भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत का रविवार को स्क्रैमजेट या हवा में सांस लेने वाले इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण बच्चे के कदम जैसा है। उन्होंने कहा कि इस तरह के एक इंजन वाले एक पूर्ण रॉकेट बनने में करीब एक दशक से ज्यादा का समय लगेगा। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक के. सिवान ने संवाददाताओं से रविवार को कहा, "यह हमारे लिए एक बच्चे के कदम जैसा है, एक रॉकेट के शक्ति देने वाले इंजन के निर्माण में एक दशक से ज्यादा का समय लगेगा, वर्तमान में कोई दूसरा देश अपने रॉकेट छोड़ने में स्क्रै मजेट इंजन का इस्तेमाल नहीं करता।"
उन्होंने कहा कि वर्तमान में भारतीय रॉकेट बड़ी मात्रा में आक्सीजन ले जाते हैं। भूसमकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) में वायुमंडलीय उड़ान के दौरान 200 टन आक्सीजन का जलाने में इस्तेमाल होता है।सिवान ने कहा, "स्क्रैमजेट इंजन वायुमंडलीय आक्सीजन लेकर ईंधन को जलाने का काम करता है। इसके परिणामस्वरूप रॉकेट के भार में जबर्दस्त रूप से कमी आती है, इससे रॉकेट की वहन क्षमता बढ़ाई जा सकती है। इससे रॉकेट की कीमत में कमी होगी। "उन्होंने कहा कि इस प्रद्यौगिकी का विकसित करने का कुल कीमत 35 करोड़ रुपये आंकी गई है।उन्होंने कहा कि स्क्रै मजेट इंजन का इस्तेमाल इसरो के पुन: प्रयोग होने वाले प्रक्षेपण यान में किया जा सकता है।
प्रद्यौगिकी के परीक्षण के भाग के तौर पर इसरो ने दो स्क्रैमजेट इंजनों का परीक्षण किया है।सिवान ने कहा, "इस उड़ान के साथ, इसमें सुपरसोनिक गति वाले इंजन के हवा में सांस लेकर प्रज्जवलित होने, सुपरसोनिक गति में लौ पकड़ने, हवाग्राही तंत्र और ईंधन इंजेक्शन प्रणाली जैसी महत्वपूर्ण प्रद्यौगिकियों का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया।"स्क्रैमजेट इंजन का निर्माण इसरो ने किया है। इसमें हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में और वायुमंडल से आक्सीकारक के रूप में आक्सीजन का इस्तेमाल किया गया है।