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'उच्च शिक्षा और शोध का भी कायाकल्प कर सकते हैं नरेंद्र मोदी' सहाना घोष

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मोहनपुर (पश्चिम बंगाल) , 15 Jan 2017

नरेंद्र मोदी सरकार को अब उच्च शिक्षा और शोध बढ़ावा देने वाले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जैसे निकायों के कायाकल्प के लिए उसी तरह की निश्चितता दिखानी चाहिए जैसी उसने नोटबंदी को लेकर दिखाई है। ये बातें एक विख्यात वैज्ञानिक ने कहीं। एक मशहूर बायोकेमिस्ट और शिक्षक तथा भारतीय विज्ञान संस्थान (आईईआईएससी) के पूर्व निदेशक पी. बलराम ने विज्ञान के तथाकथित भगवाकरण के प्रयास को र्थहीन और मूर्खतापूर्ण बताकर खारिज कर दिया।बलराम ने कहा, "अगर आप नोटबंदी कर सकते हैं तो उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में कार्रवाई करने में मैं कोई बाधा नहीं देखता हूं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नियामक निकायों जैसे यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग), एआईसीटीई (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद) और नाक (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) को लेकर तुरंत कुछ कार्रवाई करने की जरूरत है। "
आईआईएसईआर-कोलकाता परिसर में जीव विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति पर आयोजित सम्मेलन के इतर बलराम ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि तीनों महत्वपूर्ण निकायों का पूर्ण कायाकल्प और गैरराजनीतिकरण होना जरूरी है, क्योंकि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दक्षता का कुछ स्तर होना चाहिए।9 वर्षो तक आईआईएससी, बेंगलुरु के संचालन करने समेत 43 वर्ष तक इस शीर्ष संस्थान में सेवा देने वाले 68 वर्षीय वैज्ञानिक ने सुझाव दिया, "शिक्षा के साथ भी समस्या है और इसका एक बड़ा निजी घटक है, इसलिए आपको निजी और सरकारी संस्थानों पर अलग-अलग ध्यान देने की जरूरत है।"104वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस में विज्ञान को अध्यात्मिकता से जोड़ने पर आलोचना होने के कुछ दिनों बाद बलराम ने मोदी शासन में विज्ञान के भगवाकरण के दावों को खारिज कर दिया।
संस्थानों के प्रमाणन की प्रक्रिया को कुछ सालों में भ्रष्ट होने की बात मानते हुए आईआईटी-कानपुर के पूर्व छात्र बलराम ने संस्थानों की शैक्षिणिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप की निंदा की।उन्होंने कहा, "अगर आप संस्थानों को मान्यता देना चाहते हैं तो आप निजी और सरकारी संस्थान को एक साथ नहीं मिला सकते हैं। विगत कुछ सालों में प्रमाणन प्रक्रिया भी काफी भ्रष्ट हो गई है, क्योंकि कॉलेजों की संख्या तेजी से बढ़ी है और यह संस्थानों की शैक्षणिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप है।"तीखी वार्ता और लेखन के लिए मशहूर बलराम ने प्रशासन और अकदमियों की स्वायत्तता में अंतर पर भी प्रकाश डाला।उन्होंने कहा, "प्रशासनिक कामकाज में आप सरकार से धन लेते हैं, इसलिए खर्च करने के लिए आपको खास नियमों का अनुसरण करना चाहिए। इस मामले में कोई स्वायत्तता नहीं चाहता है। लेकिन शैक्षणिक स्वायत्तता है कि कौन सा पाठयक्रम आप शुरू करते हैं, किस पाठ्यक्रम को मान्यता मिलनी चाहिए और मैं समझता हूं कि इस मामले में यूजीसी हस्तक्षेप करता है।"
उच्च शिक्षा और शोध के लिए बजट आवंटन में वृद्धि की वकालत करते हुए वयोवृद्ध वैज्ञानिक ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को मिलकर काम करने का सुझाव दिया।अब मृत प्राय राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के पूर्व सदस्य बलराम ने शोध कार्य के विस्तार करने का समर्थन करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पहले कार्यकाल की सरकार को सर्वाधिक अंक दिया।उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों को लागू करने में निष्क्रियता को चिंताजनक बताते हुए बलराम ने कहा, "लगता है कि उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में कुछ हद तक मोदी सरकार की अभिरुचि नहीं है। यह उनकी प्राथमिकता सूची में ऊपर नहीं है।"साल 2015 में शुरू किए गए राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क के संबंध में उन्होंने कहा, "अगर आपके सभी मानक सही हैं तो राष्ट्रीय रैंकिंग का इस्तेमाल हो सकता है। संस्थानों को ग्रेड में नहीं बांटें, बल्कि समर्थन का दायरा और प्रकार तय करें। समर्थन से मेरा तात्पर्य सभी तरह के समर्थन से है न कि केवल वित्तीय बल्कि सुविधा और मनोबल बढ़ाने से भी है।"



 

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