मुझे याद नहीं आता कि 88 वर्षो के इतिहास में कभी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष और सचिव को सर्वोच्च न्यायालय ने बर्खास्त किया हो, लेकिन यह कदम चौंकाता नहीं। यह तो होना ही था। पिछली जुलाई में अदालत द्वारा लोढ़ा समिति की बोर्ड में पुनर्सुधार संस्तुतियों को स्वीकार किए जाने के बाद यह तय था कि दिन बहुरेंगे। मगर तब से लगातार बीसीसीआई यही कोशिश करती रही कि कहीं कोई बच निकलने का रास्ता मिल जाए।एक के बाद एक तिकड़म लगाए जाते रहे। कांग्रेसी राजनेता और देश के सबसे महंगे वकील कपिल सिब्बल की सेवाएं ली गईं। बोर्ड सदर ने पारदर्शिता लाने के लिहाज से कैग से ऑडिट करने की संस्तुतियों के मामले में आईसीसी को भी घसीटने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजनेता सांसद और बोर्ड के सदर अनुराग ठाकुर की कोशिश और उनका झूठा हलफनामा गले की फांस बन गया।
तय था कि दो जनवरी को जो आदेश आएगा, वह देश में क्रिकेट संचालित करने वाली संस्था की चूलें हिला कर रख देगा और यही हुआ भी। सदर और सचिव ही नहीं, बल्कि जिन राज्य संघों में संस्तुतियां लागू करने में आनाकानी की गई, वहीं के भी अधिकारी बर्खास्त हो गए।ठाकुर की हालत यह है कि अदालत की अवमानना के आरोप में उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। राजनीति में शुचिता और ईमानदारी की बात करने वाली भाजपा के ठाकुर ने जिस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने में लगातार अड़ंगा लगाया, वह वाकई शर्मनाक रहा।अहंकार, पदलोलुपता, हठधर्मिता क्या कुछ नहीं देखा देश ने ठाकुर एंड कंपनी में। ऊपर से तुर्रा यह कि बर्खास्तगी के बाद हिमाचल क्रिकेट संघ के भी अध्यक्ष ठाकुर ने जिस अंदाज में यह कहा कि उनका संघर्ष बोर्ड की स्वायत्तता के लिए है और वह जारी रहेगा, वह बता रहा था कि पूंछ जल गई लेकिन ऐंठन नहीं गई।
ठाकुर किस स्वायत्तता की बात कर रहे हैं कि कोई पदाधिकारी दो पद नहीं संभाल सकता, 70 वर्ष उम्र की समयसीमा, किसी पदाधिकारी का नौ वर्ष से अधिक कार्यकाल नहीं, बोर्ड में खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व, खिलाड़ी संघ को मान्यता, एक राज्य एक वोट आदि। कहां से गलत हैं? ठाकुर ने अपने वीडियो में बखान किया कि बोर्ड ने क्रिकेट को ऊंचे पायदान तक पहुंचाया है। एक से बढ़कर एक श्रेय पुराने खिलाड़ियों की चयन समिति और खिलाड़ियों को है न कि खेल की समझ रखने वाले बोर्ड अधिकारियों को।वैसे माननीय ठाकुर यह भूल चुके हैं कि देश में इस खेल को पहले स्थान पर पहुंचाने के लिए क्रिकेट प्रेमियों को श्रेय जाता है, जो यह जानते हुए भी कि टेस्ट मैच अनीर्णित होगा, चार दशक पूर्व मैच के अंतिम दिन भी मैदान ठसाठस रखते हैं। श्रेय उस मीडिया खास कर भाषायी मीडिया को जाता है, जिन्होंने आम जन को क्रिकेट पढ़ना सिखाया।
सबसे ऊपर तो बोर्ड को आभार मानना चाहिए, रेडियो की हिंदी कमेंट्री का जिसने हल जोत रहे बैल के गले में लटके ट्रांजिस्टर पर विविध भारती के गानों से दूर कर किसान को चौके-छक्के की ओर मोड़ दिया।इस लोकप्रियता को दोनों हाथों से बोर्ड ने भुनाया। वो बोर्ड, जो 1987 के विश्व कप की मेजबानी के लिए रिलायंस के आगे हाथ फैलाने पर मजबूर हुआ कि उसके पास एक करोड़ विदेशी मुद्रा तक नहीं थी, वहीं सरकार से प्रसारण अधिकार की बपौती खत्म कर बोर्ड को जगमोहन डालमिया ने 1996 विश्व कप के सफल आयोजन से जो मालामाल किया कि फिर मुड़ कर नहीं देखा।बोर्ड यदि दुनिया का सबसे समृद्ध क्रिकेट संघ है, तो इसके लिए स्वर्गीय डालमिया और फिर आईपीएल की अवधारणा लेकर आए ललित मोदी को श्रेय देना चाहिए। ठाकुर बताएं कि पारदर्शिता का कब पक्षधर रहा है बोर्ड। खिलाड़ी नौकर और बोर्ड मालिक की भूमिका में ही रहे हैं।
ठाकुर जी जांघिए में ही होंगे जब अस्सी के दशक में खिलाड़ी संघ की पहल करने का खामियाजा दिलीप वेंगसरकर और श्रीकांत को देश की कप्तानी से हाथ धोकर भुगतना पड़ा था।अगला दशक मैच फिक्सिंग जैसे धतकर्मो से भरा रहा। बोर्ड में श्रीनिवासन युग ने तो इस खेल की ऐसी-तैसी करके रख दी और सर्वोच्च न्यायालय का दखल इसी दौरान तब हुआ जब स्पॉट फिक्सिंग घोटाले ने बोर्ड की छवि तार-तार करके रख दी। अपने दामाद के पापों को छुपाने के लिए श्रीनिवासन ने जिस बेशर्मी के साथ अपने खास उच्च न्यायालय के दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की जांच समिति गठित करने के नाम पर लीपापोती की कोशिश की और जिस तरह से दामाद मयप्पन सहित आरोपियों को बरी किया, उसके खिलाफ अदालत में जो मामला गया उसकी ही यह परिणति हुई दो जनवरी को।ठाकुर और अरुण जेटली यदि मुखर होते तो श्रीनिवासन को, जिसके दुबई-कराची से गहरे संपर्क रहे हैं, इस्तीफा देना पड़ जाता और जो फिर बाद में जो घटा, न घटता। यही कारण है कि इस मामले में भाजपा की भी कम किरकिरी नहीं हुई है।
पाकिस्तान के साथ 2022 तक सिरीज को लेकर एमओयू पर श्रीनिवासन ने ही हस्ताक्षर किए थे। इसमें राष्ट्रवादी पार्टी के इन नेताओं की भी सहमति न रहती तो ऐसा कभी नहीं होता। क्या ठाकुर बोर्ड से संबद्ध इकाइयों के भ्रष्टाचारों पर पर्दा डालने को स्वायत्तता मानते हैं? क्रिकेट प्रेमी पूछ रहे हैं कि हैदराबाद, गोवा, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड आदि के स्टेडियम निर्माण में किए गए घोटालों का उन्होंने कभी संज्ञान लिया? क्या कार्रवाई हुई उन पर? स्वयं अनुराग घिरे हैं धर्मशाला स्टेडियम और होटल निर्माण को लेकर विवादों में।राज्य संघों को भेजी गई विपुल राशि का बोर्ड ने हिसाब मांगने की कभी जहमत उठायी? ठाकुर यह भी बताएं कि देश के राज्य क्रिकेट संघों से उनके कितने जिले जुड़े हैं? बोर्ड यह भी बताए कि आईपीएल प्रसारण अधिकार दिलाने की एवज में करोड़ों की राशि शरद पवार के दामाद सुले को बतौर स्वेट (पसीना) मनी कैसे दी गयी? शशि थरूर को मंत्रीमंडल से क्यों इस्तीफा देना पड़ा था? उनकी महरूम पत्नी सुनंदा पुष्कर मौत से पहले कौन सा राज खोलने वाली थीं आईपीएल का?
उसको भी उपकृत करने के लिए करोड़ों की रकम कैसे दी गयी?ये तमाम सवाल अभी तक अनुत्तरित हैं। मुद्गल समिति की जांच रिपोर्ट में संदिग्ध 15 खिलाड़ियों और प्रशासकों की जो सूची बंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपी थी, उसका क्या हुआ? देश यह जानने के लिए बैचेन है। 19 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय की ओर से बोर्ड के कामकाज के संचालन हेतु जो समिति गठित होगी, उम्मीद है कि उसमें सभी काबिल ही नामित होंगे और बोर्ड का पुनर्सुधार देश के अन्य सभी खेल संघों के लिए लाइट हाउस का काम करेगा और केंद्र सरकार जो भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़े हुए है, सफाई अभियान में पूरा सहयोग और समर्थन देगी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चुप्पी कम खलने वाली नहीं है। उनको भी कोर्ट के आदेशानुसार गुजरात क्रिकेट संघ के सदर पद से तत्काल इस्तीफा देना चाहिए, समय की यही मांग भी है।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)