टाटा संस के अध्यक्ष पद से साइरस मिस्त्री को हटाए जाने पर समूह की इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड (आईचसीएल) के स्वतंत्र निदेशकों द्वारा जताए गए विरोध के बाद कारोबार जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि साइरस को समूह की सभी कंपनियों से हटाना प्रक्रियागत और विधिक तौर पर आसान नहीं होगा। इस मामले पर आईएएनएस ने कई विशेषज्ञों से बातचीत की, जिनमें कॉर्पोरेट मामलों के वकीलों की राय है कि वे निश्चित तौर पर तो कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि उन्हें टाटा समूह की विभिन्न कंपनियों के करार नियमों की जानकारी नहीं है।हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि विधिक तौर पर यह सब इस बात पर भी निर्भर करता है कि मिस्त्री इस पूरे मामले से किस तरह निपटना चाहते हैं।
भारतीय कंपनी सचिव संस्थान (आईसीएसआई) के पूर्व अध्यक्ष निसार अहमद ने कहा, "अगर मिस्त्री फैसलों का विरोध करने का फैसला ले लें तो उन्हें निदेशक के पद से हटाना आसान नहीं होगा।"कॉरपोरेट सलाहकार अहमद ने कहा कि टाटा संस ने जिस तरह मिस्त्री को अध्यक्ष पद से हटाया वह कानून के खिलाफ भले न हो, लेकिन यह पारदर्शी निर्णय भी प्रतीत नहीं होता और टाटा संस द्वारा अब तक अपनाई गई मूल्य आधारित शासन प्रणाली के भी विपरीत लगता है।हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि सरकार किसके पक्ष में है, क्योंकि जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और सरकार शासित कई बैंकों का टाटा समूह में बड़ी हिस्सेदारी है।
उल्लेखनीय है कि मिसत्री को हटाने के बाद टाटा संस के अंतरिम अध्यक्ष पद संभालने के ठीक बाद रतन टाटा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्री वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की।विख्यात कानूनविद ललित भसीन का कहना है कि मिस्त्री को टाटा समूह की विभिन्न कंपनियों के बोर्ड से हटाना आसान नहीं होगा और हर कंपनी के लिए स्थितियां अलग-अलग होंगी।जेपी समूह में कॉरपोरेट मामलों के उपाध्यक्ष हरीश वैद ने इसी तरह के विचार व्यक्त किए।आईसीएसआई के पूर्व उपाध्यक्ष वैद ने कहा कि प्राप्त सूचना के आधार पर यह अभी स्पष्ट नहीं हो सका है कि क्या टाटा संस के अध्यक्ष की नियुक्ति संबंधित बोर्डो द्वारा की जाती है।वैद ने कहा कि अगर इसका निर्णय प्रत्येक बोर्ड द्वारा अलग-अलग लिया जाता है तो आईएचसीएल की ही तरह स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका निर्णायक होगी।वैद ने कहा कि ऐसी स्थिति में उन्हें शेयरधारकों की अगली बैठक का इंतजार करना होगा, जिसमें निदेशकों की नियुक्ति होगी। यह ऐसी बैठक होगी जिसमें टाटा समूह अपने अप्रत्यक्ष नियंत्रण का इस्तेमाल कर सकता है और मिस्त्री को बाहर किया जा सकता है।