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उत्तराखंड का गांव, जहां लग्न के बावजूद नहीं होती शादियां!

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ऊधमसिंहनगर, (उत्तराखंड) , 22 Feb 2017

हिंदू विवाह के लिए इन दिनों अबूझ-सर्वाधिक शुभ नक्षत्र होने के बावजूद उत्तराखंड के एक गांव में कहीं भी शादी की शहनाई नहीं बज रही है। यह कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह सिलसिला आजादी के बाद से ही चल रहा है। ऊधमसिंहनगर जिले में मल्सा गिरधरपुर नामक एक हजार की आबादी वाले गांव के वाशिंदे प्रतिवर्ष इन्हीं दिनों अपने संत महापुरुष की याद में मनाए जाने वाले समारोह में व्यस्त रहते हैं, और इस दौरान वे शादी जैसे समारोह से दूर रहते हैं।अब तुलसी धाम के नाम से विख्यात इस गांव के महंत राजेन्द्र कुमार कहते हैं, "अलौकिक माने जाने वाले संत महापुरुष बाबा तुलसीदास ने 63 वर्ष पूर्व 1953 में फाल्गुन माह की 11 तारीख को अपना शरीर त्यागा था। तभी से इस संत की याद में यह कार्यक्रम अनवरत आजादी के बाद 63 वर्षो से चला आ रहा है। इस वर्ष फाल्गुन माह की 11 तारीख अर्थात 22 फरवरी को विशाल यज्ञ में हरिद्वार, ऋषिकेश, वंृदावन, मथुरा, दिल्ली अहमदाबाद, मध्य प्रदेश, नेपाल, द्वारका, अयोध्या, हरियाणा, महाराष्ट्र सहित अनेक स्थानों से संतों ने हिस्सा लिया।" 

14 फरवरी से प्रारम्भ हुआ यह समारोह 22 फरवरी को संपन्न हो गया। समारोह में सत्संग, प्रवचन, धार्मिक नाट्य मंचन के साथ ही अनेक खेल व प्रतियोगिताएं तथा नि:शुल्क नेत्र ऑपरेशन शिविर आयोजित किए गए।उन्होंने कहा कि इस आयोजन में ग्रामीणों की अत्यधिक व्यस्तता के कारण यहां कोई भी घरेलू कार्यक्रम आयोजित नहीं होता, यहां तक कि शादियां भी नहीं होती हैं।उत्तराखंड के वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य जगदीश शास्त्री ने कहा, "हिन्दू पाचांग के अनुसार कुल 27 नक्षत्रों -अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पुर्वाषाढ़ा, उत्तरषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती में से कुछ नक्षत्रों में अबुझ अर्थात बिना पूर्व निर्धारण ही आप शादी का मुर्हूत तय करवा सकते हैं।

"शास्त्री के अनुसार, "21 फरवरी को मूल नक्षत्र एवं 22 फरवरी (11 फाल्गुन) को पूर्णषाढ़ा नक्षत्र तथा 28 फरवरी को उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हैं, जो सर्वाधिक शुभ माने जाते हैं। हिंदू पांचांग के अनुसार विवाह हेतु प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में पड़ने वाले ये नक्षत्र अबूझ होते हैं। देश भर में इन नक्षत्रों में सर्वाधिक विवाह होते हैं।"पंजाबियों के इस गांव के मूल निवासी तथा उत्तराखंड के पूर्व चिकित्सा-स्वास्थ्य मंत्री तिलकराज बेहड़ ने कहा, "विदेशों में बसे यहां के अनेक प्रवासी छुट्टी लेकर समारोह में हिस्सा लेने आते हैं, इसी कारण गांव के सभी सरकारी, अर्धसरकारी संस्थान भी इन दिनों बंद रहते हैं।"नेपाल सीमा पर स्थित बनबसा निवासी तथा इस गांव के दामाद कपिल भार्गव ने कहा, "63 वर्ष पूर्व जिस समय बाबा ने शरीर त्यागा था, उस दिन गांव में भूचाल जैसी स्थिति से हाहाकार मच गया था। गांव के सभी कच्चे घर आग के हवाले हो गए, मौसम साफ होने के बाद लोगों ने देखा कि गांव के ही मध्य जिस स्थान पर बाबा की झोपड़ी थी, वहां मौसम का कोई असर नहीं पड़ा।

"मल्सा गांव दिल्ली-काठमांडू राजमार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग-74) से तीन किलोमीटर दूर किच्छा तहसील अर्न्तगत आता है। इसी गांव के पड़ोसी गांव शिमला के पूर्व प्रधान अजीत सचदेवा ने कहा, "इस आंखों देखी डरावनी घटना से थोड़े समय पूर्व बाबा ने विस्मय भरी वाणी में पांच वर्षीय बालक रमेश लाल (महंत राजेन्द्र कुमार के पिता) को अपनी गद्दी का वारिस बनाने की घोषणा की और कहा कि मैं जा रहा हूं और यह गांव अब दिन-दूना और रात चौगुना दर से तरक्की करेगा।"बाल ब्रह्मचारी बाबा तुलसीदास कहां के रहने वाले थे, किस जाति-धर्म के थे, यह तो कोई नहीं जानता, लेकिन लोगों में उनके प्रति अटूट विश्वास व श्रद्धा है। दिन निकलते ही बच्चा हो या बूढ़ा, महिला हो या पुरुष सभी इस संत की गद्दी पर माथा अवश्य टेकने आते हैं।इस वर्ष समारोह में 25 हजार श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। गांव के 65 वर्षीय बुजुर्ग राम सिंह ने बताया कि बाबा तुलसीदास गांव में ही एक पेड़ के नीचे रात-दिन धुनी रमाए रहते थे। उन्होंने कहा कि इस दिन यहां कभी कोई काल का ग्रास नहीं बना है।

 

Tags: KHAS KHABAR

 

 

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