बॉलीवुड में आने पर शुरुआती दिनों में कंगना रानौत को शब्दों के उच्चारण और उचित ड्रेसिंग सेंस न होने की वजह से मजाक का पात्र बनना पड़ा था और वह अपने मुखर स्वभाव के कारण अक्सर विवादों में फंस जाती थीं। 'रंगून' की अभिनेत्री का कहना है कि वह रचनात्मक आलोचना को खुले दिल से स्वीकार करती हैं, लेकिन जबरदस्ती खिंचाई करने को वह बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या नकारात्मक टिपप्णी या आलोचना से वह प्रभावित होती हैं, उन्होंने आईएएनएस को बताया, "अगर यह रचनात्मक है तो निश्चित रूप से यह मेरे लिए और मेरे करियर के विकास के लिए फायदेमंद होगा, लेकिन अगर यह आलोचना नहीं है और सिर्फ मजाक या खिंचाई करने के लिए किया जा रहा है, तो मैं निश्चित रूप से इसे बर्दाश्त नहीं करूंगी।"
कंगना ने हमेशा खुलकर अपनी राय रखी है, यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें उनकी बातों को नकारात्मक रूप में लिए जाने का डर नहीं लगता तो उन्होंने कहा कि जब कोई मामला सामने लाया जाता है तो उस पर चर्चा और विचार किए जाने की जरूरत होती है, मुख्य एजेंडा उस मुद्दे पर प्रकाश डालना होता है न कि उन पर, इसलिए वह सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव की चिंता नहीं करतीं। कंगना ने 'गैंगस्टर' (2006) फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा था। वह बॉलीवुड में अपनी सफलता और असफलता का श्रेय अपने सीखने की प्रक्रिया और विकास करने की प्रक्रिया को देती हैं। उन्होंने कहा कि हर सफलता और असफलता इस बड़े सफर का हिस्सा है।
फिल्म 'रंगून' में अपने अभिनय के लिए तारीफें बटोर रहीं कंगना ने सैफ अली खान और शाहिद कपूर अच्छा कलाकार बताया।
यह पूछे जाने पर कि क्या पुरुष फिल्म उद्योग अभी भी पुरुष प्रधान है है तो कंगना ने कहा कि उन्हें लगता है कि इस दिशा में सबने सामूहिक रूप से काम किया है। कुछ सालों से अब महिलाओं के सशक्तीकरण पर बात होने लगी है।कंगना का मानना है कि सिनेमा भी कुछ हद तक नारीवाद की लहर के लिए जिम्मेदार है। अभिनेत्री ने कहा कि भगवान की कृपा से वह भी इस लहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। कंगना ने इस बात पर जोर दिया कि महिला सशक्तीकरण से जुड़े कई मुद्दे हैं, जिन पर और फिल्में बनाई जानी चाहिए।