बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार कर दक्षिण मुंबई स्थित विवादास्पद 31 मंजिला आदर्श हाउसिंग सोसाइटी की इमारत को ढहाने का आदेश दिया। उसने इस क्रम में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के 2011 के आदेश को बरकरार रखा। इस मामले में शामिल अधिवक्ताओं में से एक वाई. पी. सिंह ने बताया, "न्यायालय ने मंत्रालय के 16 जनवरी, 2011 के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें इमारत को तीन माह के भीतर गिराने का आदेश दिया गया था। इस आदेश को आदर्श कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी ने चुनौती दी थी।"अदालत ने सोसाइटी के अधिवक्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने आदेश पर अमल को तीन महीने के लिए स्थगित रखा है ताकि सोसाइटी व राज्य सरकार उसके फैसले के खिलाफ इन तीन महीनों के अंदर सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकें।
न्यायमूर्ति आर. वी. मोरे व न्यायमूर्ति आर. जी. केतकर की खंडपीठ ने मामले की रोजाना सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को आदर्श सोसाइटी घोटाले में संलिप्त नेताओं, मंत्रियों व अधिकारियों के खिलाफ जांच करने व आपराधिक मामला चलाने एवं प्लॉट लौटाने का भी आदेश दिया।अदालत ने रक्षा मंत्रालय को उन अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश भी दिए हैं, जिन्होंने इस घोटाले की पहले ही जानकारी मिलने के बावजूद कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठाई।उच्च न्यायालय ने यह फैसला तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के 16 जनवरी, 2011 के आदेश पर सुनाया है। जयराम रमेश ने उस वक्त आदर्श सोसाइटी को तीन माह के अंदर गिराने का आदेश दिया था, क्योंकि यह अनधिकृत पाई गई थी और इसके निर्माण में तटीय नियमन क्षेत्र मानदंडों का उल्लंघन पाया गया था।
बाद में रक्षा मंत्रालय ने भी कोलाबा स्थित इस 31 मंजिला इमारत को ढहाने के पर्यावरण मंत्रालय के आदेश को लागू करवाने की मंशा से अदालत का दरवाजा खटखटाया। दक्षिण मुंबई स्थित इस इमारत के पास रक्षा प्रतिष्ठान हैं।करगिल युद्ध के नायकों व उनकी विधवाओं के लिए छह मंजिला सोसाइटी बनाई जानी थी। इसे बाद में 100 मीटर ऊंचे टावर में तब्दील कर दिया गया, जिसमें कथित तौर पर साजिशन कई नेताओं, नौकरशाहों, सैन्य अधिकारियों ने कम कीमतों पर फ्लैट ले लिए।नवंबर 2011 में इस घोटाले का खुलासा होने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और कई अन्य अधिकारियों को पद से हाथ धोना पड़ा था।