केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को कहा कि भारत के लोग प्रकृति को मां के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि प्राचीन धर्मग्रंथों में हमेशा मानव और प्रकृति के बीच एक स्वस्थ और स्थायी संबंध बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की ओर से आयोजित 'विश्व पर्यावरण सम्मेलन' में रविवार को राजनाथ ने कहा, "भारत के लोगों का हमेशा यह विश्वास रहा है कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखा जाए और हम उसे मां के रूप में देखते हैं। हम प्रकृति के बिना नहीं रह सकते हैं। प्रकृति का शोषण नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि मानव मात्र की खुशहाली के लिए उसका संरक्षण जरूरी है।" सिंह ने कहा, "हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में हमेशा मानव और प्रकृति के बीच एक स्वस्थ और स्थायी संबंध बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। अथर्व वेद में यह परम कर्तव्य बताया गया है कि हमें धरती की रक्षा अवश्य करनी है, ताकि जीवन की निरंतरता बनी रहे। धरती के साथ अपने संबंध को हमने 'माता भूमि पुत्रो अहम पृथव्या' के रूप में परिभाषित किया है।
"उन्होंने कहा, "मुझे आज महात्मा गांधी के वे स्वर्णिम शब्द याद आ रहे हैं, जिनमें उन्होंने कहा था, 'धरती के पास हर किसी की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन वह किसी का लालच पूरी नहीं कर सकती'।"सिंह ने कहा, "मानवता की खुशहाली, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की कार्य प्रणाली, अंतत: इस धरती पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के युक्तिसंगत और जिम्मेदारीपूर्ण प्रबंधन पर निर्भर करती है। मानवता उससे अधिक प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जितना कि धरती मां हमें स्थिरतापूर्वक प्रदान कर सकती है।"उन्होंने कहा, "मानवता को आज जिस संकट का सामना करना पड़ रहा है, उसने हमें मानव-प्रकृति के समूचे संबंधों की समीक्षा करने के लिए बाध्य कर दिया है। यह बात पिछले पांच दशकों में हुई घटनाओं और तदनुरूप विकास की भावी कार्यनीति के संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण है।" उन्होंने कहा कि भारत के नागरिक होने के नाते वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना हमारा परम दायित्व है।
सिंह ने कहा, "प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन हमारे वर्तमान पर बुरा असर डाल रहे हैं और हमारे भविष्य पर भी इनका गंभीर दुष्प्रभाव पड़ने जा रहा है। यह अनुमान लगाया गया है कि यदि खपत और उत्पादन का वर्तमान पैटर्न जारी रहा, तो 2050 तक दुनिया की आबादी 9.6 अरब हो जाएगी। ऐसा होने पर हमें अपनी जीवन पद्धतियों और खपत को स्थिरता प्रदान करने के लिए तीन ग्रहों की आवश्यकता पड़ेगी।"उन्होंने कहा, "दोनों ध्रुवों पर बर्फ पिघलने से बढ़ते समुद्री जलस्तर हमारी चिंता का कारण हैं। आर्कटिक और अंटार्कटिक में इस वर्ष बर्फ में रिकार्ड कमी दर्ज हुई है और पिघलते ध्रुव प्रदेश हमारी तट रेखाओं के प्रति गंभीर खतरा हैं। हमें भारत में इस बात की भी चिंता है कि हिमालय के ग्लेशियर घट रहे हैं, जो हमारी नदियों को पानी देते हैं और हमारी सभ्यता का पोषण करते हैं।"उन्होंने कहा, "भारत वैश्विक खतरों के प्रति संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। भारत सरकार ने हाल ही में यह लक्ष्य निर्धारित किया है कि 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा पैदा की जाएगी। 2030 तक हमारी संस्थापित विद्युत क्षमता का 40 प्रतिशत गैर-जीवाष्म ईंधन पर आधारित होगा।"