दिल्ली में धूमधाम से मना 'ललित दिवस'
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नई दिल्ली , 02 Feb 2017
देश के पूर्व रेलमंत्री और मिथिलांचल के सबसे बड़े राजनेता रहे ललित नारायण मिश्र की जयंती राष्ट्रीय राजधानी में धूमधाम से 'ललित दिवस' के रूप में मनाया गया और विशिष्ट व्यक्तियों को ललित सम्मान भी दिया गया। समारोह में ललित नारायण मिश्र के पौत्र राहुल मिश्र भी पहुंचे। राहुल मिश्र ने कहा कि ललित बाबू के योगदान को मिथिलांचल कभी भूल नहीं सकता। उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि मिथिला (मधुबनी) पेंटिंग को विश्व स्तर पर पहचान मिली। मिथिला आज उपेक्षित है, लेकिन जो कुछ विकास हुआ, वह ललित बाबू की देन है।
उन्होंने कहा कि मधुबनी जिले के झंझारपुर में कमला नदी पर रेलवे का पुल है। रेल पटरी से होकर बस, ट्रक वगैरह चलाए जाने की अनुमति रेलमंत्री रहते ललित बाबू ने ही दी थी। अगर ऐसा नहीं होता तो लगभग आधी मिथिला दूसरे हिस्से से कटी रहती, विकास की किरण नहीं देख पाती। आज उनके किए कार्यो को आगे बढ़ाने की जरूरत है। समारोह की मुख्य अतिथि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मैथिली कथाकार व कवयित्री डॉ. शेफालिका वर्मा ने युवा मैथिल पत्रकार सुधीर झा, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पंकज मिश्रा, दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक संजीव झा और मैथिल गायक व अभिनेता सहित कुछ अन्य लोगों को ललित सम्मान से सम्मानित किया।
इन विशिष्ट व्यक्तियों को पुरस्कार के रूप में प्रशस्तिपत्र, पाग और दोपटा (शॉल) प्रदान किया गया। इस अवसर पर आकाशवाणी के पूर्व निदेशक एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता कवि डॉ. गंगेश गुंजन भी उपस्थित थे। ललित दिवस का आयोजन पूर्वी दिल्ली के पश्चिमी विनोद नगर स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद पार्क में किया गया। आयोजकसंस्था मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन बीरबल झा ने कहा, "यह सम्मान मिथिलांचल क्षेत्र के विकास के लिए किए गए प्रयासों के लिए दिया गया है। मिथिलांचल के सामाजिक-आर्थिक विकास में इन लोगों ने अहम योगदान दिया है और उनके प्रयासों को देखते हुए उन्हें यह सम्मान देने का फैसला लिया गया।"
उन्होंने कहा कि उनकी संस्था मिथिलांचल के विकास के लिए काम कर रहे लोगों को आगे भी सम्मानित करती रहेगी। डॉ. झा ने कहा कि आज ललित बाबू रहते तो सीता की मिथिला विकसित क्षेत्र होती, देश-विदेश के लोग इस पावन धरती को देखने आते, जहां की मिट्टी से सीता प्रकट हुई थीं। अफसोस कि आज सीता की जन्मभूमि मिथिला 21वीं सदी में भी उपेक्षित है और ससुराल अयोध्या दो धर्मो की रणभूमि बनी हुई है। राम की अयोध्या चुनावी मुद्दा बन जाती है, लेकिन सीता की धरती की ओर किसी पार्टी का ध्यान नहीं है।मुख्य अतिथि शेफालिका वर्मा ने कहा कि ललित बाबू दूरदर्शी राजनेता थे और उनके मन में मिथिलांचल के प्रति गहरा लगाव था।
उन्होंने ललित नारायण मिश्र के साथ साझा किए पलों के बारे में भी बताया।शेफालिका ने कहा, "मेरा समस्त मिथिलावासी से आग्रह है कि वे हर साल 2 फरवरी को 'ललित दिवस' मनाएं और मिथिला के आन-बान-शान के लिए काम करें।"ललित सम्मान से सम्मानित होने के बाद पत्रकार सुधीर झा ने कहा कि यह उनके लिए गौरव की बात है कि मिथलालोक संस्था ने उनके प्रयासों को पहचाना और सम्मान के लायक समझा। उन्होंने कहा कि सम्मान से न केवल प्रतिभा और निखरती है, बल्कि हर सम्मान के साथ जिम्मेदारी और जवाबदेही भी बढ़ जाती है।
सहरसा के बलुआ बाजार में 2 फरवरी, 1923 को जन्मे ललित नारायण मिश्र 2 जनवरी, 1975 को देश के रेलमंत्री के रूप में बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर एक कार्यक्रम के दौरान बम विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। अगले दिन उनके निधन की खबर आई। बम विस्फोट में उनके छोटे भाई डॉ. जगन्नाथ मिश्र भी घायल हो गए थे। उन्हें जब होशा आया तो उन्होंने पूछा, "भाईजी कतय छथि? (भाईजी कहां हैं?) उन्हें बाद में बताया गया कि ललित बाबू इस दुनिया में नहीं रहे। इस हादसे के बाद डॉ. जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री बने।
ललित बाबू की हत्या क्यों की गई, किन लोगों ने की, यह आज भी रहस्य बना हुआ है। चालीस साल बाद आए फैसले में चार आनंदमार्गियों को सजा सुनाई गई, लेकिन ललित बाबू के पुत्र विजय कुमार मिश्र इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। वह तो यह भी नहीं मानते कि इस मामले में जिन लोगों को सजा दी गई है, वे ही ललित बाबू के हत्यारे थे। विजय का मानना है कि जांच भटाकाई गई है, असली हत्यारों को बचाया गया है।