियत की तरह तालिबान भी हमेशा नहीं रहेगा।"उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में 'सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार और अप्रभावी खर्च को तुरंत खत्म करने' की जरूरत है और देश को 'सच्चे नेताओं' की जरूरत है, क्योंकि बिना दृष्टिकोण वाले कमजोर नेता शांति व स्थिरता नहीं ला सकते।

अफगानिस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले खलीली ने 'दुनियाभर के मित्रों और काबुल में अपने नेताओं' से अफगानिस्तान में कट्टपंथी समूहों को समर्थन नहीं देने के लिए पाकिस्तान तथा ईरान पर दबाव बनाने की अपील की और कहा कि यह उनके अपने दीर्घकालिक हित में भी है।आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि गरीबी मिटाना और अफगानिस्तान के युवाओं का समर्थन महत्वपूर्ण है।उन्होंने कहा, "हम, पुरानी पीढ़ी ने सोवियत के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अब भी तालिबान, दाएश तथा अलकायदा के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं, पर युवाओं को इसमें अधिक शामिल होने की आवश्यकता है। 

वे अपना भविष्य बेहतर बना सकते हैं और हमें इसके लिए उन्हें साधन देना चाहिए।"भारत-पाकिस्तान संबंध में अफगानिस्तान की भूमिका पर अपना दृष्टिकोण रखते हुए खलीली ने कहा, "पाकिस्तान, कश्मीर हासिल करने के लिए अफगानिस्तान को एक अहम जरिया के तौर पर देखता है। आईएसआई रणनीतिक गहनता वाली नीति में यकीन करती है और यदि वे अफगानिस्तान की राजनीतिक को प्रभावित करते हैं तो कश्मीर जीतने को लेकर बेहतर स्थिति में होंगे।"उन्होंने हालांकि उम्मीद जताई कि यदि अफगानिस्तान में शांति बहाल होती है तो तीनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग के बारे में सोचा जा सकता है और क्षेत्र में आगे भी शांति के लिए सोवियत संघ के विघटन के बाद अस्तित्व में आए देशों के साथ भी सक्रिय साझेदारी हो सकती है।

 

Tags: KHAS KHABAR

 

 

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