सारागढ़ी के युद्ध की महानता को लाजवाब ढंग से दर्शाने वाली पुस्तक का आज यहां विमोचन भी इतना ही लाज़वाब रहा।पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आज पंजाब के राज्यपाल श्री वी पी सिंह बदनौर, अनेकों सीनियर सेना अधिकारियों और सियासी एवं मीडिया की अह्म हस्तियों की उपस्थिति में अपनी नई और कलात्मक पुस्तक ‘दा थर्टीसिक्सथ सिखज़ इन दा तिराह कैंपेंन 1897-98-सारागढ़ी एंड दा डिफैंस ऑफ दा समाणा फोर्टज़’ लोक अर्पित की।इस अवसर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा पंजाब के राजपाल श्री बदनौर, जिनको सम्मान्नित अतिथि के तौर पर समागम में शिरकत की, को यह पुस्तक भेंट की गई। इस अवसर पर हुई विचार चर्चा भी हुई जिस दौरान सीनियर पत्रकार श्री शेखर गुप्ता और श्री बीर सांघवी, सिख रैजीमैंट के ब्रिगेडियर इंद्रजीत सिंह गाखल और सारागढ़ी युद्ध पर आधारित नई आ रही फिल्म के अभिनेता श्री रनदीप हुड्डा, ने विचारों का आदान-प्रदान किया।इस अवसर पर राज्यपाल बदनौर ने चंडीगढ़ में राज्य सरकार को एक साहित्य मेला आरंभ करने का सुझाव दिया जोकि रक्षा तथा युद्धों पर केंद्रित हो। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तुरंत यह सुझाव स्वीकृत किया और इस मेले के लिये संभावी तिथि 27 अक्टूबर की घोषणा की।
इस पश्चात राज्यपाल श्री बदनौर द्वारा सिख रैजीमैंट के जनरल कमांडिंग इन चीफ लैफि. जनरल सुरिंदर सिंह, आर्मी स्टॉफ के डिप्टी चीफ लैफि. जनरल जे एस चीमा और समागम में उपस्थित अन्य सीनियर सेना अधिकारियों तथा अह्म हस्तियों को आज लोकार्पण की गई पुस्तक के साथ चित्र भेंट किये। उन्के द्वारा सिख रैजीमैंट के कर्नल को सारागढ़ी से संबंधित दो पेंटिंग भी भेंट की गई।भारत के सेना के इतिहास में सारागढ़ी का युद्ध एक अह्म स्थान रखता है और इस ऐतिहासिक 36 सिख रैजीमैंट से संबंध रखने वाले सैनिक इतिहासकार और पूर्व सेना अधिकारी कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा इस युद्ध को दर्शाने के लिये इस्तेमाल की गई शब्दावली में इसको और वीर रस भर दिया है।यह पुस्तक 36 सिख रैजीमैंट के उन बहादुर 21 शहीदों को एक श्रद्धांजलि है जिन्होंने हवलदार ईशर सिंह के नेतृत्व में एक ऐसा युद्ध लड़ते हुये शहादत का जाम पीया जो आज तक के युद्धों में महान स्थान रखती है। यह पुस्तक विशेषकर समर्पित है उस बहादुर को जिसको ‘दाद’ के नाम से भी जाना जाता है और जिसने युद्ध के अंतिम क्षणों के दौरान शहीद होने से पूर्व योद्धाओं की तरह जूझते हुये कई कबाइली हमलावरों को मौत के घाट उतारा। पुस्तक के लोकार्पण के दौरान श्री रणदीप हुड्डा ने सारागढ़ी की लड़ाई पर आधारित फिल्म में हवलदार ईशर सिंह की भूमिका को मूर्तिमान किया।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भावुक होते हुये कहा कि यह एक अनकही कहानी थी जो बहुत देर से अपने कहानीकार का इंतजार कर रही थी। उन्होंने कहा कि हालांकि सारागढ़ी के युद्ध संबंधी बहुत सी किताबें एवं लेख लिखे गये हैं परंतु तिराह अभियान संपूर्ण तौर पर बयान होने से वंचित ही रह गया।‘‘मैं तिराह की कहानी सांझी करना चाहता था और विशेष तौर पर दाद की -वह 22वां व्यक्ति जिसके नाम पर धर्म से अबतक सभी अनजान थे और जिसकी पृष्ठभूमि संबंधी भी अबतक इससे कुछ स्पष्ट नही हो सका कि वह नौशहरा के समीप का था।कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उनकी यह पुस्तक उस 22वें व्यक्ति को उभारने के लिये एक साधारण सा प्रयास है जो अफगान हमलावरों विरूद्ध लडऩे वाले अन्य 21 फौजियों की तरह कभी भी बनता सम्मान नही हासिल कर सका।एक हाज़रीन द्वारा की गई अपील पर मुख्यमंत्री ने वायदा किया कि हवलदार ईशर सिंह और देश की खातिर जान न्यौछावर करने वाले सैनिकों की याद में उनके गांव में भी यादगारें स्थापित की जायेंगी। विचार विमर्श के दौरान विशेषज्ञों द्वारा इस ऐतिहासिक युद्ध के बहुत से तथ्यों पर चर्चा की गई जिसमें यह भी शामिल था कि किस प्रकार जब व्यक्ति को धकेलकर दीवार से लगा लिया जाता है तो वह मानवीय क्षमता से कहीं अधिक ताकत से कुछ कर गुजरता है।
शेखर गुप्ता ने कहा कि यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोगों द्वारा ऐसी गाथाओं के गुणगान को तभी अनुभव किया जाता है जब उनके पक्ष में होती है। उन्होंने कहा कि असल समस्या कबाइलियों में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही स्वायत्तता शासन है जिसको समय करना समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत सहित अन्य देशों की रक्षा सेनाओं से अधिक हथियार रखने वाले अफगानिस्तानी एवं पाकिस्तानी लोगों में प्रचलित गन कल्चर का अंत किया जाना चाहिये।सारागढ़ी युद्ध के 120वें वर्ष के दौरान लोकार्पण की गई इस पुस्तक की कमाई अंगहीन सैनिकों, बेसहारा और विधवाओं के लिये कार्य कर रही लुधियाना वेलफेयर एसोसिएशन के पास जायेगी।चुनाव अभियान के शिखर के दौरान यह पुस्तक लिखने वाले मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर तिराह मुहिम को जीवित करने वाली एक प्रस्तुति के दौरान होटल ललित में मौजूद दर्शकों को युद्ध की बहुत ही भावुक तथा आकर्षक घटनाओं संबंधी अवगत करवाया। कैप्टन अमरिंदर सिंह के शब्दों में कहें तो यह गाथा 36वीं सिख रैजीमैंट की महान उपलब्धि रही है ऐसी प्राप्ति की जिसने बटालियन के आने वाले सैनिकों के लिये एक मील पत्थर स्थापित किया। सारागढ़ी अफगानिस्तान की सीमा पर मौजूद एक ऐसी चौंकी थी जो ब्रिटिश भारत के किले लौकहार्ट और गुलिस्तान को जोड़ती थी।कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस गाथा का वर्णन करते हुये आगे कहा कि 36वीं सिख रैजीमैंट की एक छोटी सी टुकड़ी ने 12 सितंबर, 1897 को आठ हजार कबाईलियों विरूद्ध एक जबरदस्त युद्ध लड़ा ।
इस पुस्तक अनुसार ‘इन बहादुर सैनिकों ने 6 घंटे 45 मिनट की लड़ाई लड़ते हुये हथियार डालने की जगह मौत को प्राथमिकता दी और अंत 22 के 22 योद्धा शहीद हो गये।’बहुत सी असल और पुन: सुर्जित की गई तस्वीरें पाठक की आंखों के आगे कहानी का पूरी तरह चित्रण करती हैं। यह पुस्तक पाठक को उस समय की रोचक घटनाओं से बांध देती है और उनका प्रगटावा तथा विवरण करती है। यह पुस्तक ऐतिहासिक सारागढ़ी के युद्ध को हु-ब-हू पाठक की आंखों के सामने सजीव हो जाती है और उस समय के हथियारों तथा नक्शों की गहरी जानकारी देती है। जिससे पाठक इस पुस्तक के साथ समीपता से जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं।कानूनी एकसारता की कमी के कारण दाद को अफगान कबाईलियों से युद्ध में अपनी जान न्यौछावर करने वाले दूसरे 21 योद्धाओं की तरह सम्मान नही मिला और यह समय के बहाव में बह गया। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि यह किताब उस समय के संदर्भ को प्रस्तुत करने का एक छोटा सा प्रयास है। विचार विमर्श के दौरान उन्होंने एक प्रशन के उत्तर में बताया कि वह इस पुस्तक के बाद बंगलादेश क युद्ध और गत् 50 वर्षो की पंजाब की स्थितियों संबंधी भी लिखना चाहते हैं।यह पुस्तक अंत में सिख रैजीमैंट की 8वीं बटालियन के सैनिकों द्वारा अपनी अंतिम चौंकी खोने से पूर्व 10वें गुरू जी के लगाये गये जै-कारों का चित्रण करती है। सारागढ़ी यादगार की देख-रेख करने वाले मेजर जनरल त्रिलोचन सिंह ने भी इस अवसर पर अपने विचार प्रस्तुत किये और कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा सारागढ़ी के युद्ध संबंधी पुस्तक लिखने के साहस भरे कार्य की प्रशंसा की।