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बस्तर में पहली महिला सीआरपीएफ अधिकारी ने संभाली कमान

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5 Dariya News

जगदलपुर , 09 Jan 2017

नक्सल प्रभावित बस्तर में पहली बार सीआरपीएफ बटालियन-80 में किसी महिला असिसटेंट कमांडेंट ने कार्यभार संभाला है। उषा किरण की यहां पदस्थापना से सुरक्षा बलों का मनोबल एवं आत्मविश्वास बढ़ा है। सहायक कमांडेंट उषा किरण सीआरपीएफ में तीसरी पीढ़ी की अधिकारी हैं। उनके दादा दीपचंद एवं पिता विजय सिंह भी सीआरपीएफ में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इसके अलावा उनके भाई दर्शन सिंह भी सीआईएसएफ में सेवारत हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि रक्षाबलों के लिए सेवा देना उनके खून में है।मूलत: गुड़गांव (हरियाणा) निवासी इस महिला अधिकारी ने ट्रिपल जंप की राष्ट्रीय विजेता रहते हुए स्वर्ण पदक भी पूर्व में हासिल किया है। उषा किरण बताती हैं कि उनकी सेवाएं 332 महिला बटालियन में थीं, जहां पर उन्हें आगामी सेवा के लिए तीन विकल्प दिए गए, जिसमें से उन्होंने नक्सल प्रभावित बस्तर में आना स्वीकार किया। इसके पीछे मूल वजह यह रही कि उन्होंने सुन रखा था कि बस्तर के स्थानीय निवासी गरीब भोले-भाले हैं और बस्तर विकास से कोसों दूर है, क्योंकि नक्सली हिंसा के चलते विकास कार्य गति नहीं पकड़ पाया है। इन सबसे भी बढ़कर उनके पिता विजय सिंह का वास्तविक अनुभव उनके लिए बस्तर आने की प्रेरणा का कारण बना, क्योंकि उनके पिता वर्ष 2008-09 के दौरान सीआरपीएफ की अपनी सेवा के तहत सुकमा जिले में कार्य कर चुके हैं।बस्तर में अपने पहले अभियान के अनुभवों का वर्णन करते हुए उषा किरण ने बताया कि वे आंतरिक दुरूह अंचल में बसे ग्राम भडरीमऊ (दरभा क्षेत्र) अपने दल के साथ गई थीं, जहां पहुंचने के लिए उन्हें 20 किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय करना पड़ा। 

उस गांव में जब वे पहुंचीं, तब उनका मन यह देखकर प्रसन्न हो गया कि गांव की आदिवासी महिलाएं उन्हें देखकर अपने-अपने घरों से बाहर निकल आईं और उन महिलाओं के चेहरे पर प्रसन्नता की झलक साफ दिखाई पड़ रही थी। उषा किरण ने जब दुभाषिए के माध्यम से उनसे बातचीत की, तब ग्रामीण महिलाओं ने उन्हें बताया कि अब तक क्षेत्र में पुरुष-जवानों एवं अधिकारियों की आमद उनके लिए चिंता एवं भय का कारण बनी रहती थी, पर अब एक महिला अधिकारी के नेतृत्व में यदि बल घरों की तलाशी भी लेता है या अन्य कोई गतिविधियां संचालित करता है, तब भी उन्हें कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी। उन्हें पुलिस यूनिफार्म में देखकर ग्रामीण महिलाएं उत्साहित होकर कह रही थीं, वे भी अपने बच्चों को पढ़ाएंगी और सुरक्षाबलों में नौकरी के लिए प्रेरित करेंगी। उषा किरण का मानना है कि बस्तर में व्याप्त नक्सल समस्या के पीछे क्षेत्र का विकास न हो पाना और स्थानीय लोगों की अज्ञानता व पुलिस और ग्रामीणों के बीच अपनत्व का अभाव ही है। इसलिए इस समस्या के निदान के लिए पहली जरूरत यह है कि विकास की गति बढ़े और हमारे जवान अपने समाजिक गतिविधियों एवं सेवा कार्यों व जन हितकारी कदमों के जरिए जन-जन तक अपनी गहरी पैठ बनाएं, ताकि ग्रामीण हमें स्वयं से अलग न समझे। 

विगत लगभग डेढ़ दशकों से वे ऐसा महसूस करने लगे थे कि उन पर नक्सली राज कर रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा है और ग्रामीण, बलों को अपना करीबी समझने लगे हैं।इसी बटालियन के सहायक कमांडेंट नंदलाल ने महिला अधिकारी के प्रवेश के स्वागत करते हुए कहा कि अब तक बलों पर ग्रामीणों, ग्रामीण महिलाओं द्वारा विभिन्न आरोप लगाए जाते रहे हैं, मगर अब एक महिला अधिकारी की मौजूदगी बल के कार्य को सुगम बना देगी और वे अपने कर्तव्य का निर्वहन सरलतापूर्वक करने में कामयाब होंगे। दरभा के थानेदार विवेक उईके की धारणा है कि महिला अधिकारी के आगमन तथा उनके अभियान संबंधी विचारधारा से बलों के जवानों का मनोबल बढ़ा है। पहले अभियान की योजनाएं ऊपर से भेजी जाती रही हैं, लेकिन अब उषा किरण की नीति यह है कि धरातल पर कार्यरत जवानों एवं अधिकारियों के द्वारा योजना तैयार कर उन्हें अमल में लाया जाए, क्योंकि अभियान के रास्ते में आने वाली समस्याओं, दिक्कतों एवं उनसे निजात पाने के रास्तों का व्यवहारिक अनुभव उनके साथ है।उन्होंने यह भी स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि उन्हें महज एक महिला न मानें और वे उन सबके साथ हर कठिन परिस्थिति में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करेंगी। एक ग्रामीण आदिवासी महिला (नाम नहीं दिया जा रहा है) का कहना था कि अब हम महिलाएं अपनी स्वयं एवं अपनी अस्मिता की सुरक्षा के प्रति निश्चिंत हैं, क्योंकि हमारे हितों एवं भावनाओं की रक्षा के लिए एक महिला अधिकारी मौजूद है।

 

Tags: KHAS KHABAR

 

 

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