हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के मामले में निर्णय लेने के लिए राज्य सही प्राधिकार है और न्यायपालिका को इस मामले में परहेज करना करना चाहिए। भूपिंदर सिंह नेगी की याचिका का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की खंडपीठ ने मंगलवार को कहा, "यह निर्णय करना राज्य सरकार को है कि उनकी (भूपिंदर सिंह नेगी) सेवा का कैसे अच्छे ढंग से उपयोग किया जा सकता है।"नेगी प्रतिनियुक्ति पर प्रवर्तन निदेशालय में थे, लेकिन उन्हें वापस बुला लिया गया था।अदालत ने कहा, "और शर्ते थोपना इस अदालत का काम नहीं है। इसके अलावा यह निर्णय करने के लिए राज्य सही प्राधिकार है कि कौन, कहां, क्यों और कब प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाएगा और इस मामले में याचिकाकर्ता को शर्ते थोपने का अधिकार नहीं है।"अदालत ने चेतावनी भरी टिप्पणी के साथ अपने 16 पृष्ठों के फैसले में यह बात कही। हालांकि अदालत ने कहा कि इस शक्ति का इस्तेमाल जनहित में होना चाहिए।अदालत ने कहा कि अगर सत्ता का इस्तेमाल बाहरी कारणों या बाहरी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए या परोक्ष उद्देश्य के लिए आधारित है तो दुर्भावनापूर्ण माना जाएगा।
राज्य में पुलिस नेतृत्व की कमी का हवाला देते हुए राज्य सरकार ने पुलिस अधिकारी नेगी को वापस बुला लिया था। सरकार के निर्णय को नेगी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।न्यायाधीशों ने कहा कि इस तरह के किसी आदेश को दी गई चुनौती से सामान्य तौर पर परहेज करना चाहिए और अदालतों या न्यायाधिकरणों को ऐसी चुनौतियों पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, "यह विशुद्ध रूप से प्राशासनिक मामला है और इसलिए अदालती हस्तक्षेप की गुंजाइश बहुत कम है। अदालत द्वारा हाथ बांध दिए जाने पर राज्य सरकार काम नहीं कर सकती है।"न्यायाधीशों ने कहा कि यह स्थापित तथ्य है कि आमतौर पर प्रशासनिक मामलों में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और न्यायिक संयम बरतना चाहिए।राज्य सरकार ने कहा कि किसी कर्मचारी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का दावा करने का अधिकार नहीं है और अगर जरूरत है तो यहां तक कि अपने कर्मचारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस बुलाने और इस आशय के लिए की गई कोई अनुशंसा वापस लेने का राज्य सरकार को हमेशा अधिकार है।