कभी अन्नदायिनी और जीवनदायनी मानी जाने वाली कोसी नदी को आज बिहार का शोक बना दिया गया है। तटबंधों में समाधान तलाशने वाली सरकार कोसी तटबंध के बीच रह रहे 300 गांवों के लोगों को भूल गई है। उसी इलाके के अत्यंत पिछड़े लाखों लोगों के जीवन के प्रेम, सृजन और संघर्ष को आधार बना कर घुमंतू पत्रकार पुष्यमित्र ने 'रेडियो कोसी' नाम के उपन्यास की रचना की है। पुष्यमित्र ने बड़े रोचक अंदाज में इस कथा को लिखा है ताकि पढ़ने वाला बिना ऊबे इस त्रासदी को समझ सके। ये बातें रविवार को पुस्तक मेला में पुष्यमित्र के उपन्यास 'रेडियो कोसी' के लोकार्पण के व़क्त वहां मौजूद वक्ताओं ने कही। लोकार्पण के मौके पर साहित्य अकादमी प्राप्त लेखिकाएं उषाकिरण खान, शेफालिका वर्मा, नीरजा रेणु, उत्तर बिहार के नदियों के विशेषज्ञ गजानन मिश्र, नेपाल से आये साहित्यकार धीरेन्द्र प्रेमर्षि और लेखक-संपादक प्रो देव शंकर नवीन उपस्थित थे।प्रगति मैदान में आयोजित पुस्तक मेले के आखिरी दिन उपन्यास 'रेडियो कोसी' का लोकार्पण थीम पवेलियन में हुआ। इस मौके पर बड़ी संख्या में हिंदी और मैथिली के लेखक, साहित्यकार और पत्रकार उपस्थित थे।
पटना में शनिवार को हुए नौका हादसे की वजह से इस लोकार्पण समारोह को नदियां, आपदाएं और समाधान के विषय पर केंद्रित कर दिया गया। चूंकि ज्यादातर वक्ता कोसी क्षेत्र से संबंधित थे और भुक्तभोगी थे, इसलिए उन्होंने इस विषय पर अपनी अपनी राय रखी। साहित्य अकादमी प्राप्त लेखिकाओं ने कहा कि जिस तरह अब महिलाओं को बंधन में नहीं रखा जा सकता है उसी तरह नदियों को भी बांध और तटबंधों से मुक्त किया जाना चाहिए।बिहार के रहने वाले पुष्यमित्र जो इस पुस्तक के लेखक हैं, मूलत: पत्रकार हैं। वे अपने काम के सिलसिले में 2008 से ही कोसी के इलाके में जाते आते रहे हैं। उन्हें इस विषय पर काम करने के लिए सीएसडीएस से फेलोशिप भी मिला था। उस विषय पर उन्होंने 'फरकिया' नाम से एक रिपोर्ताज पुस्तक लिखी थी। वह कहते हैं कि इस गंभीर समस्या को आम लोगों की निगाह में लाने के लिए किसी रोचक कथा की जरूरत थी इसलिए उन्होंने उपन्यास विधा का सहारा लिया है। किताब को ज्योतिपर्व प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इसकी कीमत 125 रुपये रखी गई है।