तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा चीन की नाराजगी को नजरअंदाज कर शुक्रवार को अरुणाचल प्रदेश तवांग मठ पहुंचे। मठ में बौद्ध भिक्षुओं तथा श्रद्धालुओं ने उनका बेहद गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा तवांग मठ में ठहरेंगे। यह मठ भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बौद्ध मठ है। दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ तिब्बत का पोटाला पैलेस है।मठ के सचिव लोबसांग खुम ने कहा, "दिरांग से सात घंटों की कठिन यात्रा के बाद वह यहां पहुंचे हैं। वह मठ के प्रार्थनाघर में हैं।"प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू तिब्बती धर्मगुरु के साथ थे। बर्फ से घिरे पहाड़ों तथा 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित तवांग में मोनपा लोग रहते हैं, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं।दलाई लामा के दौरे के मद्देनजर पूरे तवांग को भारत तथा तिब्बत के झंडों तथा फूलों के अलावा, रंगीन प्रार्थना झंडों से सजाया गया। सड़कों को रंगा गया और नालों की सफाई की गई।
लद्दाख तथा पड़ोसी देश भूटान से आए हजारों की तादाद में लोग पारंपरिक औपचारिक स्कार्फ लिए हुए सड़क पर अगरबत्तियां जला कर दलाई लामा के दर्शन तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सड़क के दोनों तरफ कतार में खड़े थे।चीन व भारत की सीमा को विभाजित करने वाले मैकमोहन लाइन (वास्तविक नियंत्रण रेखा) से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तवांग में सुरक्षाबलों को चौकस रखा गया है।दलाई लामा तवांग से अरुणाचल प्रदेश का एक सप्ताह लंबा धार्मिक दौरा चार अप्रैल को ही शुरू करने वाले थे। लेकिन, खराब मौसम के कारण उन्हें सड़क मार्ग का सहारा लेना पड़ा, क्योंकि उनका हेलीकॉप्टर असम के डिब्रूगढ़ से उड़ान नहीं भर सका।तवांग मठ गेलुग्पा स्कूल ऑफ महायान बुद्धिज्म से जुड़ा है और इसका संबंध ल्हासा के द्रेपुंग मठ से है, जो ब्रिटिश काल से ही बरकरार है।
सन् 1959 में तिब्बत से निर्वासित होने के बाद असम पहुंचने से पहले दलाई लामा कुछ दिनों के लिए तवांग मठ में ठहरे थे।दलाई लामा सबसे पहले बोमडिला पहुंचे, जो अरुणाचल प्रदेश में पश्चिमी कामेंग का जिला मुख्यालय है, जहां उन्होंने धार्मिक प्रवचन दिया और लोगों से बातचीत की।उसके बाद वह तवांग से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित दिरांग घाटी पहुंचे, जहां उन्होंने थूपसंग धारगेलिंग मठ में गुरुवार को प्रवचन दिया।वह शुक्रवार को ही दिन में सड़क मार्ग के जरिये दिरांग से तवांग के लिए रवाना हुए थे।यह आठ वर्षो के बाद दलाई लामा का पहला अरुणाचल दौरा है।दलाई लामा ने इस पहाड़ी राज्य का पहला दौरा सन् 1983 में किया था और अंतिम दौरा सन् 2009 में किया था। दलाई लामा सन् 1959 से ही भारत में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं साथ ही करीब 100,000 निर्वासित तिब्बती भी भारत में रह रहे हैं।चीन ने दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश दौरे का विरोध किया है। वह अरुणाचल को तिब्बत का हिस्सा मानता है। भारत, चीन के इस विरोध को खारिज कर चुका है।