भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में दखल की बात को भले ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) नकारता रहा हो, मगर संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय के राजनीति में जाने की घटना का जिक्र करते हुए स्वीकार किया कि संघ राजनीति में अपने कार्यकर्ताओं को भेजता है। मध्यप्रदेश के आठ दिवसीय प्रवास पर आए भागवत ने शनिवार को भोपाल के हिरदाराम नगर के कन्या महाविद्यालय में पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित 'पं. दीनदयाल उपाध्याय एक विचार' व्याख्यानमाला में रहस्योद्घाटन किया कि पं. उपाध्याय की राजनीति में रुचि नहीं थी। उन्हें तो 'गुरुजी' (गोलवलकर) ने भेजा था, उपाध्याय ने इस निर्देश पर सवाल भी किया था। भागवत ने उपाध्याय के राजनीति में भेजने की घटना का जिक्र करते हुए बताया, "दीनदयाल जी की राजनीति में रुचि नहीं थी, जब उनको राजनीति में जाने को कहा गया तो उन्होंने गुरुजी से कहा कि मुझे कहां भेज रहे हो, मेरी तो राजनीति में बिल्कुल रुचि नहीं है।
इस पर गुरुजी ने कहा कि इसीलिए तो भेज रहे हैं, जब तुम्हारी रुचि होने लगेगी तो वापस बुला लेंगे।"उन्होंने आगे कहा कि पं. उपाध्याय किसी चमक के लिए राजनीति में नहीं गए थे, वे तो पुनर्रचना के लिए इस क्षेत्र में आए थे। अगर उनसे राजनीति से वापस आने के लिए कहा जाता तो वे लौट आते। भागवत ने आजादी के बाद की राजनीति का जिक्र करते हुए कहा कि जब देश आजाद हुआ तो लोगों ने बड़ी आशा की थी, लेकिन उनकी आशा के अनुरूप काम नहीं हो रहा, क्योंकि राजनीति कर्तव्य नहीं रही, वह तो सत्ता का साधन बन गई।उन्होंने जनसंघ की स्थापना और संघ के सहयोग का जिक्र करते हुए बताया कि संघ के स्वयंसेवकों को लगने लगा कि राजनीति में रहे बगैर अपना काम करते हुए सुरक्षित रहना कठिन है। पार्टी बनाने की बात आई तो उसे अस्वीकार कर दिया गया, क्योंकि संघ राजनीति में नहीं जाता।
तब तक श्यामा प्रसाद मुखर्जी जनसंघ की स्थापना कर चुके थे और उन्हें कार्यकर्ताओं की जरूरत थी, तब संघ ने अपने कार्यकर्ता वहां भेजे। उन्होंने संघ के कार्यकर्ताओं के जनसंघ का हिस्सा बनने की बात स्वीकारी और कहा कि भारतीय राजनीति को एक मोड़ देना था, यह बात मन में रखकर संघ के कार्यकर्ता गए थे। राजनीति को लेकर आम जन की धारणा अच्छी नहीं है और इसी धारणा को बदलने के लिए संघ के कार्यकर्ता वहां हैं।संघ पर जातिवाद, सांप्रदायिकता फैलाने के लगने वाले आरोपों का जवाब देते हुए भागवत ने कहा कि जब दीनदयाल चुनाव लड़े थे, तब उन्होंने जातिवाद का विरोध किया था। अकेले ब्राह्मण वर्ग के उम्मीदवार होने और ब्राह्मण बहुल क्षेत्र होने के बावजूद वह चुनाव हार गए थे। इस व्याख्यान माला में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान भी मौजूद थे।