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परदेश में दुश्वारियों के बीच गुदगुदाता तसव्वूर

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5 Dariya News ( राजीव रंजन तिवारी )

08 May 2016

सुनहरे भविष्य के सपने लिए भारत से भारी तादाद में लोग खाड़ी देशों में मज़दूरी करने जाते हैं। वहां उन्हें लगभग अमानवीय स्थितियों में रहना पड़ता है। कई बार ये मज़दूर दलालों के चंगुल में फंस कर अपना सब कुछ गवां बैठते हैं। यूं कहें कि थोड़े पैसे कमाने के लिए घर से बाहर जाकर तमाम दुश्वारियां झेलने की विवशता उनकी मजबूरियां बन जाती हैं, फिर भी तसव्वूर गुदगुदाता रहता है। वर्ष २०१५ में खाड़ी के देशों में काम करने गए करीब ५,८७५ भारतीय कामगारों की जान चली गई। इनमें से किसी एक देश में हुई सबसे ज्यादा मौतें सऊदी अरब में दर्ज हुईं। उक्त आंकड़े भारत सरकार के हैं। अरब देशों में काम कर रहे हज़ारों भारतीयों की कहानी बेहद दहला देने वाली है। कहानी इसलिए भी दर्दनाक हो जाती है, क्योंकि इनमे से ज्यादातर ग़रीबी की मार झेलने वाले ऐसे लोग हैं जो ज़मीन-ज़ायदाद गिरवी रखकर वहां गए हैं। एक स्वर्णिम भविष्य के सपने संजोए। इस स्थिति में सवाल यही है कि क्या यह उनका सपना एक छलावा है? दुबई में कई वर्षों से काम कर रहे एक कांट्रैक्टर का कहना है कि भारत से लोग यहां यह सोचकर आते हैं कि यहां पैसों का पेड़ लगा है, लेकिन ऐसा नहीं है। यहां आने वाले लोगों को थोड़ा प्रोफ़ेशनल होना पड़ेगा। यहां काम में बहानेबाज़ी नहीं चलती, अगर आठ घंटे की शिफ़्ट है तो पूरे आठ घंटे आपको काम करना पड़ेगा। यहां का मौसम भी अगल है। गर्मियों में यहां का तापमान ५० डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। ऐसे मौसम में भी मज़दूरों को काम करना पड़ता है। यहां आने वाले लोगों को सोचना चाहिए कि हम वहां काम करके पैसा कमाने जा रहे हैं। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि वहां भारतीय कामगारों के साथ व्यवहार भी ठीक से नहीं किया जाता है। कई बार इनका पासपोर्ट छीन लिया जाता है और वेतन भी रोका जाता है।

भारत सरकार के अनुसार, पिछले साल केवल सऊदी अरब में ही २,६९१ भारतीय श्रमिकों की जान गई। इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात में १,५४० भारतीय मारे गए। भारत के विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह ने लोकसभा में यह जानकारी दी है। पिछले साल कतर में २७९ तो वहीं ओमान में ५२० भारतीयों के मारे जाने की खबर है। विदेश राज्यमंत्री ने बताया कि २०१५ में बहरीन में २२३, कुवैत में ६११ और इराक में ११ भारतीय कामगरों की जान चली गई। हालांकि उन्होंने भारतीय प्रवासियों के मारे जाने और उनके खतरनाक पेशों में लगे होने में कोई संबंध नहीं बताया है। वीके सिंह के अनुसार, इन खाड़ी देशों के भारतीय दूतावासों और कंसुलों से मिली जानकारी के अनुसार इनमें से ज्यादातर मौतें प्राकृतिक कारणों या ट्रैफिक दुर्घटनाओं के कारण हुईं। इसी साल अप्रैल में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर गए थे। सऊदी किंग सलमान से मुलाकात में भी उन्होंने वहां बड़ी संख्या में काम करने वाले भारतीय मजदूरों के बारे में बात की थी। सऊदी अरब भारत का एक प्रमुख तेल निर्यातक देश है जो कि भारत के कुल कच्चे तेल आयात का करीब १९ फीसदी हिस्सा भेजता है। अपने सऊदी दौरे की शुरुआत में ही मोदी ने एक लेबर कैंप का दौरा किया था। वहां भारतीय श्रमिकों के साथ उन्होंने परंपरागत दक्षिण भारतीय खाना भी खाया। भारत के अतिरिक्त कई दूसरे दक्षिण एशियाई देशों से तेल के खजानों के अकूत भंडार वाले खाड़ी देशों में लाखों प्रवासी मजदूर पहुंचते हैं। वे कम वेतन वाली नौकरियां जैसे कंसट्रक्शन वर्कर, वेल्डर, वेटर, सफाईकर्मी और ड्राइवर जैसे पेशों में लग जाते हैं। इन कामों को छोटा समझने के कारण खाड़ी देशों के नागरिक इन्हें नहीं करना चाहते हैं। हालांकि समय समय पर कई भारतीय और दूसरे प्रवासी मजदूर इन देशों में रोजगारदाता के हाथों दुर्व्यवहार और अत्याचार की की शिकायतें करते हैं। 

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में १० लाख से ज़्यादा भारतीय काम करते हैं। बताते हैं कि यहां काम करने वाले मज़दूरों को महंगाई के हिसाब से बहुत कम वेतन मिलता है। नतीजा यह होता है कि यहां के मजदूर बहुत कम राशि बचा पाते हैं। महंगाई बढ़ रही है और डालर की साख घट रही है। रुपये की तुलना में कभी कभार दिरहम का अवमूल्यन होने लगा है। साथ ही वहां रह रहे लोगों की तक़लीफ़ें बढ़ रही हैं। बताते हैं कि वहां मुद्दा केवल जीवित रहने का नहीं है, क्योंकि जो भारतीय वहां काम करने आते हैं, वे बचत करना चाहते हैं। वहां भारतीय केवल जीने और खाने के लिए पैसा कमाने नहीं आते, वे कुछ सपने लेकर यहां आते हैं। जिन्हें वह पैसे कमा कर पूरा करना चाहते हैं, लेकिन यहां उन्हें जितना पैसा मिलता है, वह उसे पूरा करने के लिए काफ़ी नहीं होता है। दुबई की चमकती ऊंची इमारतों के पीछे बड़ी संख्या में भारतीयों का खून पसीना है। मानवाधिकार संगठन लगातार खाड़ी के देशों के ख़राब मानवाधिकार रिकार्ड पर आवाज़ उठाते रहते हैं। मीडिया में भी अक्सर मज़दूरों के साथ दुर्व्यवहार होने की ख़बरें आती रहती हैं। कुछ शिकायतें यूएई पहुंच कर किए गए कांट्रैक्ट की भी हैं। ये अरबी में लिखे होते हैं। दस्तख़त करने वालो पता नहीं होता कि उन्होंने किस दस्तावेज़ पर दस्तख़त किए हैं, वह क्या कहता है। यहां आने के बाद लोग कहते हैं कि हमने अरबी में लिखे कांट्रैक्ट को साइन किया है। उस पर क्या लिखा था मैं नहीं जानता। इस इस तरह की समस्या का दूर करना भी जरूरी है। संयुक्त अरब अमीरात के श्रम मंत्री इस बात को मानते हैं कि यहां काम करने वाले आधे लोग भारत के हैं, जो उनके देश के निर्माण में लगे हैं। भारत भी खाड़ी देशों में रह रहे भारतीयों का महत्व समझता है, क्योंकि ये लाखों डालर घर भेजते हैं। 

विदित है कि कुशल श्रम की तो कद्र है लेकिन अकुशल कामगारों के लिए देश हो या विदेश हालात विडम्बनापूर्ण ही हैं। खाड़ी देश कतर के प्रवासी श्रम कानूनों और मजदूरों की मौतों के हवाले से एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट भी यही बताती है। डॉक्टरी, इंजीनियरी या ऐसा ही ऊंचा काम करने विदेश जा रहे हैं तो शायद आपको दिक्कत न आएं, लेकिन अगर कोई छोटा कामगार या मजदूर परिवार का पेट पालने विदेश निकलता है तो ये सफर जोखिम भरा और जानलेवा हो सकता है। खाड़ी के अमीर देश कतर गए भारतीय मजदूरों की बदहाली की खबरें भी यही बताती हैं। प्रवासी भारतीय कामगारों की सुरक्षा दांव पर लगी है। देशों के श्रम कानून क्या अपने यहां काम करने वाले विदेशी मजदूरों और छोटे कामगारों के प्रति उदासीन और निष्ठुर हैं, ये सवाल एक बार फिर उठने लगे हैं। खाड़ी का एक अत्यंत अमीर देश है कतर जो पिछले कुछ समय से विवादों में है। २०२२ के विश्वकप फुटबॉल आयोजन के लिए जो बेशुमार निर्माण कार्य वहां हो रहा है उसमें दक्षिण एशिया के देशों के भी कामगार गए हैं। खासकर भारत और नेपाल से। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कतर के विश्व कप आयोजन और तैयारियों की रोशनी में एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें प्रवासी भारतीयों की मौतों पर सवाल उठाए हैं। भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से उसने कहा है कि पिछले एक साल में २८९ भारतीय कामगारों की कतर में मौत हुई है। कई रिपोर्टे ये इशारा करती हैं कि कतर श्रम कानूनों की घोर अनदेखी कर रहा है, जिसका फायदा निर्माण कार्य में लगी कंपनियां उठा रही हैं और वे बाहर से आए मजदूरों का शोषण कर रही हैं।बहरहाल, अपने सपनों को स्वर्णिम बनाने के लिए अरब देशों तक पहुंचने वाले भारतीय मजदूरों के बारे में भारत सरकार को भी चाहिए वह चिंता करे और इनके रक्षा के बारे में कोई ठोस कदम उठाए। खैर, स्थितियां अनुकूल नहीं हैं। पर, देखना यह है कि आगे क्या होता है?

संपर्कः राजीव रंजन तिवारी, द्वारा- श्री आरपी मिश्र, ८१-एम, कृष्णा भवन, सहयोग विहार, धरमपुर, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), पिन- २७३००६. फोन- ०८९२२००२००३.

 

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