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संविधान की दहलीज पर लोकतंत्र ने तोड़ा 'दम' !

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5 Dariya News (राजीव रंजन तिवारी)

27 Mar 2016

उत्तराखंड में पिछले कई दिनों से जारी राजनीतिक संकट के बीच २७ मार्च को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने यह फैसला राज्यपाल केके पॉल की रिपोर्ट के बाद लिया, जबकि २८ मार्च को मुख्यमंत्री हरीश रावत को विश्वास मत परीक्षण करना था। केंद्र सरकार को विधायकों के बगावत से पैदा राज्य की हालिया स्थिति के बारे में राज्यपाल से रिपोर्ट मिलने के बाद २६ मार्च को असम से लौटकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में केंद्रीय मंत्रिमंडल की आपात बैठक की। करीब डेढ़ घंटे चली इस बैठक में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने समेत केंद्र के सामने उपलब्ध विभिन्न विकल्पों पर विचार किया गया। दरअसल, मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग ऑपरेशन सामने आने के बाद बीजेपी के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलकर उत्तराखंड मंी राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी। खैर, जो कुछ भी हुआ उसे केन्द्र सरकार कागजी तौर पर एक संवैधानिक प्रक्रिया कहेगी। मैं चूंकि संविधान का बहुत बड़ा ज्ञाता नहीं हूं पर एक आम आदमी की नजर से उत्तराखंड के पूरे घटनाक्रम की समीक्षा करूं तो यही कहूंगा कि संविधान की दहलीज पर लोकतंत्र ने दम तोड़ दिया। कहा जा रहा है कि स्टिंग आपरेशन को राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार माना गया है। 

अब सवाल यह उठता है कि उस स्टिंग आपरेशन को आधार मानने वाले संविधान विशेषज्ञों को मुख्यमंत्री हरीश रावत की आवाज क्यों सुनाई नहीं पड़ी, जबकि उन्होंने उस स्टिंग आपरेशन को झूठ करार दिया था। इससे भी इत्तर यदि २८ मार्च की तिथि की बात करें तो उसी दिन हरीश रावत को सदन में विश्वास मत जीतना था। केन्द्र की सत्ता में बैठे बड़े-बड़े सियासी सूरमा यह भलि-भांति जानते हैं कि जीत उसी की होगी, जिसे वे (केन्द्र सरकार) चाहेंगे। फिर एक दिन पहले कौन-सी आफत टूट पड़ी कि आनन-फानन में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। यूं कहें कि जिस राज्यपाल ने हरीश रावत को २८ मार्च तक की मोहलत दी थी, क्या उस फैसले की कदर नहीं होनी चाहिए। मेरी दृष्टि लोकतंत्र पर इस पूरे घटनाक्रम को बड़ा आघात मान रही है। यदि इस पूरे प्रकरण की राजनीतिक चर्चा करें तो केन्द्र की भाजपा सरकार ने अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही परिचय दिया है, क्योंकि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाकर हरीश रावत को च्शहीदज् बताने का मौका दे दिया है।हालांकि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने को असंवैधानिक बताया है। उन्होंने भाजपा के एक सांसद की राज्यपाल को हटाने की मांग की भी निंदा की है। उन्होंने कहा कि अब फैसला राज्य की जनता ही करेगी। रावत का यह कहना अपने आप में उनके आत्मविश्वास को परिलक्षित करता है। उत्तराखंड विधानसभा में २८ मार्च को हरीश रावत सरकार के विश्वास मत हासिल करने की चुनौती से पहले अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा नौ बागी कांग्रेसी विधायकों की सदस्यता पर लिये जाने वाले निर्णय पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं। 

सूत्रों का कहना है कि विधानसभा स्पीकर ने नौ बागी कांग्रेस विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया था। इसके बाद विधानसभा का अंकगणित पूरी तरह बदलता देख केन्द्र की भाजपा सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर डाली। २८ मार्च को विधानसभा में होने वाले शक्ति परीक्षण की चुनौती से निपटने के लिये कांग्रेस की सारी आशायें अध्यक्ष कुंजवाल के नौ बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के कदम पर टिकी हुई थीं। इससे सदन की प्रभावी क्षमता घटकर ६१ रह जाती और बहुमत का आंकडा भी कम हो कर ३१ पर आ जाता। ७० सदस्यीय विधानसभा में सत्ताधारी कांग्रेस के नौ विधायकों के बागी होकर भाजपा के साथ खडे होने के बाद अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के अलावा उसके पास अपने २६ विधायक हैं जबकि हरीश रावत सरकार में शामिल प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा के छह सदस्यों के समर्थन को मिलाकर उसके पक्ष में कुल ३२ विधायक हैं। भाजपा अपने पक्ष में अपने २७ और नौ बागी विधायकों सहित कुल ३५ विधायकों के समर्थन का दावा कर रही थी, लेकिन अध्यक्ष कुंजवाल के बागियों को सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने की सूरत में संख्या बल के खेल में उसके कांग्रेस से पिछडने का अनुमान था।

इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आरोप लगाया था कि भाजपा लगातार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की धमकी दे रही है। उन्होंने कहा था कि अहंकार में चूर केंद्र का शासक दल एक छोटे से सीमांत राज्य को राष्ट्रपति शासन लागू करने की धमकी दे रहा है। रावत ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू करने के बारे में संविधान की ख़ास धाराएँ हैं और एक सर्वमान्य प्रक्रिया है जो अदालती फ़ैसलों पर आधारित है। उनका कहना था कि सभी राज्यों ने इस संदर्भ में प्रक्रियाओं का आदर किया है। उत्तराखंड में जारी राजनीतिक उठापटक के बीच मुख्यमंत्री हरीश रावत मीडिया से रूबरू हुए। उन्होंने केंद्र सरकार पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाया और कहा कि बीजेपी राज्य में राष्ट्रपति  शासन लगाने की धमकी दे रही है। लोकतंत्र की हत्या का प्रयास किया जा रहा है राष्ट्रशपति शासन लागू करने का एक संवैधानिक तरीका है। ऐसे लोगों से अच्छेल दर्जे की राजनीति की उम्मीरद नहीं। राज्य् की राजनीति का अपहरण बिल्कुंल गलत है। आप जनता के फैसले पर भरोसा नहीं कर रहे और सरकार गिराने के लिए पैसे की ताकत का इस्तेलमाल कर रहे हैं। रावत ने उम्मीद जताई कि प्रबुद्धजन और मीडिया संज्ञान लेंगे। मैं लगातार राज्यकी जनता की सेवा कर रहा हूं। 

संवैधानिक संस्थाओं पर भाजपा हमला कर रही है, हम इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाएंगे। मेरा डीएनए राज्य की जनता का डीएनए है, इंपोर्टेड नहीं है। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को कानूनी चुनौती दिए जाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी को लोकतंत्र में यकीन नहीं हैं। यह बात फिर से खुलकर सामने आ गई है। उधर, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि उत्तराखंड प्रशासनिक मशीनरी के चरमराने का असली उदाहरण है और संविधान के लिहाज से जो कुछ भी गलत हो सकता था, वो वहां हुआ है।उत्तराखंड का स्थिति आज पहले से भिन्न है। हरीश रावत जब प्रदेश में भेजे गये थे, तो उनकी एक ईमानदार मुख्यमंत्री की छवि थी। विजय बहुगुणा खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे। उन्हें हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। राजनीति से पहले विजय न्यायपालिका में थे, लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने प्रतिकूल परिस्थिति में राजनीति का रास्ता चुना। इस पूरे प्रसंग का दूसरा पहलू भी है। कांग्रेस के पास आज सत्ता या बल नहीं है। अगर यह नहीं है तो राज्य का संचालन नहीं कर सकते हैं। यदि राज्य की सरकार चलाने के लिए केन्द्र की सत्ता में होना अनिवार्य है तो यह मान लिया जाना चाहिए कि भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास तेजी से हो रहा है और अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड में भी वह दिख गया। बहरहाल, अब यह मानकर चला जा रहा है कि उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होंगे, जिसमें हरीश रावत अपनी सरकार को च्शहीदज् बताने का प्रयास करेंगे। उन्हें इसका कितना लाभ मिलेगा, ये वक्त बताएगा।

संपर्कः राजीव रंजन तिवारी, द्वारा- श्री आरपी मिश्र, ८१-एम, कृष्णा भवन, सहयोग विहार, धरमपुर, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), पिन- २७३००६. फोन- ०८९२२००२००३.

 

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