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वाराणसी : नरेंद्र मोदी का रोड शो बिगड़े दूध से मक्खन निकालने का प्रयास

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5 Dariya News

वाराणसी , 04 Mar 2017

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढाई साल पहले जब लोकसभा चुनाव लड़ने वाराणसी आए थे, तब नामांकन के बाद मुश्किल से एक बार कुछ घंटों के लिए उन्हें यहां आने की जरूरत पड़ी थी और वाराणसी की जनता ने उन्हें भारी बहुमत से जिताकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया था। आज हाल यह है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों को जिताने के लिए उन्हें वह सबकुछ करना पड़ रहा है, जो उन्होंने खुद के लिए भी नहीं किया था। व्यस्त प्रधानमंत्री को यहां तीन दिन लगातार न समय देना पड़ रहा है, शनिवार को उन्हें सात किलोमीटर लंबा रोड शो करना पड़ा। इतना ही नहीं, केंद्रीय मंत्रिमंडल के 16 मंत्रियों को यहां की ड्यूट लगानी पड़ी है। आखिर क्यों?इस क्यों का जवाब भाजपा के मार्गदर्शक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक (आरएसएस) के एक नेता की जुबानी सुनिए, "कोशिश यह की जा रही है कि बिगड़े दूध से जो भी मक्खन निकल सके, उसे निकाल लिया जाए।"क्या मोदी और केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा को वाराणसी के मतदाताओं पर अब वह भरोसा नहीं रहा, जो पहले था? राजनीतिक विश्लेषक व काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर आनंद दीपायन इसे प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी पर से वाराणसी की जनता का 'भरोसा उठना' बताते हैं। वह कहते हैं, "देश के प्रधानमंत्री को नीतियों की बात करनी चाहिए, क्या किया और क्या करने वाले हैं, वह सबकुछ बताना चाहिए। वाराणसी के लिए उन्होंने क्या किया और क्या करने वाले हैं, यह बताना चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री रोड शो कर रहे हैं। 

रोड शो की जरूरत क्या आ पड़ी? जनता तो हिसाब मांगेगी। आखिर तीन साल होने जा रहे हैं भाई!"प्रो. प्रदीपायन ने आईएएनएस से कहा, "रोड शो का सीधा अर्थ यह है कि वह सिर्फ माहौल बनाकर वोट लेना चाहते हैं। मोदी जी की यह पुरानी शैली है। यदि उन्होंने काम किया होता, तो आज कम से कम बनारस में उन्हें रोड शो की जरूरत नहीं पड़ती। हमें लगता है कि जनता इस बात को समझ रही है।"उन्होंने कहा, "देखिए न, उम्मीदवारों को बिल्कुल पीछे धकेल दिया गया है। मतदाताओं ने उनके चेहरे तक नहीं देखे, यह तो अजीब चुनाव है। बनारस में ऐसा कभी नहीं हुआ। यह लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है।"प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को वाराणसी में बीएचयू से काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके बाद कालभैरव मंदिर तक रोड शो किया। उन्होंने दोनों मंदिरों में पूजा-अर्चना भी की। रविवार को साढ़े पांच बजे काशी विद्यापीठ में चुनावी सभा को संबोधित करने का उनका कार्यक्रम है। वरिष्ठ कवि ज्ञानेंद्रपति कहते हैं, "वाराणसी भाजपा के लिए, खासतौर से नरेंद्र मोदी के लिए नाक की लड़ाई है। हर जगह जीत गए, यहां हार गए तो मुंह दिखाना मुश्किल हो जाएगा। पार्टी के लोग उनसे सवाल पूछने लगेंगे। इसलिए वह किसी भी हाल में यहां की कम से कम भाजपा की परंपरागत सीटों को बचाकर अपनी इज्जत बचाना चाहते हैं।"

वाराणसी शहर क्षेत्र की तीन सीटें फिलहाल भाजपा के पास हैं। शहर दक्षिणी से श्यामदेव राय चौधरी, उत्तरी से रविंद्र जायसवाल और कैंटोनमेंट से ज्योत्साना श्रीवास्तव भाजपा से मौजूदा विधायक हैं। शहर दक्षिणी में चौधरी की जगह इस बार आरएसएस के युवा कार्यकर्ता नीलकंठ तिवारी को टिकट दिया गया है। उत्तरी क्षेत्र से मौजूदा विधायक रविंद्र जायसवाल पर भाजपा ने एक बार फिर भरोसा किया है और कैंटोनमेंट से मौजूदा विधायक ज्योत्सना के बेटे सौरभ श्रीवास्तव को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा के स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कम से कम इन तीनों सीटों को पार्टी किसी भी हाल में हाथ से जाने नहीं देना चाहती और बाकी बची सीटों के लिए ये सारी कोशिशें चल रही हैं। लेकिन भाजपा के पितृ संगठन 'आरएसएस' को भरोसा नहीं है कि ये कोशिशें रंग लाएंगी। संघ के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर करने का अनुरोध करते हुए कहा कि 'संघ वाराणसी से दो सीटों की ही उम्मीद रखता है।' संघ के नेता ने आईएएनएस से कहा, "वाराणसी की स्थिति से भाजपा और संघ का शीर्ष नेतृत्व वाकिफ है और अब कोशिश यह की जा रही है कि बिगड़े दूध से जो भी मक्खन निकल सके, उसे निकाल लिया जाए। मोदी का तीन दिन काशी प्रवास इसी रणनीति का हिस्सा है।"ढाई साल में बहुत कुछ बदल गया है। प्रधानमंत्री के अपने लोग भी मानने लगे हैं कि काशी में भाजपा का दूध बिगड़ चुका है और रहीम दास की मानें तो बिगड़े दूध से मक्खन नहीं निकलता, चाहे उसे कितना भी मथा जाए। अब देखना यह है कि भाजपा और संघ के पास कौन-सी मथनी है और वे उससे कितना मक्खन निकालते हैं? कितना मक्खन निकला, यह 11 मार्च को ही पता चल पाएगा। 

 

Tags: Election Special

 

 

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