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नोटबंदी का असर : सब्जियों की कीमतें गिरीं

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बेंगलुरु , 18 Jan 2017

बेंगलुरु से 85 किलोमीटर पूरब स्थित कोलार जिले के तंडाला गांव के 31 वर्षीय किसान सुनील कुमार का नवंबर में 3,00,000 रुपये का नुकसान हो गया। नोटबंदी के कारण टमाटर की कीमतें काफी गिर गई थीं और बाजार में मांग घटने से जरूरत से काफी अधिक आपूर्ति हो गई थी। इसका खामियाजा सुनील को भुगतना पड़ा। कुमार अपने पांच एकड़ के खेत में टमाटर उगाते हैं। उनका कहना है कि इससे पहले के साल में उन्होंने टमाटरों से 30 लाख रुपये की कमाई की थी। लेकिन, 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद बाजार में मंदी छा गई। 

कुमार का कहना है कि इस बार मौसम मेहरबान था। फसल बहुत अच्छी हुई थी। लेकिन, नोटबंदी हो गई। बाजार से पैसा चला गया, टमाटर की कीमत 80 फीसदी घट गई।कुमार का कहना है, "इस बार 15 किलो टमाटर 30 से 50 रुपये की दर से बिके, जबकि जब भाव बढ़े हुए थे तब इसकी कीमत 700 रुपये हुआ करती थी। इस भाव में मेरे लिए टमाटर को बेचने के लिए बाजार ले जाना भी घाटे का सौदा होता, क्योंकि जितनी कमाई होती उससे कहीं ज्यादा रकम इसे ढोने में खर्च हो जाती। मैंने नवंबर के अंत में ही टमाटरों के पौधों को उखाड़ कर फेंक दिया, ताकि नुकसान कम से कम हो। इतना नुकसान मैंने आज तक नहीं देखा।"

कोलार कर्नाटक का सबसे बड़ा सब्जी उत्पादक क्षेत्र है और यहां एशिया का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर बाजार है। नवंबर में यहां टमाटर 3-5 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहे थे जो सामान्य से 85 फीसदी कम है। देश के दूसरे इलाकों की हालत भी ऐसी ही है। कई जगह तो 25 पैसे किलो टमाटर बिकने की भी खबरें आई है। छत्तीसगढ़ में तो एक जिले में किसानों ने 45 हजार किलो टमाटर सड़क पर बिछा दिया।कर्नाटक और तमिलनाडु के किसान जहां टमाटरों की गिरती कीमत से परेशान हैं, वहीं महाराष्ट्र और गुजरात के किसान प्याज की कीमतों में आई कमी के शिकार है। नासिक में प्याज 5 से 7 रुपये किलो तक बिका। 'इंडियास्पेंड' द्वारा सात शहरों में सब्जियों के कीमतों के विश्लेषण के बाद यह जानकारी सामने आई है। इन शहरों में अहमदाबाद, कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदारबाद, दिल्ली और मुंबई शामिल हैं जहां नवंबर 2015 से नवंबर 2016 के बीच कीमतों का विश्लेषण किया गया। 

राज्य के स्वामित्व वाली बागवानी उत्पादक सहकारी विपणन एवं प्रसंस्करण सोसाइटी के निदेशक बेल्लुर कृष्णा ने इंडियास्पेंड को बताया, "पिछले साल मॉनसूनी बारिश कम हुई थी, जिसमें आपूर्ति कम थी और मांग ज्यादा थी। इस साल बारिश अच्छी हुई, इसलिए उपज भी खूब हुई। लेकिन मांग में नोटबंदी के कारण भी कमी आई है, जिससे कीमतें काफी गिर गईं हैं।"देश में कुल 94 लाख हेक्टेयर में सब्जियों की खेती होती है, जोकि कुल खेती का 10 फीसदी है। इनमें भी आधी से ज्यादा खेती आलू, प्याज और टमाटर की होती है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के निदेशक बृजेंद्र सिंह ने इंडियास्पेंड को बताया, "फलों और सब्जियों का ज्यादातर कारोबार नकदी ही होता है। इसलिए नोटबंदी के कारण निश्चित रूप से इस पर प्रभाव पड़ा है। साथ ही आमद में तेजी के कारण कीमतें ज्यादा गिरी हैं।"सिंह का अनुमान है कि अगली तिमाही तक स्थितियां सामान्य हो जाएंगी और इस साल गर्मियों में किसानों को उपज की अच्छी कीमत मिलेगी। 

 

Tags: Demonetisation

 

 

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