प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर जारी विवाद थम नहीं रहा है। कथित तौर पर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्याय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निग (एसओएल) से पढ़ाई की है, लेकिन एसओएल का कहना है कि उसके पास उस साल का कोई रिकार्ड ही नहीं है। क्योंकि केवल एक साल का ही रिकार्ड रखा जाता है। आईएएनएस संवाददाता द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत 1978 में बीए की डिग्री लेने वाले विद्यार्थियों की सूची मांगने पर एसओएल ने कहा, "आवेदक द्वारा वांछित आंकड़ा शाखा में उपलब्ध नहीं है।"इसके अलावा 1978 में उसी विषय की डिग्री प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों के आंकड़े से संबंधित दो अन्य प्रश्नों, जिसमें उनके रोल नंबर, नाम और पिता का नाम पूछा गया था, के जबाव में एसओएल ने कहा, "शाखा में ऐसी कोई सूची रखी नहीं जाती। विश्वविद्यालय की पुराने दस्तावेजों की छंटाई की नीति के मुताबिक एक साल से ज्यादा समय तक अतिरिक्त प्रतियों को नहीं रखा जाता है।"
केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) मीनाक्षी सहाय ने इसी प्रश्न के समेकित उत्तर में कहा, "आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी को विश्वविद्यालय के डीन (परीक्षा), ओएसडी (परीक्षा), संयुक्त रजिस्ट्रार (डिग्री) और अनुभाग अधिकारी (सूचना) को पृष्ठांकित किया गया है, जो सूचना के अधिकार कानून, 2005 की धारा 5(4) और 5(5) के तहत जन सूचना अधिकारी हैं।"उन्होंने आगे कहा, "विश्वविद्यालय के डीन (परीक्षा), ओएसडी (परीक्षा) और संयुक्त रजिस्ट्रार (डिग्री) से प्राप्त जानकारी के मुताबिक विश्वविद्यालय में पढ़ाई करनेवाले छात्र की जानकारी एक निजी जानकारी है, जिसे सार्वजनिक नहीं की जा सकती। यह जानकारी केवल संबंधित छात्र को ही दी जा सकती है। इस तरह की जानकारी का किसी सार्वजनिक हित से गतिविधि से संबंध नहीं है।
इसे कानून की धारा 8(1)(जे) के तहत छूट प्राप्त है।
"विश्वविद्यालय की परीक्षा शाखा 3 (आई) और 4 ने भी ऐसा ही कुछ जबाव दिया। इससे पहले केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया था कि "विश्वविद्यालय के पास उपलब्ध साल 1978 का प्रासंगिक रजिस्टर जिसमें बीए आर्ट कक्षा में उत्तीर्ण हुए सभी छात्रों का नाम, पिता का नाम और प्राप्तांक हो, उसके प्रासंगिक पन्नों की प्रमाणित प्रति आवेदक को मुफ्त उपलब्ध कराई जाए।"सीआईसी ने इसके अलावा सीपीआईओ पर आरटीआई के तहत मोदी की स्नातक डिग्री की मांगी गई जानकारी मुहैया नहीं कराने पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था। सूचना अधिकारी एम. श्रीधर आचार्युलू ने सीपीआईओ की खिंचाई करते हुए कहा कि यह जानकारी मुहैया नहीं कराना मूर्खतापूर्ण है। लेकिन इस आदेश को पारित करने के अगले ही दिन आचार्युलू का प्रभार छीन लिया गया। दिल्ली उच्चन्यायालय ने बाद में सीआईसी द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय को 1978 में बीए डिग्री परीक्षा पास करनेवाले सभी छात्रों का रिकार्ड जांच के लिए मुहैया कराने के आदेश पर रोक लगा दी।