एशियाई खेलों में देश को दो स्वर्ण पदक (2010, 2014) दिला चुकीं महिला कबड्डी खिलाड़ी तेजस्विनी बाई खेल के पहले लीग टूर्नामेंट 'महिला कबड्डी चैलेंज' की सफलता से काफी खुश हैं और उनका मानना है कि इस मंच की सफलता के साथ कई नई खिलाड़ियों को आगे बढ़ने में सफलता मिलेगी और उनका भविष्य भी अच्छा होगा। तेजस्विनी पुरुषों के लोकप्रिय लीग टूर्नामेंट स्टार स्पोर्ट्स प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) के साथ प्रायोगिक तौर पर इसी वर्ष शुरू हुए महिला कबड्डी चैलेंज की तीन टीमों में से एक स्टॉर्म क्वींस की कप्तान हैं।तेजस्विनी का मानना है कि अगर यह पूर्ण रूप से एक लीग के तौर पर शुरू होता है, तो इससे कई नई खिलाड़ियों को आगे आकर खुद को साबित करने का हौसला मिलेगा।
तेजस्विनी चीन के क्वांगचो में 2010 में और दक्षिण कोरिया के इंचियोन में 2014 में हुए एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली भारतीय महिला कबड्डी टीम का अहम हिस्सा रही थीं।आईएएनएस ने जब तेजस्विनी से पूछा कि एशियाई खेलों के अनुभव का देश में इस समय चल रहे लीग में उन्हें कितना फायदा मिल रहा है, तो उन्होंने कहा, "एशियाई खेलों में मिल जीत से थोड़ी पहचान मिली थी, लेकिन इस मंच (महिला कबड्डी चैलेंज) ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय कर दिया है।"तेजस्विनी ने कहा, "इस मंच के लिए मैं स्टार स्पोर्ट्स और अपने कोच का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं, क्योंकि अब लोग हमें ज्यादा जानने लगे हैं।"
'महिला कबड्डी चैलेंज' के एक पूर्ण लीग के रूप में शुरू होने से अन्य खिलाड़ियों को मिलने वाले अवसर के बारे में पूछे जाने पर तेजस्विनी ने कहा, "अगर यह पुरुषों के कबड्डी लीग की तरह पूर्ण रूप से महिला कबड्डी लीग के रूप में शुरू होता है, तो यह काफी अच्छी बात होगी।"तेजस्विनी ने कहा, "कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी ऐसी हैं, जिन्हें हमारी ही तरह इस प्रकार के मंच की जरूरत है और अगर ऐसा होता है, तो उनका भविष्य भी सुधर जाएगा।"कबड्डी को अपनाने के लिए तेजस्विनी को भी कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। परिवार से बड़ी मुश्किल से उन्हें इस खेल को खेलने की अनुमति मिली और आज इसमें अपनी पहचान बनाते देख उनके माता-पिता भी काफी खुश हैं।
जीवन के सबसे कठिन अनुभव के बारे में पूछे जाने पर अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित तेजस्विनी ने कहा, "एशियाई खेलों-2010 के बाद मैं नियमित रूप से कबड्डी में सक्रिय नहीं रह सकीं। इसके बाद 2012 में हुए विश्व कप में दुर्भाग्य से हिस्सा नहीं ले पाई। लोगों ने इस पर मेरे करियर के समाप्त होने की अटकलें लगानी शुरू कर दी थीं, लेकिन मैंने अर्जुन पुरस्कार मिलने के बाद फिर वापसी का फैसला किया।"तेजस्विनी ने कहा, "मैंने यही सोचा कि मैं क्यों नहीं खेल सकती? अपने आप को एक बार फिर तैयार करके मैंने एशियाई खेलों-2014 में स्वर्ण पदक हासिल कर वापसी की और आज आपके सामने हूं।"
स्टॉर्म क्वींस की कप्तान से जब पूछा गया कि क्या 'महिला कबड्डी चैलेंज' के एक लीग के रूप में शुरू होने से ओलम्पिक में जाने के रास्ते के खुल जाएंगे? इस पर उन्होंने कहा, "हां, जरूर। अगर यह सफल होता है, तो इससे काफी फायदा होगा और कई नए अवसर मिलेंगे।"
इस 'महिला कबड्डी चैलेंज' से अपने निजी अनुभव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "जैसा कि मैंने कहा कि इस मंच से हमें जल्दी पहचान मिली। काफी अच्छा लग रहा है। यह पहली बार है कि पुरुषों के कोर्ट पर खेल रहे हैं, जो कि काफी बड़ा है और एक चुनौती के रूप में खेल रहे हैं।"तेजस्विनी का कहना है कि कबड्डी का खेल आसान नहीं है। इसमें मानसिक और शारीरिक रूप से काफी शक्ति का इस्तेमाल होता है। इस खेल में चोटें लगना आम बात है और इसमें अगर ऐसी पहचान मिलती है, तो आपकी मेहनत सफल हो जाती है। महिला कबड्डी एक लीग के रूप में अगर शुरू होती है और भी लड़कियां इसे करियर के तौर पर अपनाने के लिए आगे आएंगी।